पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/४०४

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ht चाहिए मिलता था। इसकी चौडा थोडी रविशे ईंट और भूनेस बनी हुई थीं। पश्चिम तरफ अर्थात इस हिस्स के अन्तर्न वीस हाथ मोटी ओर इसरा प्यादे ऊंची दीवार चाग की पूरी चौड़ाई तक बनी हुई थी जिसके नीच बहुत सी काठरिया थीं जो सिपाहियों का काम में आती थी। उस दीवार के ऊपर धदन के लिए खूबसूरत सीदिया थीं जिन पर जान से माग का दूसरा हिस्सा दिखाई दता था आर इन्हीं सीदियों की राह दीवार के नीचे उतर कर उस हिस्से में जाना पड़ता था। सिवा इराक और काई दूसरा रास्ता उस बाग में जिस हम दूसरा हिस्सा कहत हजार के लिए नही था याग के इसी दूसरे हिस्स में 4 इमारत या काठी थी जिसमें मायारानी दर्यार किया करती थी या जिसमें पहुच कर गनक न मायारानी का दया था। पहिल हिस्स की अपेक्षा यह हिस्सा विशप खूबसूरत और सजा हुआ था। याग क तीसरे हिस्से में जाने का रास्ता उसी मकान के अन्दर से था जिसमें मायारानी रहा करती थी। चाग के तीसरे हिस्से का हाल लिखा जरा मुश्किल है तथापि इमारत क वार में इतना कह सकते है कि इस तीसरे हिस्स के बीचोबीध में एक बहुत ऊचा बुर्ज था। उस पुर्ज के चारों तरफ कई मकान थ जिना दालानों काटरियों कमरो और बारहदरियों तथा तहखानों का हाल इस जगह लिखना कठिन है क्योंकि उन सभी का तिलिरमी वार्ता स विशप सम्बन्ध है। हा इतना कह सकत है कि उसी पुज में स बाग के चौथे हिस्सम जानेका रास्ता था मगर इस बाग चौथे हिरस में क्या है उसका हाल लियत कलजा कॉपता है। इस जगह हम उसका जिक्र करना मुरासिब नहीं समझत आग जाकर किसी मौके पर यह हाल लिखा जायगा। जब वह लौडी असली विहारीसिह को जो बाग के फाटक पर आया था लेने चली गई तो नकली बिहारीसिह अर्थात् तेजसिह ने मायारानी स कहा इस इश्वर की कृपा ही कहनी चाहिए कि पर शैतान एयार जिसन मेर साथ जबदसती की ओर ऐसी दवा खिलाई कि जिसक असर समे पागल है। हा गया था घर बैठ फर्द में आ गया। माया-ठाक है मगर दखा चाहिए यहा पहुँध कर पा रग लाता है। विहारी-जिस समय वह यहा पहुँचे सम के पहिले हथकड़ी और बेड़ी उसके नजर करनी चाहिए जिसमें मुझे देखकर भागन का उद्योग करें। माया-जा मुनासिव हा फरा भगर मुझ यह आश्चर्य जलर मालूम होता है कि एयार जब तुम्हार साय धुरा बनाव कर ही चुका आर तुम्हें पागल चना कर छाड ही चुका था ता बिना अपग सूरत बदल यहा बयों वला आया। एयारां स एसी भूल न हानी पाहिए उसे मुनासिव था कि तुम्हारी या मर किसा ओर आदमी की सूरत बना कर आता। विहारी-ठीक है मगर जो कुछ उसने किया वह भी उचित ही किया। गरी या यहाका किसी और नौकर का सूरत बन कर उसका यहा आना तय अच्छा होता जब मुझ गिरफ्तार । माया-म यह भी सोचती हूँ कि तुम्हें गिरफ्तार करके पागातही या कराउदन में उसन क्या फायदा साया था? गरी समझ में तो यह उसन भूल की। इतना कहकर मायारानी न टालने की नीयत सन्करली विहारासिंह अर्थात तेजसिह मी सम्झ गए कि मायारानी को भरी तरफ से कुछ शक हो गया है और इस शक को मिटारे के लिए वह किसी तरह की जॉच जरूर करेगी तथापि इस समय बिहारीसिह (तेजसिह ) न एसा गम्भीर भाव धारण किया कि मायारानी का शक बहन न पाया। थाडीदर तक इधर उधर की बातें होती रही और इसके बाद लाडी असली बिहारीसिह को लेकर आ पहुँची। आज्ञानुसार असली बिहारीसिह पर्दे के बाहर बैठाया गया । अभी तक उसकी आँखों पर पट्टी बची हुई थी। असली विहारीसिह की ऑखो स पटटी खोली गई और उसन पारो तरफ अच्छी तरह निगाह दौडाने याद कहा बड़ी खुशी की बात है कि मैं जीता जागता अपने घर में आ पहुँचा। ( हाथ का इशारा करके) में इस बाग को और अपने साथियों का खुशी की निगाह से देखता है। इस बात का अफसास नहीं है कि मायारानी ने मुझसे पर्दा किया क्योंकि जब तक में अपना बिहारीसिह हाना सावित न कर दूं तब तक इन्हें मुझ पर भरोसा न करना चाहिए मगर मुझ (हरनामसिह की तरफ दर कर और इशारा करक) अपन इस अनूठ दोस्त हरनामसिंह पर अफसोस हाता है कि इन्होंने मेरी कुछ भी परवाह न की और मुझे ढूंढने का भी कष्ट न उठाया। शायद इसका समय यह हा कि यह ऐयार मेरी सूरत बन कर इनके साथ हा लिया हो जिसने मुझे धोखा दिया ! अगर मेरा सयाल ठीक है तो वह ऐवार यहा जरूर आया होगा मगर ताज्जुन की बात है कि में चारों तरफ निगाह दौडान पर भी उस नहीं दखता। सर यदि यहा आया तो देख ही लूंगा कि विहारीतिह यह है या मैं हू । केवल इस याग के चौथे भाग क बार में थाड सवाल करने से ही सारी कलई खुल जायगी। असली बिहारीसिह की बातो का इस जगह पहुचन के साथ ही उसने कही सभों पर अपना असर डाला। मायारानी के दिल पर तो उसका बहुत ही गहरा असर पड़ा मगर उसन बड़ी मुश्किल से अपने को सम्हाला और तय एक निगाह तेजसिह के ऊपरअली। तेजसिंह को यह क्यासारथी किया कोई ऐसा विचित्र सग देखने में आया और उसके देवकीनन्दन खत्री समग्र ३८४