पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/५५८

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

ari देवी-- हा यदि आवश्यकता होगी तो कहूँगा और इसमें तुम्हारा कुछ हर्ज नहीं है परन्तु विश्वास रक्खो कि इन बातों का असल भेद जिनका पता भविष्य में मैं लगाऊगा अपनी प्रतिज्ञानुसार किसी से न कहगा। भूत-( मजबूरी के ढग से ) बहुत अच्छा मै जाता हूँ। भूतनाथ वहा से चला गया। देवीसिंह ने उस विचित्र मनुष्य की गठरी बाधी और उस जगह आय जहा दानों घोडी को छोड़ा था। घोड़ो पर जीन कसन के बाद एक पर उस आदमी को लादा और दूसरे पर आप सवार हाकर उस तरफ रवाना हुए जहा कमलिनी किशोरी कामिनी इत्यादि को छोड़ा था। दसवां बयान दिन ढल चुका था जय देवीसिह विचित्र मनुष्य की गठरी और दानों घोडों को लिए हुए पहा पहुच जहा किशोरी तार। कमलिनी लाडिली और भैरारिम्ह का छापाया। तीतर का शारवा पीस किशारी कामिनी और तारा की तबीयत ठहरी हुई थी और व इस माग्य हो गई थी कि दीवार के सहारे कुछ दर तक बैठ सके अस्तु इस समय जय देवीसिह वहा पहुंचे तो वे तीनों पत्थर की चट्टान के सहारे दैदी हुई कमलिनी और रोिसिह स बातचीत कर रही थी। वहा जगली पड़ों की धनी छाया थी जिनकी टहनिया तेज हवा के झपटा से झोंके खा रही थी और पत्तों की खडपड़ाहट की मधुर ध्वनि बहुत ही भली मालूम देती थी। जिस समय भैरोसिह ने देखा कि देवीसिह के साथ दाना घाडे ही नहीं बल्कि एक गटरी भी है वह उठ कर आगे चढ़ गया और विचित्र मनुष्य मी गटरी अपनी पीठ पर लाद कर कमलिनी के पास ले आया। उस समय सभी की आश्चर्य भरी निगाहे उसी गढरी की तरफ पड़ रही थी। दोनों घोड़ों का पेड़ से वाध कर जब देवीसिह कमलिनी पास पहुचे तो उन्होंने अपन पास की गठरी सोली और सनों 1 बडे गार से विचित्र मनुष्य के चहर पर नजर डाली। यद्यपि दवासिह ने उसक फटे हुए सिर पर कपडा याच दिया था मगर भाडा थोडा सून अभी तक यह रहा था। कमलिनी-इसे आप कहा से लाए और यह कौन है? देवी-मुझे अभी तक मालूम न हुआ कि यह कौन है। कमलिनी-( आश्चर्य से ) क्या खूप अगर ऐसा ही था तो इसे कैद क्यों कर लाय? देवी-इसका किस्सा बडा ही विचित्र है। मुझे अब निश्चय हो गया कि भूतनाथ नि सन्देह किसी भारी घटना का शिकार हो रहा है जैसा कि आपन कहा था। कमलिनी --आछा अव में टूटी फूटी बातें नहीं सुशा चाहती जा कुछ हाल हो युलासा खुलासा कह जाइयं । इस जगह पुन उन बातों को दोहराना पाठकों का समय नष्ट करना है अतएव इतना ही कह देना काफी है कि दवीसिह न अपना पूरा हाल तथा भूतनाथ की जुबानी इस विचित्र मनुष्य और नकाबपोश वगैरह का जो कुछ हाल सुना था कमलिनी से कह सुनाया जिसे सुन कर कमलिनी को बडा ही ताज्जुब हुआ। कमलिनी से भी ज्यादा ताज्जुव तारा को हुआ जब उसने सुना कि इस विचित्र मनुष्य के हाथ में एक गठरी थी जिसके विषय में यह कहता था कि इसके अन्दर तारा की किस्मत बन्द है और गठरी घूमती फिरती किसी नकाबपोश के हाथ में चली गई मालूम नहीं वह नकाबपाश कौन था या कहाँ चला गया। कमलिनी-(तारा से ) जब तुम्हारी किस्मत की गठरी इस आदमी के हाथ में थी तो मालूम होता है कि तुम इसे जानती भी होगी । तारा--कुछ भी नही बल्कि जहा तक मै कह सकती हूमालूम होता है कि मैने इसकी सूरत भी कभी नहीं देखी होगी। कमलिनी-ठीक है इस समय इसके विषय में तुमसे कुछ पूछना भूल है क्योंकि साफ मालूम होता है कि इस आदमी की सूरत वास्तव में वैसी नहीं है जैसी हम देख रहे है। जरूर इसन अपनी सूरत बदली है और इसके बाल भी असली नहीं बल्कि बनावटी है जब वे अलग किए जायेंगे और इसका चेहरा धोया जायगा तब शायद तुम इसे पहिचान सको। तारा-कदाक्ति ऐसा ही हो। कमलिनी-अच्छा तो पहिले इसका चेहरा साफ करना चाहिए। देवकीनन्दन खत्री समग्र