पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/५१५

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दि दारोगा-(जार से हस कर) क्या इतने ही में तरी हिम्मत ने जवाब दिया तिलिस्म की रानी होकर इतना छाटा दिल आश्चर्य है। माया-(अपने डरे हुए दिल को सम्हाल कर) नहीं नहीं ने डरी और घबराई नहीं दू हा भूख प्यास और थकावट के कारण बहाल हो रही हू इसी से मेने पूछा कि यह गुफा जिसे सुरग कहना चाहिये किस तरह समाप्न भी होगी या नहीं? दारोगा-शवडा मत अब हम लोग बहुत जल्द इस उधेर से निकल कर ऐस दिलचस्प मैदान में पहुग जिस देख कर तू बहुत ही खुश होगी। माया-इन्ददय के मकान में जान के लिए यहाँ एक राह है या और भी पोई ? दारोगा-बस इस रास्ते के सिवाय और रास्ता नहीं है। माया-अगर एमाह तो माग हाता कि आपका इन्ददव बहुत स दुश्मन रखते है जिनके डर से उन्हें इस तरह छिपा कर रहना पडतारे। दारोगा-(हस कर ) नहीं नहीं एसा नहीं है इन्द्रदव इस याग्य है कि अपने दुश्मनों की बात की बात में व्यार कर दे वह इस स्थान ने जान कर नहीं रहता बल्कि मजबूर होकर उसे यहा रहना पड़ता है क्योकि जिस तिलिस्म का यह दार्गगा है वह तिलिस्म भी इसी स्थान में है। माया-ठीक है तो क्या इस तिलिम्म का कोई राजा नहीं है? दारोगा-नही जिस समय यह तिलिस्म तैयार हुआ या उस समय इसके मालिक ने इस बात का प्रबंध किया था कि उसको खानदान में जो कोई हा यह तिलिस्म का राजा नहीं बने बल्कि दारोगा की तरह रहे। उसी के शानदान में यह इनदव। इसे तिलिस्म की हिफाजत करने के सिवाय और किसी तरहें का अधिकार तिलिस्म पर नहीं मगर दौलत की इस किसी तरह की कमी नहीं है। माया--अगर पुरान प्रवन्ध का तोड कर यह तिलिस्मी चीजों पर अपना दाल जमाव तो उसे कौन रोक सकता है? दारागा-रोकने वाला ता कोई नहीं है मगर वह तिलिस्म का भेद कुछ भी नही जानता न मालूम यह तिलिस्म इतना गुप्त किस लिये रक्या गया है। माया-म ता अपने तिलिस्म से बहुत फायदा उठाती थी। दारोगा-यशक एसा ही है मगर उस तिलिस्म में भी जो खास खास अलभ्य वरतुए। उनका मालिक तिलिस्म तोडन वाले के सिवाय और कोई नहीं हो सकता। अन्छा अब ठहर जा हम लाग ठिकाने पहुच गये। यहा एक दर्वाज है जिसे खाल कर आगे चलना होगा। दारोगा की बात सुनकर मायारानी रुक गई। मगर अधर मे उस यह न मालुम हुआ कि रावाजी क्या कर रहे है। दस बार पल से ज्याद देर न लगी होगी कि एक आवाज ठीक उसी प्रकार की आई जैसी लोह का हल्का दर्वाजा युनो के समय आती है। बाबाजी न मायारानी कासाथ पकउ उस दो तीन कदम आगे कर दिया तथा स्वय पीछ रह गय और फिर उस दाज के बद होने की आवाज आई। इसके बाद राधाजी ने मोमबत्ती जलाई जिमका सामान दर्याज के पास ही किमी ठिकान पर था। चहुत दर तक अधेर में रहने के कारण मायारानी बहुत घबड़ा गई थी। अब रोशनी हो जाने से वह तय हो गई और आखं फाड कर चारों तरफ देखने लगी। केवल उधर की तरफ जिधर से वह आइ थी लाह का एक तजा दिखलाई दिया जिसमें दर्वाजे का काई आकार तथा इसके अतिरितः सब तरफ पत्थर दिखाई पड़ता था और साफ मालूम होता था कि माननीय उद्योग पहाड काट फर यह रास्ता या सुरम तैयार की गई TRA सुरण इसी जगह पर नहीं समाप्त हुई थी बल्कि बाई तरफ तीन चार सीटिया नोचे उत्तर में और भी कुछ दूर तक गई हुई थी। मायारानी आश्चर्य से धारों . तरफ देखने के बाद बाबाजी से कहा यह लाह की दीवार जो सामने दिखाई पड़ती है निसन्देह दाला है परन्तु इसमें दवाज का कोई आकार मालूम नहीं पडता आयने इस किस तरकीब से यौला या बन्द किया था? इसके जवाब में दारोमा ने कहा इस दर्याजे का खालन और बन्द करने की तीय नियमानुसार इन्द्रदय की आशा पिता मे हीं बता सकता और यह मोमबत्ती भी मैंने इसलिए जलाई है कि(तीदियो की तरफ इशारा करकोइन सीदियों कातू अच्छी तरह देख ले जिसमें रतरते समय ठोकर न लगे। इतना कहते ही दारोगा ने मोमबत्ती बुझा कर उसे उसी ठिकाने रख दिया और मायारानी का हाथ पकड़ के सीढ़ियों के नीचे उतरा । मायारानी को अपनी गतो का जवाब न पाने से रज हुआ मगर वह कर ही क्या सकती थी क्योंकि इस समय वह हर तरह से दारोगा केआधीन थी। सीढिया उतरा के साथ ही सामन की तरफ थोडी दूर पर उजाला दिखाई दिया और मालूम हुआ कि उस टिकाने सुरगाराप्त हुई है। आश्चर्य डर चिन्ता और आशा के साथ मायाराम यह रास्ता भी त किया और सुरंग का आखिरी दर्याज के बाहर कदम रखने के साथ ही एक रमणीय स्मारकी अटा देखन लगी। चन्द्रकान्ता सन्तति भाग १० ५०७