पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/६२

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कुसुम-वस माफ कीजिए इस समय दिल्लगी अच्छी नहीं मालूम होती मैं आप ही दुखी हो रही है, ऐसा ही है तो लो जाती है। रनवीर-(ऑचल थाम कर) वाह क्या जाना है खैर अब न बोलेंगे (लौडी की तरफ देख कर) वीरसन को यहाँ युला ला। वीरसेन आ मौजूद हुए और रनवीरसिह और कुसुमकुमारी को सलाम कर के बैठ गए। इस समय वीरसेन का चेहरा प्रफुल्लित मालूम होता था जिससे महारानी कुसुमकुमारी को बहुत ताज्जुब हुआ क्योंकि वह सोचे हुए थी कि जब वीरसेन यहाँ आयेगा कालिन्दी की खबर सुन कर जरूर उदास होगा मगर इसके खिलाफ दूसरा ही मामला नजर आता था। आखिर महारानी से न रहा गया बीरसेन से कुसुम-आज तुम बहुत खुश मालूम होते हो । वीर-जी हाँ आज मैं बहुत ही प्रसन्न हू, अगर वैचारी मालती के मरन की खबर न सुनता तो मेरी खुशी का कुछ ठिकाना न हाता। रनवीर-मालती का मरना और कालिन्दी का गायब होना दानों ही बातें बढय हुई। बीर-कालिन्दी का गायब होना तो हमलोगों के हक में बहुत ही अच्छा हुआ। कुसुम-सो क्या ? में तो कुछ और ही समझती थी मुझे तो विश्वास था कि तुम वीर-जी नहीं जो था सो था अब तो कुछ नहीं है इस समय तो हसी राके नहीं रुकती हाँ दीवान साहब को चाहे जितना रज हो उन्हें मैं कुछ नहीं कह सकता । कुसुम--अब इन पहलियों से तो उलझन होती है साफ साफ कहा क्या मामला है? वीरसेन इधर उधर देखने लगे, जिसका सवव रनचौरसिह समझ गए और सब लौडियों का वहाँ से हट जाने का हुक्म दिया। हुक्म के साथ ही सन्नाटा हो गया सिवाय रनवीरसिह कुसुमकुमारी और बीरसेन के वहाँ कोई न रहा तब वीरसेन ने कहना शुरू किया- 'अगर कल मुझे कालिन्दी का हाल मालूम हाता तो आज में आपसे न मिलता क्योंकि में छिप कर सिर्फ यह जानने के लिये यहाँ आया था कि (रनबीरसिह की तरफ देख कर) आपकी तबीयत अब कैसी है ? यहाँ पहुचन पर मालूम हुआ कि अब आप अच्छे है। मै यहाँ पहुच चुका था जब दीवान साहब ने मेरे पास तलवी की चीटी भजी थी । कालिन्दी की लौडी से जो मेरे पास जाया करती थी और जिसको बहुत कुछ देता लेता रहता भी था कालिन्दी का हाल पूछा तो मालूम हुआ कि आज कल न मालूम किस धुन में रहती है दिन रात रोचा करती है कुछ पता नहीं लगता कि क्या मामला है। यह सुन कर मुझे कुछ शक मालूम हुआ। रात को जब दीवान साहय इन्तजाम में फेंरा हुए थे और चारो तरफ सन्नाटा था मै कमन्द लगाकर कालिन्दी के यैठक में जा पहुचा। उस समय कालिन्दी और मालती अपस में कुछ बातें कर रही थी मैं छिप कर सुनने लगा। 'देर तक दोनों में बातें होती रही जिससे मालूम हुआ कि कालिन्दी दुष्ट जसपन्तसिह पर आशिक हो गई है और उसके पास जाया चाहती है मालती ने उसे बहुत समझाया और कहा कि जसवन्त को क्या पड़ी है जो अपनी धुन। छोड तेरी खातिर करेगा मगर कालिन्दी ने कहा कि मैं उसकी मदद करूगी और यह किला फतह करा दूंगी तब तो मेरी खातिरदारी करेगा। मैं उस सुरग का हाल उसे बता दूंगी जो इस किले में आने या यहाँ से जाने के लिय बनी हुई है क्योंकि मैं जानती हू कि सनीचर के दिन वीरसेन अपनी फौज लेकर उसी सुरग की राह इस किले में आगे ओर उनके आने की उम्मीद में उसका दर्वाजा खुला रहेगा । यह सुन मालती बहुत रज हुई और कालिन्दी को समझाने बुझाने लगी पर जब अपने समझाने का कोई अच्छा नतीजा न देखा तव मालती ने चिढ कर कहाकि मै तेरा भेद खाल दूंगी बस फिर क्या था मालती को अपने अनुकूल न देख कालिन्दी झपट कर उसकी छाती पर चट चैठी और यह कहती हुई कि देखू तू मेरा भेद कैसे खोलती है कमर से खजर निकाल उसके कलेजे के पार कर दिया। मै उसी समय यह आवाज देता हुआ वहाँ से चल पड़ा कि ऐ कालिन्दी तेरा भेद छिपा न रहेमा और तुझे इसकी सजा जरूर मिलेगी। 'मेरी बात सुन कर कालिन्दी बहुत घबराई और इधर उधर मेरी तलाश करने लगी पर मै बहा कहाँ था !आखिर उसने मदानी पोशाक पहिरी मुह पर नकाब डाला, और कमन्द लगा अपने मकान से पिछवाडे की तरफ उतर पड़ी तथा बालेसिह की तरफ चली गई। मैंने भी कुछ टोकटाक न की और उसे वहाँ से बेखटके चले जाने दिया ! वीरसेन की जुबानी यह हाल सुन रनवीरसिह तो कुछ सोचने लगे मगर महारानी कुसुमकुमारी की विचित्र हालत हो गई । रनवीरसिह ने बहुत कुछ समझा बुझाकर उसे ठढा किया। कुसुम-(वीरसेन से) तुमने उसे जाने क्यों दिया रोक रखना था, फिर मै उससे समझ लेती । देवकीनन्दन खत्री समग्र १०७०