पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/३९६

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Q यह साचते ही नागर न बटुए में स वह चीटी निकाली और पढने लगी। यह लिखा हुआ था- जिस काम के लिए आई थी ईश्वर की कृपा से वह काम बखूबी हो गया। वे कागजात इसके पास है ले लेना। दुनिया में यह बात मशहूर है कि उस आदमी का जहान से उठ जाना ही अच्छा है जिससे भलों को कष्ट पहुंचे। मै तुमस मिलने के लिए यहा बैठी हूँ। नागर-देखो नालायक ने चीठी भी लिखी ता ऐसे ढग से कि यदि मैं चोरी से प₹ भी तो किसी तरह का शक न हो और इसका पता भी न लगे कि यह भूतनाथ के नाम लिखी गई है या मनोरमा के स्त्रीलिंग और पुल्लिग को भी बचा ले गई है। उसने यही सोच क चीठी मुझे दी होगी कि जब यह भूतनाथ के कब्जे में आ जायगी और वह इसकी तलाशी लेगा तो यह चीठी उसक हाथ लग जायगी और जब वह पढेगा तो नागर को अवश्य मार डालेगा और फिर तुरत आकर मुझसे मिलेगा जिसमें वह किशोरी का छुडा ल! अच्छा कम्बख्त देख मैं तेरे साथ क्या सलूक करती हूँ। भूत- अच्छा इतना वादा तो मैं कर ही चुका हूँ कि हर तरह से तुम्हारी तावेदारी करेगा और जो कुछ तुम कहागी बेउज वजा लाऊँगा अब इस समय में तुम्हें एक भेद की बात बताता हूँ जिसे जान कर तुम बहुत प्रसन्न होवोगी। नागर-कहो क्या कहते हो ? शायद तुम्हारी नेकचलनी का सबूत मिल जाय । भूत-मेर हाथ तो बंधे हैं खैर तुम हो आओ मेरी कमर से खजर निकालो। उसके साथ एक पुर्जा वधा है खोल कर पढो देखो क्या लिखा है ? नागर भूतनाथ के पास गई और उसकी कमर से खजर निकालना चाहा मगर खजर पर हाथ पडते ही उसके बदन में बिजली दौड गई और वह कॉप कर जमीन पर गिरते ही बेहोश हो गई। भूतनाथ पुकार उठा- यह मारा। उस तिलिस्मी खजर का हाल जो कमलिनी ने भूतनाथ को दिया था पाठक वखूबी जानते ही हैं कुछ लिखने की आवश्यकता नहीं। इस समय वही खजर भूतनाथ की कमर में था। उसकी तासीर .. मगर बिल्कुल बेखबर थी। वह नहीं जानती थी कि जिसक पास उसके जोड की अंगूढी न हो वह उस खजर को छू नहीं सकता । अव भूतनाथ का जी ठिकाने हुआ और वह अपने छूटन का उद्योग करन लगा परन्तु हाथ पैर बध रहने के कारण कुछ कर न सका। आखिर वह जोर जोर से चिल्लाने लगा जिससे किसी आते जाते मुसाफिर के कान में आवाज पर्डतो वहाँ आकर उसको छुडावे। दो घन्टे बीत गए मगर किसी मुसाफिर के कान में भूतनाथ की आवाज न पडी और तब तक नागर भी होश में आकर उठ बैठी। दूसरा बयान हम ऊपर लिख आए है कि राजा वीरेन्द्रसिह तिलिस्मी खण्डहर से (जिसमें दोनों कुमार तारासिह इत्यादि गिरफ्तार हो गए थे) निकल कर रोहतासगढ की तरफ रवाना हुए तो तेजसिह उनसे कुछ कह कर अलग हो गए और उनक साथ रोहतासगढ न गए। अब हम यह लिखना मुनासिब समझते हैं कि राजा वीरेन्द्रसिह से अलग होकर तेजसिह ने क्या किया। एक दिन और रात उस खण्डहर के चारों तरफ जगल और मैदान में तेजसिह घूमते रहे मगर कुछ काम न चला। दूप्सर दिन वह एक छोट स पुराने शिवालय के पास पहुंचे जिसके चारों तरफ वेल और परिजात के पेड बहुत ज्यादे थे जिसके सबब से वह स्थान बहुत टड़ा और रमणीक मालूम होता था। तेजसिह शिवालय के अन्दर गए और शिवजी का दर्शन करने के बाद बाहर निकल आए उसी जगह स बेलपन्न तोडकर शिवजी की पूजा की और फिर उस चश्मे के किनार जो मन्दिर के पीछ की तरफ वह रहा था बैठ कर सोचने लगे कि अब क्या करना चाहिए। इस समय तेजसिह एक मामूली जमींदार की सूरत में थे और यह स्थान भी उस खण्डहर से बहुत दूर न था। थाडी देर बाद तेजसिह के कान में आदमियों के बोलन की आवाज आई। बात साफ समझ में नहीं आती थी इससे मालूम हुआ कि ये लोग कुछ दूर पर है। तेजसिह ने सिर उठा कर देखा तो कुछ दूर पर दो आदमी दिखाई पड़ जो उसी शिवालय की तरफ आ रहे थे। तजसिह चश्मे के किनारे से उठ खडे हुए और एक झाड़ी के अन्दर छिप कर देखने लगे कि वे लोग कहा जात और क्या करत है। इन दोनों की पाशाके उन लोगों से बहुत कुछ मिलती थी जो तारासिह की चालाकी से तिलिस्मी खण्डहर में बेहोश हुए थे और जिन्हें राजा बीरेन्द्रसिंह साधू बावा ( तिलिस्मी दारोगा )के सहित कैदी बना कर रोहतासगढ ले गए थे इसलिए तेजसिह ने सोचा कि ये दोनों आदमी भी जरूर उन्हीं लागों में से है जिनकी देवकीनन्दन खत्री समग्र