पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/५३८

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eget - इसी समय पूरव नरफ से बाज की आवाज इन लागा क कानों में पहुची। सिपाहियों के साथ साथ शिवदत्त भी चौकन्ना हो गया और गोर के साथ पूरब तरफ देखता हुआ बोला यह ता फोजी बाजे की आवाज है। वह देखो इसकी गत साफ न्हे देती है कि राजा बीरद्रसिह की फोज आ रही है क्योंकि वीरेन्दसिह जय चुनार की गद्दी पर बैठे थ तो तेजसिह ने अपने फोजी बाज वाला के लिए यह खास गत तैयार की थी। तब से उनकी फौज में प्राय यह गत बजाई जाती है। मैं इसे अच्छी तरह जानता हू। देखा वह गर्द की दिखाई दन लगी अब क्या करना चाहिये ? जहा तक मैं समझता हू तुम्हारे हमल की खयर रोहतासगढ़ पहुची है और वह फौज राहतासगढ से आ रही है मगर दो तीन सो से ज्यादे आदमीमहामे। इसके बाद पश्चिम की तरफ से बाज की आवाज आई और गौर करने पर मालूम हुआ कि पश्चिम तरफ से भी फौज आ रही है। शिवदत्त के सिपाही बहुत महनत कर चुक थ न भी मेहनत किये हा तो क्या था राजा वीरेन्द्रसिह की फौज की खबर पाकर अपने कलजे को मजबूत रखना एसे सिपाहियो का काम न था जो वर्षों बिना तनख्वाह के सिर्फ मालिक के नाम पर अपन सिपाहीपन को टेरे जाते हो। उन लोगों न घबडा कर शिवदत्त की तरफ देखा। यद्यपि कैद की सख्ती ने शिवदत्त की सूरतशकल और आवाज में भी फक डाल दिया था मगर इस समय राजा वीरेन्द्रसिह की फौज के आहेस उसके चेहर पर किसी तरह की घबराहट या उदासी नहीं पाई गई। शिवदत्त ने अपने सिपाहियों की तरफ देखा और हिम्मत दिलान वाल शब्दा में कहा घबराओ मत हिम्मत न हारा हौसले के साथ भिड़ जाओ और इन सभों का असवाव भी लूट ला मगर इस बात का खूब ध्यान रक्खा कि भाग फर इस मकान क अन्दर न घुस जाना नहीं तो चारो तरफ से घर कर सहज ही में मार डाल जाआगे। यदि मैदान में डटे रहाग ता कठिन समय पड़ जाने पर भागन को भी जगह मिलगी - इत्यादि। क्या करें? लडे या न लड रुके या भाग जाय ? इत्यादि सोच विचार आर सलाह में ही बहुत सा अमूल्य समय निकाल गया और धावा करते हुए राजा वीरेन्द्रसिह के फोजी सिपाहियो ने पूरव और पश्चिम तरफ से आ कर दुश्मनों को घेर लिया। यद्यपि शिवदत्तक सिपाही भागने के लिये तैयार यमगर शिवदत्त के हिम्मत दिलाने वाले शब्दों की बदौलत जिन्ह वह बार बार अपने मुंह से निकाल रहा था थोड़ी दर के लिए अड गये और राजा वीरेन्दसिह की फौज से जा गिनती में दो सौ से ज्यादे न होगी जी ताड के लडालगे। उनके अटल रहने और जी तोड़ कर लडीका एक यह भी सबव था कि उन लागा न गजा वीरन्दसिह के फोजी सिपाहियों को जो वास्तव में राहतासगह से आये थे गिनती में अपने से बहुत कम पाया था। यह थोडी सी फोज जा रोहतासगढ से आई थी चुन्नीलाल ऐयार के आधीन थी। चुन्नीलाल ने जासूसों को भेज कर इस बात का पता पहिले ही लगा लिया था कि तालाव वाले तिलिस्मी मकान पर हमला करन वाले दुश्मा कितने और किस डग क है इसके बाद उसने अपनी फौज का फैला कर दुश्मनों को चारों तरफ स घर लेने का उद्योग किया था और जो कुछ सोच रक्खा था वही हुआ। चुन्नीलाल की मातहत फौज न दुशनों का धर कर बतरह मारा। चुन्नीलाल रवय तलवार लेकर मैदान में अपनी बहादुरी दिखाता हुआ अपने सिपाहियों की हिम्मत बढा रहा था और जिधर घुस जाता था उधर ही दस पॉच का खीर ककडी की तरह काट गिराता था। यह हाल देख दुश्मन वमले झाकने लगे मगर लडाई इस ढग से हो रही थी कि यहाँ से वच कर निकल भागना भी मुश्किल था। दा घटे की लडाई में आध से भी ज्यादे दुश्मन मारे गये और बाको भाग कर अपनी जान बचा ल गये। वीरन्द्रसिह ये कोवल बीस बहादुर काम आय। इस घमासान लडाई के अन्त में इस बात का कुछ भी पता न लगा कि शिवदत्त यहादुरी के साथ लड कर मारा गया था मोका मिलन पर निकल भागा। जव दुश्मना में से सिवाय उन सभी क जामौत की गोद में सो चुके थे या जमीन पर पडे सिसक रह थे और कोई भी न रहा सव भाग गये तब केवल दस बारह आदमियों को साथ लकर चुन्नालाल तिलिस्मी मकान की तरफ बढा मगर मकान में पहुचनें के पहिल ही सिपाही सूरत का एक आदमी जो उसी मकान में से निकल कर इनकी तरफ आ रहा था उसे निला ! उसके हाथ में लिफाफे के अन्दर वन्द एक चीठी थी जो उसने चुन्नीलाल के हाथ में दे दी और चुपचाप खडा हो गया। चुन्नीलाल ने भी उसी जगह अटक कर लिफाफा खाला और बड़े ध्यान से चीठी पढने लगा। समाप्त हाने तक कई दफ चुन्नीलाल के चेहरे पर हँसी दिखाई दी और अन्त में वह बड गौर स उस आदी की सूरत देखने लगा जिसने चोठी दी थी तथा इसके बाद इशारे स सिर हिलाया मानो उस आदमी को वहा स वेफिक्री के साथ चल जाने के लिये कहा और वह आदमी भी विना सलाम किये झूमता हुआ, वहाँ से चला गया। चुन्नीलाल कइ आदमियों को साथ लेकर तिलिस्मी मकान के अन्दर गया। उसने वहा अच्छी तरह घूम घूम कर देवकीनन्दन खत्री समग्र