पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/४१८

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

३ चौथा बयान शाम का वक्त है। सूर्य भगवान अस्त हो गये है तथापि पश्चिम तरफ आसमान पर कुछ कुछ लाल अभी तक दिखाई दे रही है। ठण्डी हवा मन्द गति से चल रही है। गरमी तो नहीं मालूम होती लेकिन इस समय की झा बदन में कॅपकपी पैदा नहीं कर सकती। हम इस समय आपको एक ऐसे मैदान की तरफ ध्यान देने के लिए कहते हैं जिसकी लम्बाई और चौडाई का अन्दाजा करना कठिन है। जिधर निगाह दौडाइये सन्नाटा नजर आता है कोई एंड भी ऐसा नहीं हे जिसके पीछे या जिस पर चढ कर काई आदमी अपने को छिपा सके हॉ पूरब तरफ निगाह कुछ टोकर खाती है और धुंधली चीज को देखकर गौर करने वाला कह सकता है कि उस तरफ शायद कोई छोटी सी पहाडी या रान जमाने का काई ऊँचा टीला है। एसे मैदान में तीन ओरते घोडियों पर सवार धीरे धीरे उसी तरफ जा रही है जिधर उस टीले या छोले पहाडी की स्थाही मालूम हो रही है। यद्यपि उन औरतों की पोशाक जनाना वजा की है मगर फिर भी चुस्त और दक्षिण ढग की है। तीनों क चहरे पर नकाब पड़ी हुई है तथापि बदन की सुडौली और कलाई तथा नाजुक उगलियों पर ध्यान ने से देखने वाल के दिल में यह यातजरूर पेदा हागी कि ये तीनों ही नाजुक नौजवान और खूबसूरत है। इन औरतों के विषय में हम अपन पाटकों को ज्यादा देर तक खुटक में न डाल कर इसी समय इनका परिचय दे दना उत्तम समझते हैं । वह देखिए ऊँधी और मुश्की घोड़ी पर जो सवार है वह मायारानी है चोगर आँखों वाली सुफेद पचकल्यान घोडी पर चो पटरी जमाय है वह छोटी बहन लाडिली हे जिस अभी तक हम रामभोली के नाम से लिखते चले आये है और सब्जघडी पर सवार चारों तरफ निगाह दौडादौडा कर देखने वाली धनपति है। ये तीनों आपस में धीरे धीरे बातें करती जा ही है। लीजिए तीनों ने अपने चेहरों पर से नका- उलट दी अब हम इन तीनों की बातों पर ध्यान देना उचित है। - माया-न मालूम यह चण्डूल कम्बख्त तीसरे नम्बर के बाग में क्योंकर जा पहुंचा 'इसमें तो कुछ सन्देह न्ही कि जिस राह से हम लाग आते जाते रहते है उस राह से वह नहीं गया था। लाडिली-तिलिस्म बनाने वालों ने वहाँ पहुँचन के लिए और कई रास्ते बनाए हैं शायद उन्हीं रास्तों में कोई रास्ता उसे मालूम हो गया हो। धनपति-मगर उन रास्तों का हाल किसी दूसरे को मालूम हो जाना तो बडी भयानक बात है। माया-और यह एक ताज्जुब की बात है कि उन रास्तों का हाल जब मुझको जो तिलिस्म की रानी कहलाती हूँ/नहीं मालूम तो किसी दूसरे को कैसे मालूम हुआ लाडिली-ठीक है तिलिस्म की बहुत सी बातें ऐसी हैं जो तुम्हें मालूम है मगर नियमानुसार तुम मुझसे भी नहीं कह सकती हा हो उन रास्तों का हाल जीजाजी *का जरूर मालूम था। अफसोस उन्हें मरे पाँच वर्ष हो गये अगर चीते हात तो माया-( कुछ घबडा कर और जल्दी से ) तुम कैसे जानती हो कि उन रास्तों का हाल उन्हें मालूम था ? लाडिली-हँसी हँसी में उन्होंन एक दिन मुझसे कहा था कि वाग के तीसरे दर्जे में जाने के लिए पॉच रास्ते हैं बल्कि व मुझे अपने साथ वहाँ ले चल कर नया रास्ता दिखाने को तैयार भी थे मगर मैं तुम्हारे डर से उनके साथ न गई। माया-आज तक तूने यह हाल मुझस क्यों न कहा 1 लाडिली-मेरी समझ में यह कोई जरूरी बात न थी जो तुमस कहती । लाडिली की बात सुन मायारानी चुप हो गई और बड़ गौर में पड़ गई। उसकी अवस्था और उसकी सूरत पर ध्यान देने से मालूम हाता था कि लाडिली की बात से उसके दिल पर एक सख्त सदमा पहुँचा है और वह भोडी देर के लिए अपने को बिल्कुल ही भूल गई है। मायारानी की ऐसी अवस्था क्यों हो गई और इस मामूली सी बात से उसके दिल पर क्यों चोट लगी इसका सबब उसकी छाटी वहन लाडिली भी न समझ सकी। कदाचित यह कहा जाय कि वह अपने पति को याद करके इस अवस्था में पड़ गई सो भी नहीं हो सकता क्योंकि लाडिली खूब जानती थी कि मायारानी अपने खूबसूरत

  • जीजाजी से मतलव मायारानी के पति से है जो लाडिली का वहनोई था ।

देवकीनन्दन खत्री समग