पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/५२

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

। धुन लगाने वालेसिह का जसवन्त की बदनीयती का हाल कहने, जसवन्त के कैद होने, कुसुमकुमारी के पास चिट्ठी भेजने, और उनके मरने की खबर पाकर अपने छूटने का हाल पूरा पूरा कहा जिसे महारानी बड़े गौर के साथ सुनती रहीं। कुसुम--अपने मरने की झूठी खबर उडाने के सिवाय यालेसिह की कैद स आपको छुड़ाने की कोई तर्कीय मुझे न सूझी और ईश्वर की कृपा से वह तीच पूरी भी उतरी। रनवीर-ओह ॥ कुसुम-मै कई दिन पहिले ही बीमार बन कर बाग में चली गई थी। जो कुछ मेरा इरादा था वह सिवाय मेरे नेक दीवान के और कोई भी नहीं जानता था हॉ लौडियों को जरूर मालूम था। ऐसे वक्त में दीवान ने भी दिलाजान से कोशिश की और कई जासूसों के जरिये बरावर बालेसिह के यहां की खबर लेता रहा। यह भी मुझे मालूम हो गया था कि बालेसिह का आदमी आपके हाथ की चिठठी लेकर आया है, अस्तु उसी वक्त मैंने यह काम पूरा करने का मौका बेहतर समझा। (मुस्कुरा कर) शहर भर को विश्वास हो गया कि कुसुमकुमारी मर गई बेचारे दीवान को उस समय राजकाज सम्हालने में बर्डी ही मुश्किल हुई। रनवीर-अब तुम्हें अपने घर लौट चलना चाहिये। कुसुम-नहीं नहीं विना दुष्ट यालेसिह को फंसाये मै घर न जाऊगी. और इसके लिये जो कुछ बन्दोबस्त किया गया है आप जानते ही होंगे। रनवीर--हा मैं तो सब कुछ जानता हू। वह कुछ ऐसा ही मौका था कि धोखे में उसने मुझे फसा लिया सो भी तुम्हारे मिलने की खुशखबरी अगर वह मुझे न देता तो जरूर अपनी जान से हाथ धोता. पर अब मै उसे कुछ भी नहीं समझाता उसका घमण्ड तोड भी चुका है। कुसुम--(मुस्कुरा कर) जी हों में सुन युकी हू-तो भी मैं चाहती हूं कि घर पहुँचने के पहिले बालेसिह पर कब्जा कर लूँ! रनवीर-खैर अगर यही मर्जी है तो दो ही चार दिन में तुम्हारे इस हौसले को भी पूरा किये देता हूँ। कुसुम-हाय उस कम्बख्त ने मेरे साथ जो कुछ सलूक किया जब में याद करती हूकलेजा पानी हो जाता है (ऑसू की बूंदें गिरा कर) हाय हाय अगर आज मेरे बाप या माँ ही होती तो यह नौबत क्यों पहुचती ? (कुछ सोच कर) नहीं नही मुझे इसकी भी शिकायत नहीं है क्योंकि रनवीर-(कुसुम का नर्म पजा अपने हाथों में लेकर) है यह क्या ? यस यस देखो तुम्हारी आँसू की यूदें मेरे दिल के साथ वह बर्ताव कर रही है जो बन्दूक से निकले हुए छरे गुलाब की डाल पर बैठी हुई बेचारी बुलघुल के साथ करते है। कुसुम-(ऑसू पोंछ कर) नहीं नहीं ऐसा न कहो बल्कि यही कहो कि ईश्वर करे ये ऑसू की बूंदे यालेसिह के लिये प्रलय का समुद हों जिसमें उसकी उम्र की टूटी हुई किश्ती का कही पता भी न लग । देर तक यातचीत होती रही। आज का दिन इन दानोआशिक माशूकों के लिए कैसी खुशी का था इसे वही खूब समझ सकता है जिसे कभी ऐसा मौका पडा हो! जिसे जी प्यार करता हो, जिसके मिलने की उम्मीद में तनोवदन की सुध भुला दी हो जिसके मुकाबले में दुनिया की कुल नियामते तुच्छ मालूम होती हों, जिसके बिना जिन्दगी दुश्वार हो गई हो वह अगर मिल जाय तो क्या खुशी का कुछ ठिकाना है? मगर दुनिया भी अजय वेदव जगह है यहाँ रह कर खुशी से दिन विताना किसी बड़े ही जिन्दादिल का काम है नहीं तो ऐसा कौन है जिसे किसी न किसी बात की फिक्र न हो, किसी न किसी तरह का गम न हो किसी न किसी किस्म का दुख न हो सच पूछिये तो सुख के मुकायले में दु ख का पल्ला हरदम भारी ही रहता है अगर किसी को एक तरह की खुशी है तो जरूर दो तरह का रज भी होगा। यहाँ तो जिनका दिल मजबूत है, या जो दुनिया को सराय समझ कर अपना दिन बिता रहे हैं वे ही मजे में हैं। और सभों को जाने दीजिये, आशिक माशूको के लिए तो दुख मानों बॉटे पडा है या यों कहिए उन्हीं के लिए बनाया ही गया है। देखिये आधी रात का समय है चारो तरफ सन्नाटा है, निदादेवी ने निशाचर छोड सभी जानदारों पर अपना दखल जमा रक्खा है और थोड़ी देर के लिए सभी के दिल से दुख सुख का दौर हटा उन्हें बेहोश करके डाल दिया है। इस समय वही जाग रहा है जो चोरी की धुन में वा छप्पर कूद जाने या सीध लगाने की फिक में है या उसी की आँखों में नीद नहीं है जो किसी माशूक के आने की उम्मीद में चारपाई पर लेटा लेटा दरवाजे की तरफ देख रहा है जरा खटका हुआ और दिल उछलने लगा कि वह आये जब किसी को न देखा एक लम्बी सॉस ली और समझ लिया कि यह सब हवा महारानी की शैतानी है। हा खूब याद आया इस समय उस बेदर्द की आँखों में भी नींद नहीं है जो अपना दुश्मन समझ कर किसी बदिल बेचारे का नाहक ही खून करने का मौका ढूढ रहा है जरूर ऐसा ही है क्योंकि यहा भी ऐसा ही कुछ देवकीनन्दन खत्री समग्र १०६०