पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/६०२

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६ आनन्द-जब वह बुड्ढा येघडफ इसके अन्दर कूद गया तो यह कुओं जरूर किसी तरफ निकल जाने का रास्ता होगा। इन्द्र-मैं भी यही समझता हूँ। आनन्द-यदि कहिये तो मैं इसके अन्दर जाऊँ? इन्द-नहीं नहीं ऐसा न करना बड़ी नादानी होगी, तुम इस तिलिस्म का हाल कुछ भी नहीं जानते हाँ मैं इसके अन्दर देखटके जा सकता हूँ क्योंकि तिलिस्मी किताब पढ चुका हूँ और वह मुझे अच्छी तरह याद भी है मगर मै नहीं चाहता कि तुम्हें इस जगह अकेला छोड़ कर जाऊँ। आनन्द-तो फिर अब क्या करना चाहिए? इन्द्र-बस सब के पहिले तुम इस तिलिस्मी किताब को पढ जाओ और इस तरह याद कर जाओ कि पुन इसके देखने की आवश्यकता नरहे फिर जो कुछ करना होगा किया जायगा। इस समय इस बुडढे का पीछा करना हमें स्वीकार नहीं है। जहाँ तक मै समझता हूँ यह दगाबाज बुडला खुद हम लोगों का पीछा करेगा और फिर हमारे पास आयेगा बल्कि ताज्जुब नहीं कि अबकी दफे कोई नया रग लाये। आनन्द-जैसी आज्ञा अच्छा तो वह किताब मुझे दीजिए मै यद जाऊँ। दोनों माई लौट कर फिर उसी मन्दिर के पास आये और आनन्दसिंह तिलिस्मी किताव को पढने में लौलीन हुए। दोनों भाई चार दिन तक उसी याग में रहे। इस बीच में उन्होंने न तो कोई कार्रवाई की और न कोई तमाशा देखा हाँ आनन्दसिह ने उस किताब को अच्छी तर पढ डाला और सब बातें दिल में बैठा ली। वह खून से लिखी हुई तिलिस्मी किताब बहुत बडी न थी और उसके अन्त में यह बात लिखी हुई थी निसन्देह तिलिस्म खोलने वाले का जेहन तेज होगा !उसे चाहिए कि इस किताब को पढकर अच्छी तरह याद कर ले क्योंकि इसके पढने से ही मालूम हो जाएगा कि यह तिलिस्म खोलने वाले के पास बची न रहेगी किसी दूसरे काम में लग जायगी ऐसी अवस्था में अगर इसके अन्दर लिखी हुई कोई बात भूल जायगी तो तिलिस्म खोलने वाले की जान पर आ बनेगी। जो आदमी इस किताब को आदि से अन्त तक याद न कर सक वह तिलिस्म के काम में कदापि हाथ न लगावे नहीं तो धोखा खायेगा। दूसस बयान दिन लगभग पहर भर के चढ चुका है। दोनों कुमार स्नान ध्यान पूजा से छुट्टी पाकर तिलिस्म तोडने में हाथ लगाने के लिए जा ही रहे थे कि रास्ते में फिर उसी बुड्ढे से मुलाकात हुई। बुडदे ने झुक कर दोनों कुमारों को सलाम किया और अपनी जेब में से एक चीठी निकाल कुँअर इन्द्रजीतसिह के हाथ में देकर बोला 'देखिए राजा गोपालसिह के हाथ की सिफारिशी चीनी ले आया हूँ इसे पढ कर तव कहिए कि मुझ पर मरोसा करने में अब आपको क्या उन है ? कुमार ने चीठी पढी और आनन्दसिह को दिखाने के बाद हँस कर उस बुडटे की तरफ देखा। बुड्ढा-(मुस्कुरा कर) कहिए अब आप क्या कहते हैं ? क्या इस पत्र को आप जाली या बनावटी समझते हैं ? इन्द्र-नही-नहीं, यह चीठी जाली नहीं हो सकती मगर देखो तो सही-(आनन्दसिह के साथ से चीठी लेकर और चीठी में लिखे हुए एक निशान को दिखा कर ) इस निशान को तुम पहिचानते हो या इसका मतलब तुम जानते हो ? युद्धदा-(निशान देखकर ) इसका मतलब तो आप जानिए या गोपालसिह जानें मुझे क्या मालूम यदि आप चतलाइये तो इन्द्र-इसका मतलब यही है कि यह चीठी वेशक सच्ची है मगर इसमें जो कुछ लिखा है उस पर ध्यान न देना । बुड्ढा- क्या गोपालसिह ने आपसे कहा था कि हमारी लिखी जिस चीती पर ऐसा निशान हो उसकी लिखावट पर ध्यान न देना। इन्द्र-हॉ मुझसे उन्होंने ऐसा ही कहा था इस लिए जाना जाता है कि यह चीठी उन्होंने अपनी इच्छा से नहीं लिखी बल्कि जबर्दस्ती किये जाने के सवव से लिखी है। बुद्धदा-नहीं नहीं ऐसा कदापि नहीं हो सकता आप भूलते है उन्होंने आपसे इस निशान के बारे में कोई दूसरी यात कही होगी। कुमार-नहीं नहीं मैं ऐसा भुलक्कड़ नहीं हूँ, अच्छा आप ही बताइये यह निशान उन्होने क्यों बनाया। चुडढा-यह निशान उन्होंने इस लिए स्थिर किया है कि कोई ऐयार उनके दोस्तों को उनकी लिखावट का धोखा न देयकीनन्दन खत्री समग्र