पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/४१७

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

६ माय-(आँखें लाल करके) क्या तुझे अपनी ऐयारी पर घमड हो गया ? क्या तू अपने को मूल गया या इस बात को भूला गया कि मैं क्या कर सकती हूँ और मुझमें कितनी ताकत है? बिहागे-मैं आपका और अपने को खूब जानता हूँ, मगर इस विषय में कुछ नहीं कह सकता। आप व्यर्थ खफा होती है इसमें गई काम न निकलेगा। माया मालूम हो गया कि तू मी असली बिहारीसिह नहीं है। खैर क्या हर्ज है समझ लूँगी (चण्डूल की तरफ देख के) क्या तू भी दूसरे को वह बात नहीं कह सकता? चण्डून-जो कोई मेरे पास आवेगा उसके कान में मैं कुछ कहूँगा मगर इसका वादा नहीं कर सकता कि वही बात कहूँगा या हर एक को नई नई बात का मजा चखाऊँगा। माया--क्या यह भी नहीं कह सकता कि तू कौन है और इस बाग में किस राह से आया है? चण्डूत-मेरा नाम चण्डूल है आने के विषय में ता केवल इतना ही कह देना काफी है कि मैं सर्वव्यापी हूँ, जहाँ चाहूँ पहुंच सकत हूँ, हाँ काई नई बात सुना चाहती हो तो मेरे पास आओ और सुनो। हरनाल-(मायारानी से ) पहिले मुझे उसके पास जाने दीजिए (चण्डूल के पास जाकर ) अच्छा लो कहो क्या कहते हो? चण्डून न हरनामसिह के कान में भी कोई बात कही। उस समय हरनामसिह चण्डूल की तरफ कान झुकाए जमीन को देख रहा था। चण्डूल कान में कुछ कह के दो कदम पीछे हट गया मगर हरनामसिह ज्यों का त्यों झुका हुआ खडा ही रह गया । यदि उस समय उसे कोई नया आदमी देखता तो यही समझता कि यह पत्थर का पुतला है।मायारानी को बडा आश्चर्य हुआ कई सायत बीत जाने पर भी जब हरनामसिह वहाँ से न हिला तो उसने पुकारा हरनाम 'उस समय वह चौका और चारों तरफ देखने लगा जब चण्डूल पर निगाह पडी तो मुँह फेर लिया और बिहारीसिह के पास जा सिर पर हाथ रख कर बैठ गया। मया-हरनाम क्या तू भी बिहारी का साथी हा गया? वह यात मुझसे न कहेगा जो अभी तून सुनी है ? हानाम-मै इसी वास्त यहाँ आ बैठा हूँ कि आखिर तुम रज होकर मेरा सिर काट लेने का हुक्म दोगी ही क्योंकि तुम्हारा मिजाज बडा क्रोधी है मगर लाचार हूँ, मैं वह बात कदापि नहीं कह सकता। माया-मालूम होता है कि यह आदमी कोई जादूगर है अस्तु में हुक्म देती हूँ कि यह फौरन गिरफ्तार किया जाय । रण्डूल-गिरफ्तार होने क लिए तो मै आया ही हूँ, कष्ट उठाने की क्या आवश्यकता है? लीजिए स्वय मै आपके पास आता हूँ, हथकडी बेडी कहाँ है लाइए वह अपने को सम्माले झुक कर उसके कान में न मालूम क्या कह दिया इतना कह कर चण्डूल तेजी के साथ मायारानी के पास गया और जब तक वह अपने को सम्हाले झुक कर उसके कान में न मालूम क्या कह दिया कि उसकी अवस्था बिल्कुल ही बदल गई। बिहारीसिह और हरनामसिह तो बात सुनने केबाद इस लायक भी रहे थे कि किसी की बात सुनें और उसका जवाब दे मगर मायारानी इस लायक भीन रही। उसके चेहरे पर मुर्दनी छा गई तथा वह घूम कर जमीन पर गिर पड़ी और बेहोश हो गई। बिहारीसिह और हरनामसिह को छोडकर बाकी जितने आदमी उसके साथ आयेथे सभों में खलबली मच गई और सों को इस बात का डर बैठ गया कि चण्डूल उसके कान में भी कोई ऐसी बात न कह दे जिससे मायारानी की सी अवस्था हो जाय । घण्टा भर बीत गया पर मायारानी होश में न आई1चण्डूल तेजसिह के पास गया और उसके कान में भी कोई बात कही जिसके जवाब में तेजसिह ने केवल इतना कहा 'मैं तैयार हूँ तेजसिह का हाथ पकडे ए चण्डूल उसी कोठरी में चला गया जिसमें से बाहर निकला था। अन्दर जाने के बाद दर्वाजा बखूबी बन्द कर लिया। मायारानी के साथियों में से किसी की भी हिम्मत न पडी कि चण्डूल को या तेजसिह को जाने से राके। जिस समय चण्डूल यकायक कोठरी का दर्वाजा खोल कर बाहर निकला था उस समय मालूम होता था कि उस कोठरी के अन्दर और भी कई आदमी हैं मगर उस समय तेजसिह ने वहाँ सिवाय अपने और चण्डूल के और किसी को भी न पाया। उधर मायारानी जय होश में आई तो विल्लीसिह हरनामसिह तथा अपने और साथियों को लेकर खास महल में चली गई। उसके दोनों ऐयार विहारीसिह और हरनामसिह अपने मालिक के वैसे ही तावेदार और खैरखाह बने रहे जैसे थे मगर चण्डूल की कही हुई बात ने दोनों अपने मुँह से कभी भी निकाल नहीं सकते थे। जव जव चण्डूल का ध्यान आता बदन के रोंगटे खड़े हो जाते थे और ठीक यही अवस्था मायारानी की भी थी। मायारानी को यह भी निश्चय हो गया कि चण्डूल नकली विहरीसिह अर्थात तेजसिह को छुडा ले गया। चन्द्रकान्ता सन्तति भाग ७