पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/४९६

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नागर की बातें सुन कर मायारानी रुक गई और थोडी देर तक कुछ सोचती रही अन्त में तिलिस्मी खजर कमर में रख शीघ्रता से कमरे के बाहर हो हाते से निकल गई और न मालूम कहाँ चली गई नागर ने इधर उधर देखा तो दारोगा को भी न पाया। आखिर मालूम हुआ कि वह भी मौका देख कर भाग निकला और न जाने कहाँ चला गया। n तीसरा बयान अब जरा उन कैदियों की सुध लेनी चाहिए जिन्हें नकली दारोगा ने दारोगा वाले बॅगले में मेगजीन की रगल वाली कोठरी में बन्द किया था। वास्तव में वह तेजसिह ही थे जो दारोगा की सूरत बन कर मायारानी से मिलने और उसके दिल का भेद लेने जा रहे थे मगर जय दारोमा वाले बेंगले पर पहुचे तो मायारानी की लौडियों तथा लीला की जुबानी मालूम हुआ कि कुछ आदमियों के पीछे पीछे मायारानी और नागर टीले पर गई हैं। तेजसिंह उस टीले का हाल बखूबी जानते थे और सुरग की राह बाग के चौथे दरवाजे में आने जाने का भेद भी उन्हें बता दिया गया था इसलिए उन्हें शक हुआ और वे सोचने लगे कि मायारानी जिन दो आदमियों के पीछे पीछे टीले पर गई है कहीं वे दोनों हमारी तरफ के ऐयार ही न हो जो बाग के चौथे दर्जे में जाने का इरादा रखते हों यदि वास्तव में ऐसा हो तो नि सन्देह मायारानी क हाथ से उन्हें कष्ट पहुचेगा। यह सोचते ही तेजसिह भी उसी टीले की तरफ रवाना हुए और यही सबब था कि सुरग में दारोगा की शक्ल बने हुए तेजसिह की मायारानी से मुलाकात हुई थी और उसके बाद जो कुछ हुआ ऊपर लिखा ही जा चुका है। मैगजीन की वगल वाली कोठरी में कैदियों को कैद करनके बाद जब खाने पीने का सामान लेकर तेजसिह उस तहखाने में गये तो कैदियों को होश में लाकर सक्षेप में सब हाल कह दिया था और अजायबघर की तालीजो मायारानी से वापस ली थी राजा गोपालसिह को देकर कहा कि इस ताली की मदद से जहाँ तक हो सके आप लोग यहाँ से निकल जाइये। राजा गोपालसिह ने जवाब दिया था कि यदि यह ताली न मिलती तो भी हम लोग यहां से निकल जाते क्योंकि मुझे यहाँ का पूरा पूरा हाल मालूम है और अब आप हम लोगों की तरफ से निश्चिन्तरहिए मगर चौबीस घण्टे के अन्दर मायारानी का साथ न छोडिए और न उसे कोई काम इस बीच में करने दीजिए इसके बाद हम लोग स्वय आपको दूद इस दारोगा वाले गले का हाल केवल तेजसिह ही को नहीं बल्कि हमारे और भी कई एयारों को मालूम था क्योंकि कमलिनी ने जो कुछ भी वह जानती थी सभों को बता दिया था ! अब जब तेजसिह दारोगा वाले गले से चले तो राजा गोपालसिह और कमलिनी इत्यादि को दूढने के लिए उत्तर की तरफ रवाना हुए। वे जानते थे कि मैगजीन की बगल वाली कोठरी से निकल कर वे लोग उत्तर कीतरफ ही किसी ठिकाने बाहर हागे। तेजसिह कास भर से ज्यादे नहीं गये होंगे कि रात की पहली अंधेरी ने चारो तरफ अपना दखल जमा लिया जिसके सवव से वे उन लोगों को बखूबी दूढन सकते थे और न उन लोगों का ठीक पता ही था तथापि उन्हें विशेष कष्ट उठाना न पडा क्योंकि थोड़ी ही दूर जाने वाद देवीसिंह से मुलाकात हो गई जो इन्हीं को दूढने के लिए जा रहे थे। देवीसिह के साथ चलकर तेजसिह थोड़ी ही देर में वहाँ जा पहुचे जहाँ गोपालसिह इत्यादि घन जगल में एक पेड के नीचे बैठ इनके आने की राह देख रहे थे। तेजसिह को देखते ही सब लोग उठ खडे हुए और खातिर की तौर पर दो चार कदम आगे बढ़ आये। देवी-देखिये इन्हें कितना जल्द ढूँढ लाया हू। गोपाल-(तेजसिह से) आइए आइए। तेज-इतनी दूर आये तो क्या दो चार कदम के लिए रुक रहेगे? गोपाल-(हँस के और तेजसिह का हाथ पकड़ के) आज आप ही की बदौलत हम लोग जीते जागते यहाँ दिखाई दे तेज-यह सब तो भगवती की कृपा से हुआ और उन्हीं की कृपा से इस समय मै इसके लिए अच्छी तरह तैयार भी हो रहा है कि मेरी जितनी तारीफ आपके किये हो सके कीजिए और में फूला नहीं समाता हुआचुपचापबैठा सुनता रह और घण्टों बीत जाय मगर तिस पर भी आपकी की हुई तारीफ को उस काम के बदले में न समझू जिसकी वजह से आप लोग छूट गये बल्कि एक दूसरे ही काम के बदले में समझू जिसका पता खुद आप ही की जुबान से लगेगा और यह भी जाना जायेगा कि मै कौन सा अनूठा काम करके आया है जिसे खुद नहीं जानता मगर जिसके बदले में तारीफों की मौछार सहने को चुप्पी का छाता लगाये पहिले ही से तैयार था। साथ ही इसके यह भी कह देना अनुचित न होगा कि मैं केवल आप ही को तारीफ करने के लिए मजबूर न करुगा बल्कि आपसे ज्यादा कमलिनी और लाडिली को मेरी तारीफ करनी पड़ेगी। देवकीनन्दन खत्री समग्र