पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/६५५

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दि होगा और जमानिया की गद्दी पर बैठने वालों के लिए बड़े लोग जो-जो आज्ञा और नियम लिख गये है आपको मालूम होगा। उसी नियमानुसार हर महीने की अमावस्या को मै यहा आया करता था। आपकी आनन्दसिह की और अपनी तस्वीरें मैने ही नियमानुसार इस कमरे में लगाई है और इसी तरह बडे लोग अपने अपने समय में अपनी और अपने माइयों की तस्वीरें गुप्त रीति से तैयार करा के इस कमरे में रखते चले आये है। नियमानुसार यह एक आवश्यक बात थी कि जब तक आप लोग स्वय इस कमर में न आ जाय मैं हर एक बात आप लोगों से छिपाऊ और इसीलिए मै इस तिलिस्म के बाहर भी आपको ले नहीं गया जबकि आपने बाहर जाने की इच्छा प्रकट की थी मगर अब कोई बात छिपाने की आवश्यकता न रही। इन्द-इस बाजे का हाल भी आपका मालूम 7 गोपाल-केवल इतना ही कि इसमें तिलिस्म के बहुत से भेद भरे हुए है मगर इसकी ताली कहाँ है सा मै नहीं जानता। इन्द्र-क्या आपके सामन यह बाजा कभी बाला? गोपाल-इस बाजे की आवाज कई दफे मैंने सुनी है। (जमीन में गडे एक पत्थर की तरफ इशारा करके) इस पर र पड़ने के साथ ही याला यजने लगता है दो-तीन गत के बाद कुछ बातें कहता और फिर धुप हो जाता है अगर इस पत्थर पर पैर न पडे तो कुछ भी नहीं बोलता। इन्द्र-(यह किताय जिस पर बाजे की आवाज लिखी थी दिखा क) यह आवाज भी आपने सुनी होगी? गोपाल-हा सुन चुका हू मगर इसके लिए उद्योग करना सबसे पहिले आप का काम है। आनन्द-महाराज सूर्यकान्त की तस्वीर के नीचे वारीक अक्षरों में जो कुछ लिखा है उसे भी आप पढ़ चुके है ? गापालनहीं क्योंकि अक्षर यहुत बारीक है पढ़े नहीं जाते। इन्द-हम लोग इस पट चुके है? गोपाल-(ताज्जुब से) सो कैस? कुअर इन्दजीतसिह ने शीशे वाला हाल गोपालसिह से कहा और जिस तरह स्वयम् उन बारीक अक्षरों को पढ़ चुके थे,उसी तरह उन्हें भी पढाया। गोपाल-आखिर समय ने इस बात को आप लागों के लिए रख ही छाडा था। इन्द्र-इसका मतलब आप समझ गये? गोपाल-जी हा समझ गया। इन्द-अब आप हम लोगों को बडाई के शब्दों से सम्बाधन न किया कीजिए क्योंकि आप वड हे और हमलोग छोटे है इस बात का पता लग चुका है। गोमाल-(हस कर ) ठीक है अब एसा ही हागा अच्छा ता बाजे वाल बबूतरे में से ताली निकालनी चाहिए। इन्द्र-जी हॉ हम लोग इसी फिक में थे कि आप आ पहुचे लेकिन मुझे और भी बहुत सी यातें आपसे पूछनी हैं। गोपाल-खैर पूछ लेना पहिले ताली के काम से छुटटी पा ला। आनन्द-मैन इस कमरे में एक औरत का आते हुए देखा था मगर वह मुझ पर निगाह पडन के साथ ही पिछले पैर लोट गई और दूसरी कोठरी में जाकर गायब हो गई। इस बात का पता न लगा कि वह कौन थी या यहा क्योंकर आई? गोपाल-औरत । यहाँ पर " आनन्द-जी हा। गोपाल-यह ता एक आश्चर्य की बात तुमने कही । अच्छा खुलासा कह जाओ। आनदसिह अपना हाल खुलासा बयान कर गये जिसे सुन कर गोपालसिह को बडा ही ताज्जुब हुआ और ववाल 'खैर थोडी देर के बाद इस पर गौर करेंगे। किसी औरत का यहा आना नि सन्देह आश्चर्य की बात है। इन्द्र-(खून से लिखी किताब दिखा कर) मेरी राय है कि आप इस किताब को पढ़ जाय और जो तिलिस्मी किताब आप पास है उसे पढने के लिए मुझे दे दें। गोपाल-निसन्देह वह किताब आपकं पढ़ने लायक है उससे आपको बहुत फायदा पहुचेगा और याने-पीने तथा समय पड़ने पर इस तिलिस्म स बाहर निकल जाने के लिए अण्डस न पडेगी और यहा के कई गुप्त भद भी आप लोगों का मालूम हा जायेंगे। आप इस बाजे की ताली निकालने का उद्योग कीजिए तब तक मैं जाकर वह किताब ले आता है। इन्द-बहुत अच्छी बात है मगर बाजे की ताली निकालने के समय आप यहा मौजूद क्यों नहीं रहते ? आपसे बहुत कुछ मदद हम लोगों को मिलेगी। गोपाल-क्या हर्ज ऐसा ही सही आप लोग उद्योग करें। यह तो मालूम ही हा चुका था कि वाजे की ताली उसी चबूतरे में है जिस पर राजा रक्या या जला हुआ है अस्तु चन्द्रकान्ता सन्तति भाग १४ ६४७