पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/६२८

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बलमदसिंह मै तुम्हें सलाम करता हूँ। आ ऐसे भयानक कैदखाने में तुम्हें देखकर मुझे बजारज होता है। तुमने क्या कसूर किया था जो यहाँ भेजे गए। मकाली बलभवसिह-मै कुछ नहीं जानता कि मुझ पर क्या बोष लगाया गया है। मैं तो अपनी लड़कियों से मिलकर खुश हुआ था मगर अफसोस राजा साहब ने इन्साफ करने के पहले ही मुझे कैदखाने मेज दिया। भैरो-राजा साहब ने तुम्हें कैदखाने नहीं भेजा मल्फि तुमने खुद कैदखाने आने का बन्दोबस्त किया। महाराज ने तो मुझे ताकीद की थी कि तुम्हें इज्जत और खातिरदारी के साथ रक्खू मगर तुमने इन्साफ होने कोपहिले भागने का उद्योग किया तो लाचार ऐसा करना पड़ा। इन्ददेव-नही- नहीं, अगर ये वास्तव में मेरे दोस्त बलभदसिंह है सो इनके साथ ऐसा करना चाहिए। बलभद-मैं वास्तव में बलभद्रसिंह हूँ। क्या लक्ष्मीदेवी मुझे नही पहिचानती जिसके साथ में एक ही कैदखाने में कैद था? इन्द्रदेव लक्ष्मीदवी तो खुद तुमसे दुश्मनी कर रही है. यह कहती है कि यह मलमदसिह नहीं है बल्कि जैपालसिंह इतना सुनते ही नकली बलभदसिंह चौक पठा और उसके चेहरे पर डर तथा पराहट की निशानी दिखाई देन, लगी। यह समझ गया कि इन्द्रदेव मुझ पर दया करने के लिए नहीं आया रल्कि मुझे सताने के लिए आया है। कुछ देर तक सोचने के बाद उसने इन्द्रदेव से कहा - बलभद्र-यह बात लक्ष्मीदेवी तो नहीं कह सकती बल्कि तुम स्वय कहते हो। इन्द्रदेव अगर एसा भी हो तो क्या हर्ज है? तुम इस बात का क्या जवाब देते हो ? बलभद-झूठी बात का जो कुछ जवाब दिया जा सकता दही मेरा जवाब है। इन्ददेव-तो क्या तुम जैपालसिंह नहीं हो ? बलमद्र-मैं जानता भी नहीं कि जैपाल किस जानवर का नाम है। इन्द्रदेव-अच्छा जैपाल नहीं तो मालेसिह ! बालेसिंह का नाम सुनकर नकली बलमद्रसिह फिर घबड़ा गया और मौत की भयानक सूरत उसकी आँखों के सामने दिखाई देने लगी। उसने कुछ जवाब देने का इरादा किया मगर मोल न सका। उसकी ऐसी अवस्था देखकर इन्द्रदव ने तेजसिंह से कहा दारागा और मायारानी को भी इस कोठरी में लाना चाहिए जिसमें मेरी बातों से तीनों' चेइमानो के दिल का पता लगे। यह बात त्तेजसिंह ने भी पसन्द की और बात की बात में तीनो कैदी एक साथ कर दिये गये और तब इन्ददेव ने दारोगा से पूछा आपको इस आदमी का नाम बताना होगा जो आपके बगल मे कैदियों की तरह बैठा हुआ है। दारोगा मै इसे नहीं जानता और जब वह स्थय कह रहा है कि बलभद्रसिंह, है तो मुझसे क्यों पूछते हो ? इन्ददेव-तो क्या आप बलभद्रसिंह की सूरत शक्ल मूल गये जिसकी लड़की को आपने मुन्दर के साथ मदल कर हद से ज्यादे दुःख दिया? दारोगा-मुझे उसको सूरत याद है मगर जब वह मेरे यहाँ कैद था तब आप ही ने इसे जहर की मुड़िया खिलाई थी जिसक असर से नि सन्देह इसे इसे मर जाना चाहिए था मगर न मालूम क्योंकर बच गया फिर भी उस जहर की तासीर ने इसका तमाम बदन विशड़ दिया और इस लायक न रक्खा कि कोई पहिचाने और यलमसिह के नाम से इसे पुकारे। दारोगा की बातें सुन कर इन्द्रदेव की आँखों मारे क्रोध के लाल हो गई और उसने दाँत पीस कर कहा- इन्द्रदेव-कम्बख्त येईमान तिचाहता है कि अपने साथ मुझे भी लपेटे ! मगर ऐसा नहीं हो सकता, तरी इन बातों से लक्ष्मीदेवी और राजा वीरेन्द्रसिंह का दिल मुझसे नहीं फिर सकता। इसका सयव अगर तू जानता तो ऐसी यात कदापि न कहता। खैर वह मै तुझसे बयान करता हूँ, सुन तेरे दिये हुए जहर से मैंने ही बलभद्रसिह की जान बचाई थी, और अगर तू बलभदसिंह को किसी और जगह न छिया दिए होता या उसका हाल मुझे मालूम हो जाता तो वेशक मै उसे भी तेरे कैदरगने से निकाल लेता मगर फिर भी वह शारास में ही हूँ जिसने लक्ष्मीदेवी को तुझ बेईमान और विश्वासघाती के पजे से छुडा कर वर्षों अपने घर में इस तरह से रक्खा कि तुझे कुछ भी मालूम नाईयों और मेरे ही सबब से आज लक्ष्मीदेवी इस लायक हुई कि तुझसे अपना बदला ले। दारोगा मगर ऐसा नहीं हो सकता। देवकीनन्दन खत्री समग्र ६२०