पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/६४०

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or धन्नू-जी नहीं मैं पाच-चार कोस तक उसके साथ जाऊगा इसके बाद भुलावा देकर उसे अकेला छोड आपसे आ मिलूगा। शिवदत्त-(आश्चर्य से) धन्नूसिह क्या तुम्हारी अक्ल में कुछ फर्क पड़ गया है या तुम्हें निसयान (भूल जाने ) की बीमारी हो गई है अथवा तुम कोई दूसरे धन्नूसिह हो गए हो ।। क्या तुम नहीं जानते कि मनोरमा ने मुझे किस तरह से रूपये की मदद की है और उसके पास कितनी दौलत है ? तुम्हारी ही मार्फत मनोरमा से कितने ही रूपये मगवाये थे? तो क्या इस हीरे की चिडिया को मैं छोड सकता हू? अगर ऐसा ही करना होता तो तरद्द की जरूरत ही क्या थी इसी समय कह दते कि हमारे यहा से निकल जा, धन्नू (कुछ सोचकर ) आपका कहना ठीक है मै इन बातों को भूल नहीं गया, में खूब जानता है कि वह बेइन्तहा खजाने की चाभी है मगर मैंने यह बात इसलिए कही कि जब उसके सबब से हमारे सार ही आफत में फस जायेंगे तो वह हीरे की चिडिया किसके काम आवंगी। शिवदत्त-नहीं नहीं तुम इसके सिवाय कोई और तर्कीब ऐसी सोचो जिसमें मनोरमा इस समय हमारे साथ से अलग तो जरुर हो जाय मगर हमारी मुट्ठी से न निकल जाय। धन्नू-(सोचकर) अच्छा तो एक काम किया जाय। शिवदत्त-वह क्या? धन्नू-इसे तो आप निश्चय जानिये कि यदि मनोरमा इस लश्कर के साथ रहेगी तो भूतनाथ के हाथ से कदापिन बचेगी और जैसा कि भूतनाथ कह चुका है वह सरकार के साथ भी बेअदबी जरूर करेगा इस लिए यह तो अवश्य है कि उसे अलग जरुर किया जाय मगर वह रहे अपने कब्जे ही में। तो बेहतर यह होगा कि वह मेरे साथ की जाय मैजगल ही जगल एक गुप्त पगडण्डी से जिसे मै बखूबी जानता हू रोहतासगढ़ तक उसे ले जाऊ और जहा आप या कुंअर साहब आज्ञा दे ठहर कर राह देखू। भूतनाथ को जब मालूम हो जायगा कि मनोरमा अलग कर दी गई तब वह उसके खोजने की धुन में लगेगा मगर मुझे नहीं पा सकता। हा एक बात और है आप भी यहा से शीघ्र ही डेरा उठायें और मनोरमा की पालकी इसी जगह छोड दें जिससे मनोरमा को अलग कर देने का विश्वास भूतनाथ को पूरा पूरा हो जाय । कल्याण-हा यह राय बहुत अच्छी है मैं इसे पसन्द करता हूँ। शिवदत्त-मुझे भी पसन्द है मगर धन्नूसिंह को टिककर राह देखने का ठिकाना बताना आप ही का काम है। कल्याण-हा हा मैं बताता हू सुनो धन्नूसिह । धन्यू-सरकार ! कल्याण-रोहतासगढ पहाडी के पूरब तरफ एक बहुत बड़ा मूआ और उस पर टूटी-फूटी इमारत भी है। धन्नू-जी हा मुझे मालूम है। कल्याण-अच्छा तो अगर तुम उस कूए पर खडे होकर पहाड़ की तरफ देखोगे तो टीले के ढम का एक खण्ड पर्वत दिखाई देगा जिसके ऊपर सूखा हुआ पुराना पीपल का पेड़ है और उसी पेड़ के नीचे एक खोह का मुहाना है। उसी जगह तुम हम लोगों का इन्तजार करना क्योंकि उसी खोह की राह से हम लोग रोहतासगढ तहखाने के अन्दर घुसेंगे अगर उस खोह तक पहुचने का रास्ता जब तक हम न बतावे तुम वहा नहीं जा सकते। (शिवदत्त से ) आप मनोरमा को बुलवाकर सब हाल कहिये अगर वह मजूर करे तो हम धन्नूसिह को रास्ते का हाल समझा दें। शिक्दत-(धन्नूसिह से ) तुम ही जाकर उसे बुला लाओ। बहुत अच्छा कह कर धन्नूसिह चला गया और थोड़ी ही देर में मनोरमा को साथ लिये हुए आ पहुचा। उसके विषय में जो कुछ राय हो चुकी थी उसे कल्याणसिह ने ऐसे ढग से मनोरमा को समझाया कि उसने कबूल कर लिया और धन्नूसिह के साथ चले जाना ही अच्छा समझा। कुअर कल्याणसिह ने उस टीले तक पहुचने का रास्ता धन्नूसिह को अच्छी तरह समझा दिया। दो घोडे चुप चुपाते तैयार किये गये मनोरमा ने मर्दानी पोशाक पालकी के अन्दर बैठकर पहिरी और घोडे पर सवार हो धन्नूसिंह के साथ रवाना हो गई। धन्नूसिंह की सवारी का घोडा वनिस्वत मनोरमा के घोडे से तेज और ताकतवर था। दूसरा बयान मनोरमा और धन्नूसिह घोड़ों पर सवार होकर तेजी के साथ वहा से रवाना हुए और चार कोस तक बिना कुछ बातचीत किए चले आए। जब ये दोनों एक ऐसे मैदान में पहुंचे जहा बीचोबीच में एक बहुत बड़ा आम का पेड़ और उसके देवकीनन्दन बबी समग्र ६३२