पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/५२७

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त साउन न या। इस कोठरी म मजबूत ताला लगा हुआ था जो खोला गया और तीनों कोठरी के अन्दर गई। कोठरी बहुत छाटी थी और इस याग्य न थी कि वहा का कुछ हाल लिखा जाय। इस कोठरी के नीचे एक तहखाना था जिसमें जाने के लिए छाटा सा मगर लाहे का और मजबूर दवाजा जमीन में दिखाइट रहा था। तारा ने लालटन जमीन पर रख र कमर म स ताली निकाली और तहखान का दवाजा खोला । नीचे विल्कुल अन्धकार था इसलिए तारा न जय लालटेन उठा कर दिखाया त छोटी छाटी सठिया नजर पड़ी। किशोरी कामिनी को पीछे पीछे आने का इशारा करके तर तहखान म उतर गई मगर जर नीचे पहुची तायकायकाचौक कर ताज्जुब भरी निगाह के साथ इस तरह चारों तरफ दखन लगी जैम पिसी की कोई अनमाल अलभ्य और अनूठी चीज यकायक सामने स गुम हो जाय और वह आश्चर्य से चारो तरफ देखने लगा यह तहखाना दस हाथ चौडा और पन्द्रह हाथ लम्चा था। इसकी अवस्था कहे दती थी कि यह जगह केवल हथफड़ी बड़ी म सुशामित कैदियों की खातिरदारी के लिये ही वनाई गई है। चिना चौकट दर्वाजे की छोटी छोटी दस काटरिय कारक के साथ दूसरी लगी हुई थीं एक तरफ और उसी टग की उतनी ही कोठरियाँ उसके सामन दूसरी तरफ बनी हुई थीं। इतनी कम जमीन में यास कारियों के ध्यान ही स आप समझ सकते हैं कि कैदियों का गुजारा किस तकलक सहाता होगा। दाना तरफता काठरियों की पक्ति थी और बीच में थाडी से जगह इम याग्य बची हुई थी कि यदि कैदियों को रोटी पानी पहुंचान या दखने के लिय काई जाय तो अपना काम बखूली कर सके। इसी बची हुई जमीन के एक सिरे पर नहसान जान के लिए सीटिया बनी हुई थी। जिस राह स इस समय तारा किशोरी और कामिनी आई थीं उसी के सामाजयात दूसर सिर पर लाह का एक छोटा मजबूत दवाजा था जो इस समय खुला था और एक बड़ा सा खुला हुआ ताला उसक पास ही जमीन पर पड़ा हुआ था जो यशक उसी दगजे में उस समय लगा होगा जब वह दरवाजा बन्द हागाइसी दरवाज का खुला हुआ और अपन कैदियों कत न दख कर तारा थोकी ओर घबरा कर चारों तरफ देखने लगी थी। तारा-बड आश्वय की बात है कि हथकडी बेडीस जकड़े हुए केदी क्योंकर निकल गये और इस दरवाजे का ताला किसन खाल्ग। नि सन्दह या ताहमार नौकरों में सकिनी ने कैदियों की मदद की या कैदियों का कोई मित्र इस जगह आ पहुचा। मार नहीं इस दवाजे का दूसरी तरफ से काई खाल नहीं सकता परन्तु किशोरी-क्या यह किसी सुरग का दवाजा है? तारा-समय पइन पर आनेजान के लिए यह एक सुरग है जो यहाँ स बहुत दूर जाकर निकली है। वर्षों हा गये कि इस सुरंग से कोई काम नहीं लिया गया केवल उस दिन यह सुरग खोली गई थी जिस दिन तुम्हारे पिता गिरफ्तार हुए थे क्योंकि व इसी सुरग की राह से यहा लाए गये थ। कामिनी-म समझती हू कि इस सुरग के दांज का बन्द करने में जल्दी करना चाहिए। कहीं ऐसा न हो कि इस राह सदुश्मन लाग आ पहुचे और हमारा यना रनाया खेल विगड जाय । किशोरी- मेरी तो यह राय है कि इस सुरग के अन्दर चल कर देखना चाहिए शायद कैदियों का कुछ तारा-मेरी भी यही राय है भगर इस तरह खाली हाथ सुरग के अन्दर जाना उचित न होगा शायद दुश्मनों का सामना हो जाय अच्छा ठहरों में तिलिस्मी नेजा लेकर आती हूँ। एनन्ग कह कर तारा तिलिस्मी नेजा लेने क लि, चली मगर अफसास उसावडी भारी भूल की कि सुरग के दर्वाजे का विना बन्द किए ही चली आई और इसके लिए उसे बहुत रज उठाना पड़ा अर्थात जय वह तिलिस्मी नेजा लेकर लौटी और तहबान म पहुची तो वहाँ किशारी और कामिनी को 7 पाया निश्चय हो गया कि उसी सुरग की राह स जिसका दाजा खुला हुआ था दुश्मन अग्य और किशोरी तथा कामिनी को पकड के ले गये। दूसरा बयान विशारी और कामिनी क गायव हा जान का तारा का बडा रज हुआ यहाँ तक कि उसने अपनी जान की कुछ भी परवाह न की और तिलिस्मी नजा हाथ में लिए हुए बेडक उस सुरग में घुस गई। यह वही तिलिस्मी भेजा था जो कमलिना न उसे दिया था और जित्त पर तारा को बहुत भरोसा था। अर' पहिले तारा की इस सुरंग का अन्दर जाने का अवसर नहीं पड़ा था इसलिए वह नहीं जानती कि वह सुरम कैसी है अरतु उभने तिलिस्मी नज का कम दवाया उत्तमें से बिजली की तरह चमक पैदा हुई और उसी रोशनी में तारा न दवाज कदम रक्खा। दो ही ऊदा जाने बाद नीचे उतरने के लिए कई सीढियों दिखाई दी और जब तारा गीच उतर गई ता सोधी तुरग मिली। चन्द्रकान्ता सन्तति भाग ११ ५१९