पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/४३६

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- घुमाया।खटके की आवाज के साथ पत्थर की चट्टान अलग हो गई और सभी लोग उस राह से निकल कर बाहर मैदान में दिखाई देने लगे। बाहर सन्नाटा देख कर कमलिनी ने कहा शुक्र है कि यहा हमारा दुश्मन कोई नहीं दिखाई देता। जिस राह से कुमार और ऐयार लोग बाहर निकले वह पत्थर का एक चबूतरा था जिसके ऊपर महादेव का लिंग स्थापित था। चबूतरे के नीचे की तरफ का बगल वाला पत्थर खुल कर जमीन के साथ सट गया था और वही शहर निकलने का रास्ता बन गया था। लिग के बगल में लाये का बड़ा सा नन्दी (बैल) बना हुआ था और उसके मोढे पर लोहे का एक सर्प गुडेडी मारे बैठा था। कमलिनी ने साप के सिर को दोनों हाथ से पकड़ कर उभाड़ा और साथ ही नन्दी ने मुह खोल दिया तब कमलिनी ने उसके मुह में हाथ डाल कर कोई पेच घुमाया। वह पत्थर की चट्टान जो अलग हो गई थी फिर ज्यों की त्यों हो गई और सुरग का मुह बन्द हो गया। कमलिनी ने साप के फन को फिर दमा दिया और मैल ने भी अपना मुह बन्द कर लिया। इन्द्रजील (कमलिनी से ) यह दर्याजा भी अजब तरह से खुलता और बन्द होता है। कमलिनी-हा बड़ी कारीगरी से बनाया गया है। इन्दजीत-इसके खोलने और बन्द करने की तीय मायारानी को मालूम होगी? कमलिनी-जी हा बल्कि (लाडिली की तरफ इशारा करके ) यह भी जानती है, क्योंकि बाग के तीसरे दर्जे में जाने के लिए यह भी एक रास्ता है जिसे हर तीनों बहिनें जानती है मगर उस हाथी वाले दर्वाण का हाल जिसे आपने खोला या सिवाय मेरे और कोई भी नहीं जानता। आनन्द-यह जगह बड़ी भयानक मालूम पड़ती है ! कमलिनी-जी हा यह पुराना मसान है और गाजी भी यहा से थोड़ी ही दूर पर है। किसी जमाने में जब का यह मसान है, गगाजी इसी जगह पास ही बहती थी मगर अब कुछ दूर हट गई और इस जगह बालू पड़ गया है। आनन्द-खैर अब क्या करना और कहा चलना चाहिये ? कमलिनी-अब हमको गगा पार होकर जमानिया में पहुँचना चाहिये। यहा मैंने एक मकान किराये पर ले रक्खा है जो बहुत ही गुप्त स्थान में है उसी में दो तीन दिन रह कर कार्रवाई करेगी। इन्द्रजीत-गगा पार किस तरह जाना होगा? कमलिनी-थोड़ी ही दूर पर गगा के किनारे एक किश्ती यधी हुई है जिस पर मै आई थी मै समझती हू वह किश्ती अभी तक वहा ही होगी। सवेरा होने में कुछ विलम्ब न था । मन्द मन्द दक्षिणी हवा चल रही थी और आसमान पर केवल दस पाँच तारे दिखाई पड़ रहे थे जिनके चेहरे की चमक दमक चलाचली की उदासी के कारण मन्द पडती जा रही थी जब कि कमलिनी और कुमार इत्यादि सब कोई वहा से रवाना हुए और उसी किश्ती पर सवार होकर जिसका जिक्र कमलिनी ने किया था गगा पार हो गये। तीसरा बयान मायारानी उस बेचारे मुसीबत के मारे कैदी को रज डर और तरदुद की निगाहों से देख रही थी जबकि यह आवाज उसने सुनी बेशक मायारानी की मौत आ गई। इस आवाजने मायाराली को हद से ज्यादे बेचैन कर दिया। वह घबड़ा कर चारों तरफ देखने लगी मगर कुछ मालूम न हुआ कि यह आवाज कहा से आई। आखिर वह लाचार होकर धनपत को साथ लिए हुए वहा से लौटी और जिस तरह वहा गई थी उसी तरह बाग के तीसरे दर्जे से होती हुई कैदखाने के दर्वाजे पर पहुंची जहा अपने दोनों ऐयार बिहारीसिह और हरनामसिह को छोड़ गई थी। मायारानी को देखते ही बिहारीसिह बोला- बिहारी-आप हम लोगों को यहा व्यर्थ ही छोड़ गई। माया-हा अब मैं भी यही सोचती हु क्योंकि अगर तुम दोनों को अपने साथ ले जाती तो इसी समय टण्टा नै हो जाता। यद्यपि धनपत मेरे साथ थी और तुम लोग भी जानते हो कि यह बहुत ताकतवर है तथापि मेरा हौसला न पड़ा कि उसे बाहर निकालती। बिहारी-(चौक कर) तो क्या आप अपने कैदी को देखने के लिए चौथे दर्जे में गई थी मगर मैने जो कुछ कहा वह कुछ दूसरे मतलब से कहा था। माया-हा मैं उसी दुश्मन के पास गई थी जिसके बारे में चण्डूल ने मुझे होशियार किया था भगर तुमने यह किस मतलब से कहा कि आप हम लोगों को यहा व्यर्थ ही छोड़ गई थी? बिहारी-मैने इस मतलब से कहा कि हम लोग यहा बैठे बैठे जान रहे थे कि इस कैदखाने के अन्दर उधम मच रहा देवकीनन्दन खत्री समग्न ४१६