पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/५५४

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खटका पाने के साथ ही झाड़ियों में घुस कर छिप जाने वाले कई तीतरों को पकड लाया और शोरवा पकाने का बन्दोबस्त करन लगा। इधर कमलिनी और दवीसिह में बातचीत होने लगी। देवी-उन दानों घाडों की भी सुध लेनी चाहिए जिन्हें यहा से थोड़ी ही दूर पर एक पेड से बाँध कर छोड आये है। कमलिनी- हाँ उन घोड़ों को भी जिस तरह बने धीरे धीरे यहाँ तक ले आना चाहिये नहीं तो बेचारे जानवर भूख और प्यास के मारे भर जायेंग। एक ता यहाँ का रास्ता एसा खराब है कि घोडों पर सवार होकर मै आ नहीं सकती थी दूसर रात का समय था इसलिए लाचार होकर उनका उसी जगह छोड देना पड़ा पर अब हम लोगों को वहा तक जाने की कोई आवश्यकता नहीं जान पड़ती। देवी-ठीक है अगर कहियं ता मैं उन दानों घाडों को यहाँ ले आऊँ अब तो दिन का समय है और जब तक भैरोसिह खान की तैयारी करता है तब तक बकार बैठे रहने स कुछ काम ही करना अच्छा है। कमलिनी- अगर ले आइए ता अच्छी बात है मगर हाँ सुनिये तो सही भूतनाथ और श्यामसुन्दरसिह को कहा गया था कि आज रात के समय हम लागो स मिलने के लिये उसी ठिकाने तैयार रहें जहाँ भगवानी उनके हवाले की गई थी। देवी - जी हाँ कहा गया था मगर म समझता हू कि अब हम लोगों का वहा जाना वृथा ही है अगर आप कहिय तो में उन लोगों के पास जाऊ और यदि इस समय मुलाकात हो जाय तो इस बात की इत्तिला भी देता आऊ या उन लोगों का इसी जगह लेना आऊ? कमलिनी- एक तो गत हाने के पहिल उन लोगो से मुलाकात ही नही हा सक्ती कौन ठिकाना वहा हो या दूसरी जगह चले गये हों दूसरी बात यह है कि मैं उन लोगो को यह जगह दिखाया नहीं चाहती और न यहा का भेद बताया चाहती हूं क्योंकि आजकल की अवस्था देख कर श्यामसुन्दरसिह पर से भी विश्वास उठा जाता है बाकी रहा भूतनाथ। वह यद्यपि मेरे आधीन हे और इस बात का उद्योग भी करता है कि हम लोगोंको प्रसन्न रक्खे मगर वह कई ऐसी भयानक घटनाओं का शिकार हा रहा है कि बहुत लायक और खैरख्वाह होने पर भी मै उसे किसी भी योग्य नहीं समझती और न इसी बात का विश्वास है कि उसका दिल वैसा ही रहगा जैसा आज है बल्कि मैं कह सकती है कि वह अपने दिल का मालिक आपनहीं है। देवी -- यह ता आप एक ऐसी बात कहती है जिस पहेली की तरह उल्टी भूमिका कहने की इच्छा होती है। कमलिनी - बेशक एसा ही है। इस जगह तिनके की ओट पहाड वाली कहावत ठीक बैठती है। न मालूम वह कौन सा भद है जिसका जानन के लिए पहाड़ ऐसे पचासों दिन नष्ट करने की आवश्यकता होगी। देवी - तो क्या आप भूतनाथ को अच्छी तरह नहीं जानती ? कमलिनी- में भूतनाथ के रम्त पुश्त को जानती है जिसका परिचय आप लोगों को भी आप से आप मिल जायगा। नि सदह भूतनाय दिल स हम लागों का खैरखाह है परन्तु उसका दिल निरोग नहीं है और उसके भीतर का लगर जो फौलाद की तरह उस है किसी चुम्बक की समीपता के कारण सीधी चाल नहीं चलता। मै इस फिक्र में हु कि उसे हर तरह से स्वतन्त्र कर दूं मगर उसक मुँह पर किसी जबर्दस्त घटना के हाथ की लगी हुई मोहर उसके द्वारा कोई भेद प्रकट होन नहीं दती नि सन्दह उस पर किसी अनुचित कार्य का काला धल्या ऐसा मजूबत लगा है कि वह केवल आसुओं के जल से धुल कर साफ नहीं हो सकता। हाय एक दर्फ की चूक जन्म भर के लिए बवाल हो जाती है। आप स्वय चालाक है यदि मेरी तरह खोज में लग रहेंगे तो बहुत कुछ पता पा जायेगे। वह बेशक हम लोगों का खैरखाह है निमकहराम नहीं मगर जिसका दिल इश्क का लवलेश न होने पर भी अपने अख्तियार में न हो उसका क्या विश्वास । कमलिनकी कहीं इन भेद भरी बातों ने केवल देवीसिह ही को नहीं बल्कि किशोरी कामिनी और तारा को भीहैरानी में डाल दिया जा असाध्य रोगियों की तरह जमीन पर पड़ी हुई थी और उनसे थोड़ी ही दूर पर बैठे हुए भैरासिह ने भी कमलिनी की बातों को अच्छी तरह सुना और समझा मगर जिस तरह देवीसिह के दिल पर उन बातों ने असर किया उस तरह भैरोसिह के दिल पर उन बातों ने मालूम होता है असर नहीं किया क्योंकि भैरोसिह के चेहरे पर उन बातों को सुनने स आश्चर्य या उत्कण्ठा की काई निशानी नहीं पाई जाती थी। कुछ देरातकसाचने के बाद देवीसिह यह कह कर उठ खडे हुए अच्छा मैं पहिले घोड़ों की फिक में जाता हूँ फिर जैसा होगा देखा जायगा।

  • तीतरों और नटरों की प्रकृति है कि यदि उनके पीछे दौडिये तो वे भी आगे आगे पहिल तो दौडते है और इसक

बाद अगल बगल की झाडी म एसा घुस बैठते है कि जल्दी पता नहीं लगता हा जयसाफ मैदान पाते है अर्थात पास में कोई छोटी या बड़ी झाडी नहीं होती ता उड भी जाते है। देवकीनन्दन खत्री समग्र