पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/६५३

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18 4 शेरअली-(खुश होकर) ठीक है बेशक ऐसा ही होगा तो अब विलम्ब करना उचित नहीं है चलिए और जल्दी चलिए। भूत-चलिए मै तैयार हू। इतना कह कर भूतनाथ और शेरअलीखा ने राजा वीरेन्दसिह के आदमियों की लाशों को उठवाने और जिन्दों को कैद करने के विषय में पुन समझा-बुझाकर तथा और मी कुछ कह सुनकर किले के बाहर का रास्ता और बहुत जल्द उस ठिकाने जी पहुचे जहा के लिए इरादा कर चुके थे। छठवां बयान कुअर इन्द्रजीतसिह और आनन्दसिह फिर उस बड़ी तस्वीर के पास आये जिसके नीवे महाराज सूर्यकान्त का नाम लिखा हुआ था। दोनों कुमार उस तस्वीर पर फिर से गौर करने और उस लिखावट को पढने लगे जिसे पहिले गढ चुके थे। हम ऊपर लिख आए हैं कि इस तस्वीर में कुछ लेख ऐसा भी था जो बहुत बारीक हफो में लिखा होने के कारण कुमार से पढ़ा नहीं गया। अब दोनों कुमार उसी को पढने क लिए उधोग करने लगे क्योंकि उसका पढना उनसानों ने बहुत ही आवश्यक समझा। इस कमरे में कितनी तस्वीरें थी वे राय दीवार में बहुत ऊचे पर न थी बल्कि इतनी नीचे थी कि देखने वाला उनके मुकाबले में राडा हो सकता था। यही सवय था कि महाराज सूर्यकान्त की तस्वीर में जो कुछ लिया था उसे दोनों कुमारों ने बखूबी पद लिया या मगर कुछ लेख वास्तव में बहुत ही बारीक अक्षरों में लिखा हुआ था और इसी से ये दोनों भाई उपे पढ़ न सके। दोनों भाइयों ने तस्वीर की बनावट और उसके चौकठे (फ्रेम) पर अच्छी तरह ध्यान दिया तो चार्ग कोनों में छोटे-छोटे चार गोल शीशे जड़े हुए दिखाई पड़े जिनमें तीन शीशे तो पतले और एक ही रग-रग के थे, मगर चौथा शीण मोटा दलदार और बहुत साफ था। इन्द्रजीतसिंह ने उस मोटे शीशे पर उगली रक्खी तो वह हिता हुआ मालूम पड़ा और जय कुमार ने दूसरा हाथ उसके नीचे रख कर उगली से दवाया तो चौखट से अलग होकर हाथ में आ रहा। हम समय आनन्दसिह तिलिस्मीखजर हाथ में लिए रोशनी कर रहे थे उन्हान इन्द्रजीतसिद से कहा मेरा दिल गाही देता कि यह शीशा उन अक्षरों के पढने में अवश्य कुछ सहायता देगा जा यहुत बारीक होने के सबब से पढ़े नहीं जाते। इन्द्र-मेरा भी यही खयाल है और इसी सबब से मैने इसे निकाला भी है। आनन्द--इसीलिए यह मजबूती के साथ जडा हुआ भी नहीं है । इन्द-देखा सब मालूम ही हुआ जाता है। इतना कहकर इन्द्रजीतसिह ने उस शीशे को उन बारीक अक्षरों पर रक्खा और वे अबार बड़े-बड़े मालूम होने लगे। अब दोनों भाई बड़ी प्रसन्नता से उस लेख को पढने लगे। यह लिखा था- स्व गिवर नर्गदै कै पै खूब समझ के सब आर पर रक्खो ६ 1 3 15 ५ ३ ए ३ ए 8 + अ GS ३ १ 3 औ th १ १ ५ ३ C ७ २ 1 ए ए 4 चन्द्रकान्ता सन्तति भाग १४