पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/५७७

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६ । उनके चेहर का खास हिस्सा नाम मात्र घूघट में छिपा हुआ था। खेर जाने दीजिए ऐस तम्बाकू पीने के लिए छप्पर फूकन वाले लोगों का जिक्र ज्हा तक कम आय अच्छा है। हम तो आज नानक को ऐसी अवस्था में देखकर हैरान हैं और कमलिनी तथा तजसिह की भूल पर अफसास करते है यह वही नानक है जिसे हमारे ऐयार लाग नेक और होनहार समझते थे और अभी तक समझते होगे मगर अफसोस इस समय यदि किसी तरह कमलिनी को इस बात की खबर होजाती कि नानक के धर्म तथा नेक चाल चला के लम्ब चौड दस्तावेज का दीमक चाट गए अब उसका विश्वास करना या उसे सच्चा ऐयार समझना अपनी जान के साथ दुश्मती कर तो बहुत अच्छा होता ।यद्यपि किशोरी कामिनी लाडिली लक्ष्मीदेवी और बीरेन्दसिह के एयारों का दिल भूतनाथ स फिर गया है मार नानक पर कदाचित अभी तक उनकी दयादृष्टि पनी हुइ हे। नानक की स्त्री ने बर्तन में से दा टुकडा गाश्त निकाल कर गज्जू बाबू की थाली में रखा ओर पुन निकाल कर थाली में रक्खनेके लिये झुकी थी गहर किसी न किसी आदमी ने वर्ड जोर से पुकारा अजी नानक हा जी इस आवाज का सुनत ही नानक चोक गया और उसने दाई की तरफ देख के कहा जल्दी जी देख तो सही कौन पुकार रहा है ? दाई दौडी हुइ दर्वाजे पर गइ दर्वा जा खाल कर जब उसने बाहर की तरफ देखा तो एक नाकाबपोश पर उसकी निगाह पड़ी जिसने चेहरे की तरह अपने तमाम बदन का भी काले कपड़ से ढक रक्खा था। उसक तमाम कपडे इतने ढीले थे कि उसको अग प्रत्यम का पता लगाना या इतना भी जान लना कि यह बुढ्ढा हे या जवान बडा ही कठिन था। दाई उस देख कर डरी। यदि गज्जू बाबू के कई सिपाही उसी जगह दवाजे पर मौजूद न होत तो वह नि सदेह चिल्ला कर मकान क अन्दर भाग जाती मगर गज्जू बाबू क नौकरों पर निगाह पढने से उसे कुछ माहस हुआ और उसने नकाबपाशसे पूछा- दाई-तुम कौन हा और क्या चाहत हो? नकाबपोश-मै आदमी हूँ और नानक परसाद से मिला चाहता हूँ। दाई-अच्छा तुम वाहर बैठो वह भोजन कर रहे है जब हाथ मुँह धो लेगें तब आवेगें। नकाबपोश-ऐसा नहीं हा सकता | तू जाकर कह दे कि भोजन छोड़ कर जल्दी से मेरे पास आयें । जा देर मत कर । यदि थाली की चीजें बहुत स्वादिष्ट लगती हों और जूठा छोड़ने की इच्छा न हाती हो तो कह दीजियो कि रोहताममठ पुजारी आया है। यह बात नकाबपोश न इस ढग से कही कि दाई ठहरन या पुन कुछ पूछने का साहस न कर सकी। किवाड़ बन्द करक दौडती हुई नानक के पास गई और सब हाल कहा। रोहतासमठ का पुजारी आया है इस शब्द ने नानक का बेचैन कर दिया। उसक हाथ में इतनी भी ताकत न रही कि गोश्त के टुकड़े को उठा कर उसके मुंह तक पहुंचा दता। लाचार उसने घपडाई आवाज में गज्जू बाबू से कहा- आच घण्टे के लिए मुझे माफ कीजिय। उस आदमी से यातचीत करना कितना आवश्यक है सो आप इसी से समझ सकते है कि घर में आप ऐसा दोस्त और सामने की भरी थाली छोडकर जाता हूँ। आपकी भाभी साहिवा आपको खुले दिल से खिलावेंगी। (अपनी स्त्री से र्दा चार गिलास आसव का भी इन्हें देना। इतना कह कर अपनी बात का विना कुछ जवाव सुने ही नानक उठ खड़ा हुआ। अपने हाथ से गगरी उडल हाथ मुँह धा दवाजे पर पहुंचा और किवाड खोलकर बाहर चला गया। यद्यपि इस सभय नानक ने तकल्लुफ की टाग तोड डाली थी तथापि इसके चले जाने का गज्जू बाबू के किसी तरह का रज 1 हुआ बल्कि एक तरह की खुशी हुई और उन्होंनेअपने दिल में कहा चलो इनसे भी छुट्टी मिली। दर्वाज के बाहर पहुँच कर नानक न उस काबपोश को दखा ओर बिना कुछ कहे उसका हाथ पकड कर मकान से कुछ दूर ले गया। जब ऐसी जगह पहुँचा जहा उन दोनों की बातें सुना वाला काई दिखाई नहीं देता था तब नानक ने बातचीत आरम्भ की। नानक-मै तो आवाज हो से पहचान गया था कि मर दास्त आ पहुंचे मार लौडी को इसलिए दवाजे पर भगा था कि मालूम हो जाय कि आप किस ढग स आए है और किस प्रकार की यबर लाए है। जब लौडी ने आपकी तरफ से राहतासमठ के पुजारी का परिचय दिया यस कलेजा दहल उठा मालूम हो गया कि खवर भयानक है नकाव-वेशक एसी ही बात है। कदाचित तुम्हें यह सुनकर आश्चय होगा कि तुम्हारा बहुत दिनों से साया हुआ बाप अर्थात भूतनाय अव भेदान की लाजी हवा खान यान्य नहीं रहा। नानक-सा क्यों? नकाबपोश-उरएका दुर्दव जो बहुत दिनों तक णर में चादी की तरह छिपा हुआ था एक दम प्रकट हा गया। उमन चन्द्रकान्ता सन्तति भाग १२