पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/४७४

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R गोपालसिह ने झुक कर इन्दजीतसिह के कान में कुछ कहा जिसे सुनते ही कुमार इस पड़े 'बेशक बड़ी चतुराई की गई है जरा सा फेर में मतलय कैसा विगड जाता है आपका कहना बहुत ठीक है। अब कोई शब्द ऐसा नहीं निकलता जिसका अर्थ में न लगा सकू क्यों न हो आखिर आप तिलिस्म के राजा ही ठहरे। कमलिनी से इस समय चुप न रहा गया वह ताने के तौर पर सिर नीचा करके चोली 'वेशक राजा ही ठहरे इसी से तो बेमुरोवती फूट-कूट कर भरी है ।इसके जवाब में गोपालसिह ने कहा “नहीं नहीं ऐसा मत ख्याल करो। तुम्हारा उदास चेहरा कह देता है कि तुम्हे इस बात का रज है कि हमने जो कुछ कुमार के कान में कहा उससे तुमको जान बूझ कर वचित रखा मगर नहीं (धनपत की तरफ इशारा करके) इस कम्बख्त के ख्याल से मैने ऐसा किया। आखिर वह भेद तुमसे छिपा न रहेगा। इस पर कुँअर इन्द्रजीतसिह ने एक विचित्र निगार कमलिनी पर डाली जिसे देखते ही वह हस पड़ी और मकान के अन्दर जाने के लिए दर्वाजे को तरफ बढी । कुँअर इन्द्रजीतसिह कमलिनी लाडिली और उनके साथ धनपर का हाथ पकडे राजा गोपालसिह उस मकान के अन्दर चले। इस मकान की हालत हम ऊपर लिख आर्य है इसलिए पुन नहीं लिखते। राजा गोपालसिह समों को साथ लिए हुए उस कोठरी में पहुंचे जिसमें कुँअर आनन्दसिह फसे हुए थे मगर इस समय यहाँ की अवस्था वैसी न थी जैसी की हम ऊपर लिख आये है अर्थात वह तिलिस्मी सदूक जिसमें आनन्दसिह का हाथ फस गया था यहा न था और न आनन्दसिह वहाँ थे, हॉ उस कोठरी की जमीन का वह हिस्सा जिस पर सदूक था जमीन के अन्दर धस गया था और वहाँ एक कुए की शक्ल दिखाई दे रही थी। यह देख राजा गोपाल सिह ताज्जुब में आ गये और उस कुए की तरफ देखकर कुछ सोचने लगे । आखिर कुँअर इन्द्रजीतसिह ने उन्हे टोका और चुप रहने का सवर पूछा। इन्दजीत-आप क्या सोच रहे है ? शायद आनन्दसिह का आपने इसी कोठरी में छोड़ा था? गोपाल-जी हा, इस जगह जहाँ आप कुएँ की तरफ का गड़हा देखते हैं एक सन्दूक था और उसमें एक छेद था, उसी छद के अन्दर हाथ डाल कर कुमार ने अपने को फसा लिया था।मालूम होता है कि अब वे तिलिस्म के अन्दर चले गये। इसी ख्याल से मैंने आपस कहा था कि कुँअर आनन्दसिह अपने को छुडा नहीं सकते बल्कि तिलिस्म के अन्दर जा सकते इन्दजीत--अफसोस खेर मर्जी परमेश्वर की ? इस समय मेरा दिमाग परेशान हो रहा है। धनपत का मै इस अवस्था में क्यों देख रहा हू ? यकायक आपका इस बाग में आना कैसे हुआ? आप मुझसे मिले बिना सीधे इस मकान में क्यों आए? आनन्द का इस मकान में आपने ठहरने क्या दिया अथवा उसे बचाने का उद्योग क्यों न किया ? इत्यादि बहुत सी बातें जानने के लिए मै इस समय परेशान हो रहा हूमगर इसके पहिले मै इस कुए की अवस्था जानने का उद्योग करूँगा (कमलिनी की तरफ देयकर ) जरा तिलिस्मी खेजर मुझे दो उसके जरिये से इस कुए में उजाला करके में देखूगा कि इसके अन्दर क्या है? कमलिनी-( तिलिस्मी खजर और अंगूती कुमार के सामने रख कर ) लीजिए शायद इससे कुछ काम चले । कुअर इन्द्रजीतसिह ने अगूठी पहिर खजर हाथर्म लिया और धीरे धीरे उस गडई के किनारे गये जो ठीक करें की तरह का हो रहा था। खजर याला हाथ कुमार ने कूए के अन्दर डाला और उसका कब्जा दवाकर उजाला करने के बाद झाक कर देया कि उसके अन्दर क्या है। न मालूम कुअर इन्द्रजीतसिह ने कुए के अन्दर क्या देखा कि वै यकायक बिना किसी से कुछ कहे तिलिस्मी खजर हाथ में लिये हुए उस कूए के अन्दर कूद पड़े । यह देखते ही क्रमिलिनी और लाडिली परेशान हो गई और राजा गोपालसिह को भी बहुत ताज्जुब हुआ। इन्द्रजीतसिह की तरह राजा गोपालसिह ने भी अपना तिलिस्मी खजर हाथ में लेकर कूए के अन्दर किया और उसका कब्जा दबा रोशनी करने बाद झाक कर देखा कि क्या बात है मगर कुछ दिखाईन पडा। कमलिनी कुछ मालूम हुआ कि इस गडहे में क्या है ? गोपाल-कुछ भी मालूम नहीं होता न जाने क्या देखकर कुमार इसमें कूद गये। कमलिनी-खैर आप यहाँ से हटिये और सोचिए कि अब क्या करना होगा? गोपाल यद्यपि मैजानता हूँ कि यहाँ का तिलिस्म कुमार के हाथ से टूटेगा परन्तु इस रीति से दोनों कुमारों का तिलिस्म के अन्दर जाना ठीक न हुआ। देखा चाहिए इश्वर क्या करता है ? चलो अब यहाँ रहना उचित नहीं है और न कुमार से मुलाकात होने की ही कोई आशा है। कमलिनी-(अफसोस के साथ) चलिये। देयकीनन्दन खत्री समग्र a