पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/३८२

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ext पहाडी के नीचे सूअर का शिकार कर रही थी जब वह मेरे पास पहुँचा मेन उस ललकारा और पूछा कि पीठ पर क्या लाद लिये जाता है। जब उसन कुछ न बताया तो लाचार (नेजा दिखा कर ) इसी जहरीले नेजे से उसे जख्मी किया। जब वह वहोश होकर गिर पडा तब मैने गठरी खोली जव तुम्हारी सूरत नजर आई तो हाल जानन की इच्छा हुई लाचार इस जगह उठा लाई और हाश में लान का उद्योग करने लगी। अब तुम्ही यताआ कि वह आदमी कौन था और तुम्हें इस तरह क्यों लिए जाता था। मनो--में अपना हाल तुमसे जरुर कहूँगी मगर पहिले यह बताओ कि वह आदमी तुम्हारे इस जहरील नेजे के असर से मर गया था जीता है। कम-वह मर गया और मेरे साथी लोग उसे जला देने के लिए ले गए। मनो-(ऊँची सास लेकर ) अफसास यद्यपि उसने मेरे साथ बहुत बुरा बर्ताव किया तथापि उसकी मोहब्बत मरे दिल से किसी तरह नहीं जा सकती क्याकि वह मेरा प्यारा पति था। अफसास अफसोस तुमन उसके हाथ से मुझ व्यर्थ छुडाया। पाटक झाडी के अन्दर छिपा हुआ भूतनाथ भी मनोरमा की बातें सुन रहा था। मनारमा ने जो कुछ कमलिनी से कहा न मालूम उसमें क्या तासीर थी कि सुनने के साथ ही भूतनाथ का कलेजा कापने लगा और उसे चक्कर सा आ गया। बहुत मुश्किल से उसने अपने को सम्हाला और कान लगा कर फिर दोनों की बातें सुनने लगा। कम-( कुछ सोच कर ) में कैसे विश्वास करूँ कि तुमने जो कहा वह सच है। मनो-पहिल यह सोचो कि मैं तुमसे झूठ गयों बोलूगी ? कम इसके कइ सबब हो सकते है मय से भारी सबब यह है कि तुम्हारा भेद एक गैर के सामने खुल जायेगा जिससे तुम्हें कोई मतलब नहीं। मगर मुझे विश्वास नहीं होता कि जो आदमी तुम्हें इतना कष्ट दे और बेहोश करे गठरी में चाध कर कहीं ल जाने का इरादा रक्खे उसे तुम प्यार करो और अपना पति कह कर सम्बोधित करा । मनो-नहीं नहीं यों तो शक की दवा नहीं परन्तु मैं इतना अवश्य कहूंगी कि उस आदमी के वार में मैने जो कुछ कहा वह सच है। कम-खैर एसा ही होगा मुझ इससे कोई मतलय नहीं चाहे वह आदमी तुम्हा! पति हो अथवा नहीं अब तो वह मरचुका किसी तरह जी नहीं सकता। खैर यह तो बताआ कि अब तुम क्या किया चाहती हो ओर कहा जान की इच्छा रखती हो? मनो-मुझे गयाजी का रास्ता बता दो। मेरे माँ बाप उसी शहर म रहते है अब मै उन्हीं के पास जाऊँगी। कम-अच्छा पहाडी के नीचे चलो मै तुम्हें गयाजी का रास्ता यता देती हूँ। हॉ मैं तुम्हारा नाम पूछना तो भूल ही गई। मनो-मेरा नाम इमामन है। कम (जोर से हँस कर) क्या ठगने के लिए भै ही थी । मनो-(चौक कर और कमलिनी को सिर से पैर तक अच्छी तरह देख कर ) मुझे तुम पर शक होता है। कम-यह कोई ताज्जुब की बात नहीं मगर शक होने ही से क्या हो सकता है ? आज तक तुमने मुझे कभी नहीं देखा और न फिर देखोगी। मनो-तब मै अवश्य ही कह सकती हूँ कि तुम कमलिनी हो । कम-नहीं नहीं मै कमलिनी नहीं हो सकती हॉ कमलिनी को पहिचानती जरूर हूँ क्योंकि वह बीरेन्द्रसिह और उनके खानदान की दोस्त है इसलिए मेरी दुश्मन । मनो-अब मैं तुम्हारी यातों का विश्वास नहीं कर सकती। कम-तो इसमें मरा कोई भी हर्ज नहीं। (आहट पाकर और दाहिनी तरफ देखकर ) लो देखो अब तो मैं सच्ची हुई? वह कमलिनी आ रही है। सयोग से उसी समयतारा भी आ पहुँची जो कमलिनी की सूरत में उसके कहे मुताबिक सब काम किया करती थी। कमलिनी ने गुप्त रीति से तारा को कुछ इशारा किया जिससे वह कमलिनी का मतलब समझ गई। कमलिनीच्या तारा लपक कर उन दोनों के पास पहुंची और कभर से खजर निकाल कर और उसे चमका कर बोली, 'इस समय तुम दोनों भले ही मौके पर मुझे मिल गई हो। आज मेरा मनोरथ हुआ अब मै तुम दोनों से बिना बदला लिए टलने वाली नहीं। तारा की यह बात सुन कमलिनी जान चूझ कर कापन लगी मालूम होता था कि वह डर से काप रही है। मनोरमा भी यकायक कमलिनी को मौजूद देख कर घबडा गई इसक अतिरिक्त उस धमकते हुए खजर को देख कर उसे विश्वास देवकीनन्दन खत्री समग्र