पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/५२८

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तारा तर्जा के साथ बल्कि या कहना चाहिए कि दोडती हुई उस सुरग में रवाना हुइ और जब वह थाडी दूर चली गई तान्साई आदमी दिखाई पड़ जो आगे की तरफ जा रहे थे मगर अपने पीछे तिलिस्भी ने की असा चमक देख कर रुक गये और ताज्जुब भरीगाहा से उस धमक का दख रहे थे जो पल भर में पास होकर उनका मे चकाचौंध पैदा कर रही थी। ये लोग वे ही यजो किशोरी आर कामिनी को जबर्दस्ती पकड क ल गये थे। व लाग युहत दूर जान न पाये थे जब लिलिरमा नजा लिए हुए तारा लोट आई थी उसके अतिरिक्त किशोरी और कामिनी को जबर्दस्ती घसीटते लिए जा रहे थे इसलिए तेज भी नहीं चल सकत थ यही सवव था कि तारा ने बुहत जल्द उन्हें जा पकडा । उन लोगा के साथ एक लालटन थी मगर नेजे की चमक ने उसे वेकार कर दिया था। जब उन लोगों ने दूर से तारा को दखा तो एक दफे उनकी यह इच्छा हुइ कि तारा का भी पकड लना चाहिए परन्तु नेजे की अदभुत करामात ने उनका दिल तोड़ दिया और चमक से उनकी आँख ऐसी बेकार हुई कि भागन का भी उद्याग न कर सके। बात की बात में तारा उन लोगो के पास जा पहुची जा गिरती में चार थे। यदि लारा के हाथ में तिलिस्मी नजान होताता 4 लोग उसे भी अवश्य पकड़ लेत मगर यहा ता मामला ही और था। नेजे की चमक से लाचार होकर वे स्वय दोनों हाथों से अपनी अपनी आँखेबन्द करके बैठ गये थे तथा किशोरी और कामिनी की भी यही अवस्था थी। तारा ने फुर्ती से तिलिस्मी नेजा चारो आदमियों के बदन से लगा दिया जिससे वे लाग काप कर बात की बात में यहाश हा गय। अब सारा ने नेजे का मुद्दा ढीला किया उसकी चमक बन्द हो गई और उस समय किशोरी ओर कामिनी ने आँख खालकर तारा को देखा। किशारी और कामिनी का हाथ रस्सी से बेधा हुआ था जिसे तारा ने तुरन्त खाल दिया। किशोरी ओर कामिनी बडी मुहव्वत के साथ सारा से लिपट गई और तीनो की आखों से गर्म आसू गिरन लगे। तारा न किशोरी और कामिनी ने कहा बहिन तुम जरा यहाँ टहरो मैं थाडी दूर तक आगे बढ़ कर दखती हूं कि क्या हाल है अगर कोई दुश्मन न मिला ता भी सुरग के दूसर किनारे पर पहुच कर दर्याजा बन्द कर दना आवश्यक है। मुझे निश्चय है कि बाहरी दुश्मन इस दरयाज का नहीं खाल रक्त मगर ताज्जुब है कि कैदियों ने क्योकर ये दवाज खोले। किशोरी-ठीक है मगर मरी राय नहीं है कि तुम आगे बढ़ो कहीं ऐसा न हो कि दुश्मनों का सामन जाय इससे यही उचित होगा कि यहा से लौट चला और सुरग तथा तहखाने का मजबूत दर्वाजा बन्द करके चुपचाप बैठो फिर जो ईश्वर करेगा देखा जायगा। तारा-(कुछ सोच कर ) बेहतर होगा कि तुम दानो चली जाओ और सुरग तथा तहखाने का दर्वाजा बन्द करके चुपचाप बैठो और मुझे इस सुरंग की राह से इसी समय निकल जाने दो क्योंकि कैदियों का भाग जाना मामूली बात नही हे नि सन्दह वे लोग भारी उपद्रव मचायेगे ओर मुझे कमलिनी के आगे शर्मिन्दगी उठानी पडेगी। यह तो कहो ईश्वर न बडी कृपा की कि यहि तुम दोनों शीघ ही मिल गई नहीं तो अनर्थ हो ही चुका था और मैं कमलिनी को मुहें दिखाने लायक नहीं रही थी अब जब तक कैदियों का पता न लगा लूगी मेरा जी ठिकाने २ होगा। कामिनी-बहिन तुम कह क्या रही हो जरा सोचो तो सही कि इतने दुश्मनों में तुम्हारा अकेले जाना उचित हागा और क्या इस बात का हम लोग मार ली। तारा-(तिलिस्मी नेजे की तरफ इशारा करके ) यह एक ऐसी चीज मेरे पास है कि मैं हजार दुश्मनों के बीच में भी अकेली जा कर फतह के साथ लौट आ सकती है। यद्यपि तुम दोनों ने इस समय इस नेजे की करामात देख ली मगर फिर भी में कहती हू कि इस नज का असल हाल तुम्हे मालूम नहीं है इसी से मुझे रोकती हो। किशोरी-बेशक इस नेजे की करामात मैं देख चुकी है और यह नि सन्देह एक अनूटी चीज है मगर फिर भी में तुमको अकेले न जाने दूंगी अगर जिद करोगी तो हम दानों भी तुम्हारे साथ चलेंगी। तारा न बहुत समझाया और जोर मारा मगर किशोरी और कामिनी ने एक न मानी ओर तारा को मजबूर हो कर उन दोनों की बात माननी पड़ी। अन्त में यह निश्चय हुआ कि सुरग के किनारे पर चल कर उसका दाजा बन्द कर देना चाहिये और इन बदमाशों को भी घसीट कर ले चलना और सुरग के बाहर कर देना चाहिय अदने आदमियों को कैद करने की आवश्यकता नहीं है-आखिर ऐसा ही किया गया। किशोरी कामिनी और तारा केदियों का घसीटती हुई गईऔर आध घटे मे सुरग के दूसरे मुहान पर पहुची। यह मुहाना पहाडी के एक खोह से सम्बन्ध रखता था और वहाँ लाहे का छोटा सा दर्वाजा लगा हुआ था जो इस समय खुला था। तारा ने कैदियों को बाहर फेंक कर दवाजा बन्द कर दिया और इसके बाद तीनों वहा से लौट पड़ी। रास्ते में तारा ने तिलिस्मी नेजे और खजर का पूरा पूरा हाल किशोरी और कामिनी को समझाया । देवकीनन्दन खत्री समग्र ५२०