पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/६४२

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€ मनो--(चौंक कर ) तब तुम कौन हो? धन्नू-भूतनाथ का दोस्त और इन्ददेव का ऐयार सर्पूसिह। इतना सुनते ही मनोरमा का रंग बदल गया और उसने बडी फुर्ती से अपना दाहिना हाथ सऍसिह के चेहरे की तरफ बढाया मगर सऍसिह पहिले ही से होशियार और चौकन्ना था उसने चालाकी से मनोरमा की कलाई पकड़ ली। मनोरमा की उगली में उसी तरह के जहरीले नगीने वाली अगूठी थी जैसी नागर की उगली में थी और जिसने भूतनाथ को मजबूर कर दिया था तथा जिसका हाल इस उपन्यास के सातवें भाग में हम लिख आये है। उसी अंगूठी से मनोरमा ने नकली धन्नूसिह को मारना चाहा मगर न हो सका क्योंकि उसने मनोरमा की कलाई पकड़ ली और उसी समय भूतनाथ और सऍसिह का शागिर्द वहा आ पहुंचे। अव मनारमा ने अपने को कालक मुंह में समझा और वह इतना डरी कि जो कुछ उन ऐयारों ने कहा बउज करने के लिए तैयार हो गई। भूतनाथ ने हाथ से क्षमा-प्रार्थना की सहायता से छूटने की आशा मनोरमा को कुछ भी न थी इसीलिए जब तक भूतनाथ न उससे किसी तरह का सवाल न किया वह भी कुछ न बोली और वेउज हाथ पैर बधया कर कैदियों की तरह मजबूर हो गई। इसके बाद भूतनाथ तथासऍसिह में यो बातचीत होने लगी- भूत-अब क्या करना होगा? स!--अब यही करना होगा कि तुम इसे अपने घोडे पर सवार करा के घर ले जाओ और हिफाजत के साथ रख कर शीघ लौट आआ। भूत--और उस धन्नूसिह के बारे में क्या किया जाय जिसे आप गिरफ्तार करने के बाद बेहोश करके डाल आए हैं? स'-(कुछ सोच कर ) अभी उसे अपने कब्जे ही में रखना चाहिए क्योंकि मैं धन्नूसिह की सूरत में राजा शिवदत्त के साथ रोहतासगढ़ तहखाने के अन्दर जाकर इन दुष्टों की चालबाणियों को जहा तक हो सके बिगाड़ना चाहता हूँ, ऐसी अवस्था में अगर वह छूट जायगा तो कवल काम ही नहीं विगडेगा बल्कि में खुद आफत में फस जाऊगा यदि शिवदत्त के साथ रोहतासगढ के तहखान में जान का साहस करुगा। इसके बाद सर्पूसिह न भूतनाथ से वे बातें कहीं जो उसमें और शिवदत्त तथा कल्याणसिह से हुई थी और हम ऊपर लिय आए है। उस समय मनारमा को मालूम हुआ कि नकली धन्नूसिह न जिस भयानक पात्त वाली औरत का हाल शिवदत्त से कहा और जिसे मनोरमा की यहिन बताया था वह सब बिल्कुल झूठ और बनावटी किस्सा था। भूत-(सऍसिंह से ) तब तो आपको दुश्मनों के साथ मिलजुल कर राहतासगढ तहखान के अन्दर जाने का बहुत अच्छा मौका है। स' हा इसी से मैं कहता है कि उस धन्नूसिह को अभी अपने कब्जे में ही रखना चाहिए जिसे हम लोगों ने गिरफ्तार किया है। भूत-कोई चिन्ता नहीं में लगे हाथ किसी तरह उसे भी अपने घर पहुंचा दूंगा। (शागिर्द की तरफ इशारा करके) इसे तो आप मनोरमा बना कर अपने साथ ले जाएग ? सर्दू-जभर ले जाऊगा और कल्याणसिह के बताये हुए ठिकाने पर पहुंच कर उन लोगों की राह देखूगा । भूत-और मुझको क्या काम सुपुर्द किया जाता है ? सर्दू-मुझे इस बात का पता ठीक-ठीक लग चुका है कि शेरअलीखा आजकल रोहतासगढ में है और कुञ्जर कल्याणसिह उससे मदद लिग चाहता है। ताज्जुब नहीं कि अपने दोस्त का लड़का समझ कर शेरअलीखा उसकी मदद करे और अगर एसा हुआ ता राजा वीरेन्द्रसिह को बड़ा नुकसान पहुचेगा। भूत-4 आपका मतलब समझ गया अच्छा तो इस काम से छुट्टी पाकर मै बहुत जल्द रोहतासगढ पहुचूगा और शेरअलीखा की हिफाजत कसगा। (कुछ सोच कर ) मगर इस बात का खौफ है कि अगर मेरा वहा जाना राजा वीरेन्द्रसिह पर खुल जायगा तो कहीं मुझे बिना चलभदसिह का पता लगाय लौट आने के जुर्म में सजा तो न मिलगी? (इतना कह कर भूतनाथ ने मोरमा की तरफ देखा) स' नहीं नहीं ऐसा न होगा और अगर हुआ भी तो मैं तुम्हारी मदद करुगा। वलभद्रसिह का नाम सुन कर मनोरमा जो सब बातचीत सुन रही थी चौक पडी और उसके दिल में एक होल सा पैदा हो गया। उसने अपने को रोकना चाहा मगर रोक न सकी और घबडा कर भूतनाथ से पूछ बैठी 'बलमदसिह कौन । देवकीनन्दन खत्री समग्र