पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/६०६

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

दि ? - वडा उत्साह है और जिस दिन से राजा गोपालसिंह का पता लगा है उसी दिन से मै उनके दुश्मनों की खोज में लगा हूँ और बहुत सी बातों का पता लगा भी चुका हूँ। जिन्न-(बात काट कर ) तो क्या तुमको इस बात की खबर न थी कि मायारानी ने गोपालसिह को कैद कर के किसी गुप्त स्थान में रख दिया है ? भूत-नही बिल्कुल नहीं। जिन्न-और इस बात की भी खवर न थी कि मायारानी वास्तव में लक्ष्मीदेवी नहीं है। भूत-इस बात को तो मै भी अच्छी तरह जानता था। जिन्न-तो तुमने राजा गोपालसिह के आदमियों को इस बात की खबर क्यों नहीं की? भूत मैने इसलिए मायारानी का असल हाल किसी से नहीं कहा कि मुझे राजा गोपालसिंह के मरने का पूरा-पूरा विश्वास हो चुका था और उसके पहिले भै रणधीरसिहजी के यहाँ नौकर था तब मुझे दूसरे राज्य के मले बुरे कामों से मतलब ही क्या था । जिन्न-तुमसे और हेलासिह से जब दोस्ती थी तब तुम किसके नौकर थे? भूत-मुझसे और हेलासिह से कभी दोस्ती थी ही नहीं मैिं तो आपसे कैदखाने के अन्दर ही कह चुका हूँ कि राजा गोपालसिह के छूटने के बाद मैंने उन कागजों का पता लगाया है जो इस समय मेरे ही साथ दुश्मनी कर रहे है और जिन्न-हाँ हॉ जो कुछ तुमने कहा था मुझे चखूबी याद है अच्छा अव,यह बताओ कि इस समय तुम कहॉ जाओगे और क्या करोगे? भूत-मैं खुद नहीं जानता कि कहाँ जाऊगा और क्या करूंगा बल्कि यह बात मैं आप ही से पूछने वाला था। जिन्न-(ताज्जुब से ) क्या तुम्हें मालूम नहीं है कि बलभद्रसिह को किसने कैद किया और अब वह कहाँ है? भूत--इतना तो मै जानता हूँ कि बलभदसिह को मायारानी के दारोगा ने कैद किया था मगर यह नहीं मालूम कि इस समय वह कहाँ है। जिन्न--अगर ऐसा ही है तो कमलिनी के तिलिस्मी मकान के बाहर तुमने तेजसिह से क्यों कहा था कि मेरे साथ काई चले तो मै असली बलभद्रसिह को दिखा दूंगा? इस बात से तो तुम खुद झुठे साबित होत हो । भूत-येशक मैंने नादानी की जो ऐसा कहा मगर मुझे इस बात का निश्चय हो चुका है कि बलभद्रसिह अभी तक जीता है और उसे तिलिस्मीदारोगा ने कैद कर लिया था। जिन्न-इसी से तो मै पूछता हूँ कि अब तुम कहा जाओगे और क्या करोगे? भूत-अगर वह दारोगा मेरे काबू में होता तब तो मै सहज ही में पता लगा लेता मगर अब मुझे इसके लिए बहुत कुछ उद्योग करना होगा तथापि इस समय मै जमानिया में राजा गोपालसिह के पास जाता हूँ, यदि उन्होंने मेरी मदद की तो अपना काम बहुत जल्द कर सकूँगा मगर आशा नहीं है कि वे मेरी मदद करेंगे क्योंकि जब वे मेरे मुकदमें का हाल सुनेंगे तो जकर मुझको नालायक बनायेंगे (कुछ सोच कर) अभी तक यह भी मुझे मालूम नहीं हुआ कि आप कौन है, अगर जानता तो कहता कि राजा गोपालसिंह के नाम की आप एक चीठी लिख दें। जिन्न--मेरा परिचय तुम्हे सिवाय इसके और कुछ नहीं मिल सकता कि मैं जिन्न हूँ और हर जगह पहुचने की ताकत रखता हू। खैर तुम राजा गोपालसिंह के पास जाओ और उनसे मदद मागो मैं तुम्हें एक सिफारिशी चीठी देता हू तुम्हारे पास कागज कलम है ? मूत-जी हाँ आपकी कृपा से मुझे मेरा ऐयारी का बटुआ मिल गया है और उसमें सव सामान मौजूद है। इतना कह कर भूतनाथ रुक गया और एक पेड़ के नीचे बैठने के लिए जिन्न को कहा मगर जिन्न ने ऐसा करने से इनकार कर दिया और आगे की तरफ इशारा करके कहा "उस पेड़ के नीचे चलकर हम ठहरेंगे क्योंकि वहाँ हमारा घोडा मौजूद है। थोडी ही देर में दोनों आदमी उस पेड के नीचे जा पहुँचे । भूतनाथ ने देखा कि कसे कसाये दो उम्दा घोडे इस पड़ की जड के साथ यागडोर के सहारे बधे है और जिन्न ही की सूरत-शक्ल ढाल का एक आदमी उनकेपास टहल रहा है जो जिन्न के वहाँ पहुचते ही सलाम करको एक किनारे खड़ा हो गया। जिन्न ने भूतनाथ से कलम-दवात और कागज लकर कुछ लिखा और भूतनाथ को देकर कहा यह चीटी राजा गोपालसिह को दना वस अब तु जाओ। इतना कह कर जिन्न एक घोड़े पर सवार हो गया जिन्न ही की सूरत का दूसरा आदमी जो वहां मौजूद था दूसरे घोडे पर सवार हो गया और भूतनाथ के देखते ही देखते दूर जाकर ये दोनों उसकी नजरों से गायब हो गये । भूतनाथ तरबुद और परेशानी के सबब से उदास और सुस्त हो गया था इसलिए थोड़ी देर तक आराम करने की नीयत से उसी पेड के नीचे बैठ जाने बाद उस पत्र को पढने लगा जो जिन्न ने राजा गोपालसिह के लिए लिख दिया था। देवकीनन्दन खत्री समग्र ५९