पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/४११

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किसी तरह अपन बाप का इसक फरव से बचाना और अपनी असली मां का पता लगाना चाहिए। दो घण्ट बीत गए मगर मेरा बाप नौचन उतरा। मरी चिन्ता और भी चढ़ गई। मैसोचने लगा कि शायद फिर कुछ खटपट हाने लगी। आखिर मुझसे रहा न गया मैंने अपने कमरे स बाहर निकल के बाप को आवाज दी। आवाज सुनते ही वे मेरे पास चल आये और धीरे सबाले क्यों बेटा क्या है? मैं-आपसे एक बात कहना चाहता हूँ मगर बहुत छिपा कर । बाप-कहा यहाँ तो काई भी सुनन थाला नहीं है एसा ही डर है तो ऊपर चले चलो। मैं-(धीर स) नहीं में उस दुष्टा का सामन कुछ भी कहा नहीं चाहता जिसे आप मेरी माँ समझते है। बाप-(ताज्जुब में आकर ) क्या वह तुम्हारी मों नहीं है। याप-आज क्या है जा तुम एसी बातें कर रहे हो? क्या उसने तुम्हें कुछ तकलीफ दी है ? मे-आप इस जगह मुझसे कुछ भी न पूछिय निराले में जब मरी बातें सुनियेगा तो असल भेद मालूम हो जायगा । इतना सुनते ही मेरे चाप ने घबडा कर मेरा हाथ पकड लिया और मकान के बाहर अपने खास बैठक में ले जाकर ददाजा बन्द करने के बाद पूछा 'कहो क्या यात है? मैन वे कुल यातेंजोदेखी सुनी थीं और जो ऊपर क्यान कर चुका हूँ कह सुनाइ जिनक सुनत ही मेरे बाप की अजब हालत हो गई चहरे पर उदासी और तरदुद की निशानी मालूम हाने लगी थाडी दर तक चुप रहन ओर कुछ गार करन के बाद योल बेशक धोखा हो गया अब जो गौर करता हूँ तो इस कम्बख्त की बातचीत और चाल चलन में बेशक कुछ फक पाता हूँ। मगर अफसोस तुमन इतने दिन तक न मालूम क्या समझ कर यह बात छिपा रक्यी और अपनी माँ की तरफ स भी गाफिल रहे न जाने वह बेचारी जीती भी है या इस दुनिया स ही उठ गई। में-जरा सा गौर करन पर आप खुद समझ सकते है कि इस बात को इतने दिनों तक में क्यों छिपाये रहा। माँ की तरफ सभी माफिल न रहा जहाँ तक हा सका पता लगाने के लिए परेशान हुआ मगर अभी तक कोई अच्छा नतीजा न निकाला। तथापि मुझ विश्वास है कि वह इस दुनिया में जीती जागती मोजूद है। वाप-तुम्हारा खयाल ठीक है और इसका सबूत इससे बढ़ कर और क्या होगा कि एक ऐयारा उसकी सूरत बन कर अपना काम निकाला चाहती है और इस घर में अभी तक मौजूद है जब तक इसका काम न निकलेगा बेशक उसकी जान बची रहगी। मगर अफसोस मैने बडा धोखा खाया और अपन को किसी लायक न रक्खा) अच्छा यह कहो कि इस समय तुम्हें क्या सूझी जो यह सब कहने के लिए तैयार हो गए? मैं-खुटका ता बहुत दिनों स लगा हुआ था मगर इस समय कुछ तकरार की आहट पाकर मैं ऊपर चढ़ गया और बडी दर तक छिप कर आप लोगों की बातें सुनता रहा ज्यादे तो समझ में न आया मगर इतना मालूम हा गया कि आप उसकी खातिर स राजा बीरन्दसिह क यहाँ स कोई किताब चुरा लाये है और अब कोई काम ऐसा किया चाहते हैं जो आपके लिये बहुत बुरा नतीजा पैदा करेगा अस्तु ऐसे समय में चुप रहना मेने उचित न जाना। अब आप कृपा करके यह कहिए कि वह किताच जो आप चुरा लाये है कैसी है ? वाप-इस समय खुलासा हाल कहने का मोका ता नहीं है परन्तु सक्षेप में कुछ हाल कह तुम्हें होशियार कर देना में बहुत जरूरी है क्योंकि अब मेरी जिन्दगी का कोई ठिकाना नहीं हॉ अगर यह औरत तुम्हारी माँ होती ही कोई हर्ज न था वह एक प्राचीन समय की किसी के खून से लिखी हुई किताब है जो राजा वीरेन्द्रसिह को विक्रमी तिलिस्म से मिली थी। उस तिलिस्म में स्याह पत्थर केदालान में एक सिंहासन के ऊपर छोटा सा पत्थर का सन्दूक था जिसके छूने से आदमी वेहोश को जाता था। मैं-हाँ यह किस्सा आप पहिल भी मुझस कह चुके है बल्कि आपने यह भी कहा था कि सिहासन के ऊपर जा पत्थर था और जिसके छूने स आदमी बेहोश हो जाता था वास्तव में वह एक सन्दूक था और उसके अन्दर से कोई नायाब चीज राजा वीरेन्द्रसिह को मिली थी। वाप-ठीक है ठीक है इस समय मेरी अक्ल ठिकाने नहीं इसी से बहुत सी बातें भूल रहा हूँ, हॉता उसी पत्थर के टुकडे में से जिस छोटा सन्दूक कहना चाहिए यह किताब और हीरे का एक सरपंच निकला था। मैं-उस किताब में क्या बात लिखी है? वाप-उस किताब में उस तिलिस्म के भेद लिखे हुए है जो राजा वीरेन्द्रसिह के हाथ से न टूट सका ओर जिसके विषय में मशहूर है कि राजा वीरेन्द्रसिह के लड़क उस तिलिस्म को तोडेंगे। चन्द्रकान्ता सन्तति माग ७ ३९१