पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/४६

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ori महारानी बीमार पड़ी थीं। अपने को उसने बिल्कुल जाहिर न किया कि मैं कौन हूँ, किसका आदमी हू और क्यों आया मामूली मुसाफिर की तरह धूमता फिरता रहा। शाम होते होर वाग के अन्दर से रोने और चिल्लाने की आवाज आई और धीरे धीरे वहआवाज बढती ही गई, यहाँ तक कि कुछ रात जाते जाते याग से लेकर शहर तक हाहाकार मच गया, काई भी ऐसा न था जो रो रो कर अपना सिर न पीट रहा हो शहर भर में अंधेरा था, किसी को घर में चिराग जलाने की सुध न थी। जिराको देखिये वही "हाय महारानी कहा गई ? अब मै किसका होकर रहूगा? पुत्र की तरह से अब कौन मानेगा? किस भरोसे पर जिन्दगी कटेगी इत्यादि कह कह कर रोता चिल्लाता सर पीटता और जमीन पर लोटता था। वह सादनी जो चीठी लेकर गया था घूम घूम कर यह कैफियत देयने और पूछताछ करने लगा। मालूम हो गया कि महारानी मर गई. उसे बहुत ही रज हुआ और अफसोस करता सराय की तरफ रवाना हुआ। वहीं भी वही कैफियत देखी, किसी को आराम या चैन सेन पाया, लाचार होकर वहाँ से भी लौटा और शहर से बाहर जा मैदान में एक पड़ के नीचे रात काटी। सवरे वापस हो अपने मालिक बालेसिह की तरफ रवाना हुआ। महारानी के मरने से उनकी रियाया को जितना गम हुआ और वे लोग जिस तरह रोल पीटते और चिल्लाते थे यह देख कर उस सिपाही को भी बड़ा रज हुआ। बरावर आंसू बहाता हुआ दूसरे दिन अपने मालिक यालेसिह के पास पहुंचा। बालेसिह जो कई आदमियों के साथ बैठा गध्ये उड़ा रहा था अपने सिपाही की सूरत देखते ही घबड़ा गया और सोचने लगा कि शायद इसे किसी ने मारा पीटा है,या यह कैद हो गया था किसी तरह घूट कर भाग आया है. मगर पूछने पर जब उसकी जुवानी महारानी के मरने का हाल सुना तब उसकी भी अजय हालत हो गई।घन्टे भर तक राकते की हालत में इस तरह बैठा रहा जैसे जान निकल गई हो या मिट्टी की मूरत रक्यी हो, इसके बाद एक ऊची सास लेकर उठ खड़ा हुआ और दूसरे कमरे में जा चारपाई पर लेट कर सोचने लगा-- "हां !जिसके लिए इतना बखेड़ा किया. इतने हैरान और परेशान हुए.येचारे रनवीरसिह को व्यर्थ कंद किया, अपनी जान आफत में डाली. वही दुनिया से उठ गई हाय अभी तक वह भोली माली सूरत आखों के आगे घूम रही है, वह पहिला दिन मानो आज ही है, यही मालूम होता है कि बाग में मकान की छत पर सहेलियों के साथ बढ़ी हुई इधर उधर दूर दूर तक के मैदान की छटा देख रही है। हाय, ऐसे वक्त में पहुच कर मैने क्यों उसकी सूरत देखी जो आज इतना रज और गम उठाना पड़ा और मुफ्त की शर्मिन्दगी और बदनामी भी हाथ लगी 11 'मगर कहीं ऐसा तो नहीं है कि मेरा सिपाही झूठ बोलता हो या यहा महारानी ने इसे रिश्वत देकर अपनी तरफ मिला लिया हो और अपने भरने का हाल कहने के लिए समझा बुझा कर इधर भेज दिया हो ? नहीं नहीं, ऐसा नहीं हो सकता। अगर ब्रहमा भी मरे सामने आकर कहे कि यह तुम्हारा मिपाही बेईमान और शूठा है तो भी मैं न मानूगा, यह मेरा दस पुरत का नौकर कभी ऐसा नही कर सकता, इसके ऐसा तो कोई आदमी ही मेरे यहाँ नहीं है ! "खैर जब महारानी मर ही गई तो फिर क्या किया जायगा? अब रनबीरसिह और जसवन्तसिह को कैद में रखना व्यर्थ है, उन्होंने मेरा कोई कसूर नहीं किया है। ऐसी ऐसी बहुत सी बाते वह घटो तक बिता रहा गयिरकार उठ खड़ा हुआ और सीधे उस मकान में पहुचा पाहाँ रनवीरसिह और जसवन्तसिह कैद ये बालेसिह की सूरत देखते ही रनबीरसिह ने पूछा,"क्यो साहब, आपका सिपाही महारानी के पास से वापस आया ?' वाले-हम लोगों का फैसला ईश्वर ही ने कर दिया !! रनवीर-वह क्या? चाले-महारानी ने यरलोक की यात्रा की, अब आपको भी में छोड़ देता हू जहा जी चाहे जाइये। यह लीजिये आपके कपडे और ढाल तलवार इत्यादि भी हाजिर है। बालेसिह की बात सुनते ही रनवीरसिह ने जोर से हाय' मारी और बेहोश होकर जमीन पर गिर पड़े। बालेसिह ने जल्दी से उम्की हथकडी बड़ी खोल डाली और मुह पर बेदमिश्क वगैरह छिडक कर होश में लाने की फिक्र करने लगा। जसवन्तसिह को भी कैद से छुट्टी दे दी। कैद से छूट और महारानी के मरन का हाल सुन जसवन्तसिह की नीयत फिर बदली। जी में सोचने लगा कि अब रनवीरसिह की तरफ से नीयत खराब रखनी मुनासिव नहीं क्यांकि इसके साथरहने में जिस खुशी के साथ जिन्दगी वीतती है वैसी खुशी इससे अलग होने पर नहीं मिल सकती। सिवाय इसके महारानी ता मर ही गई जिनके लिये । बहुत कुछ सोचे हुए था, इस लिये अब तो इनके साथ पहिले ही की तरह मिल जुल कर हीरहना मुनासिब है मगर अभी इस देवकीनन्दन खत्री समग्र १०५४