पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/३७४

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ht इस बात को सुन कर दानों आदमी ताज्जुब में आ गए और कुछ दर तक सोचने के बाद तहखाने के बाहर कल आए। बडवाइ भाखों के साथ उसास लेते हुए राजा वीरन्दसिह राहतासगढ की तरफ रवाना हुए। कैदियों और अपन कुल आदमियों का साथ लते गए मगर तेजसिंह ने न मालूम क्या कह सुन कर और क्यों छुट्टी ले ली और राजा वीरन्दसिह के साथ राहतासगढन गय। राजा वीरन्दसिह राहतासगढ की तरफ रवाना हुए तेजसिह ने दक्खिन का रास्ता लिया। इस वारदात को कई महीन गुजर गय और इस बीच में कोई बात ऐसी नहीं हुई जा लिखा याग्य हो । तीसरा बयान अब हम अपने पाठको को फिर उसी प्रदान के बीच वाल अद्भुत मकान के पास ले चला है जिसके अन्दर इन्द्रजीतसिह देवीसिह शरसिह और कमलिनी के सिपाही लोग जा फस थ अर्थात् कमन्द के सहार दीवार पर चढ कर अन्दर की तरफ झाकने के बाद हसत हसत उस मकान में कूद पड़े थे। हम लिख आए है कि जब वे लाग मकान के अन्दर कूद गए तो न मालूम क्या समझ कर कमलिनी हसी और अपनी ऐयारा तारा को साथ ले वहा से रवाना का गड़ा तारा की साथ लिए और बात करती हुई कमलिनी दक्सिन की तरफ रवाना हुई जिधर का जगल घना और साहावना था। लगभग दो कास चल जाने के बाद जगल बहुत ही रमणीक मिला बल्कि यो का चाहिय फिजैसस धे दोनों बढता जाती थी जगल सुहावना और खुशबूदार जगली फूलो की महक सवसा हुआ मिलता जाता था यहासक कि दानो एक ऐस सुन्दर चश्क के किनार पहुची जिसका जल विल्लौर की तरह साफ था और जिसके दानों किनारों पर दूर दूर तक मौलसिरी के पड लगे हुए थे। इस चश्म का भार दस हाथ का हागा आर गहराइ दो हाथ स ज्याद न होगी। यहा की जमीन पथरीली और पहाडी थी। अब ये दोनों उस चश्मे के किनारे किनारे जाने लगा। ज्यो ज्यों आग जाती थीं जमीन ऊची मिलती जाती थी जिसस समझ लना चाहिए कि यह मुकाम किसी पहाडी की तराई में है। लगभग आधा कोस जाने के बाद वे दोनों ऐसी जगह पहुंची जहाँ चश्म के किना वाले मौलसिरी के पेड़ झुक कर आपुस में मिल गए थे और जिसके समब से चश्मा अच्छी तरह से ढक कर मुसाफिरों का दिल लुभा लेने वाली छटा दिखा रहा था। इस जगह चश्मे के किनारे एक छोटा सा चबूतरा था जिसकी ऊचाई पुर्सा भर से कम न हागी। चबूतरे पर एक छोटी सी पिण्डी इस ढंग से बनी हुई थी जिसे देखते ही लागों को विश्वास हा जाय कि किसी साधु की समाधि है। इस ठिकाने पहुंच कर वे दोनों रुकी और घोड़े से नीचे उतर पड़ी। तारा ने अपने घोडे का असबाब नहीं उतारा अर्थात् उर्स कसा कसाया छोड दिया परन्तु कमलिनी ने अपन बोर्ड का चारजामा उतार लिया और लगाम उतार कर घोड का यों ही छोड़ दिया। घोडा पहिलेता चश्मे के किनार आया और पानी पीने के बाद कुछ दूर जाकर सब्ज जमीन पर चरने और खुशी खुशी घूमन लगा। तारा ने भी अपने घोड़े को पानी पिलाया और बागडोर के सहारे एक पेड़ से बाह दिया। इसके बाद कमलिनी और तारा चश्मे क किनारे पत्थर की एक चट्टान पर बैठ गई और यो बातचीत करने लगी- कम-अब इसी जगह से मैं तुमसे अलग होऊँगी। तारा-अफसोस यह दुश्मनी अब हद से ज्यादे बढ चली?

  • इसका नाम 'मालश्री भी है।

देवकीनन्दन खत्री समग्र