पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/३२०

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दि जो कम कहकर तारासिल दिग्विजयसिs at ki लिए चले गय और यार में उर अपन सावसकर हाजिर यता र उपर की याd ort st! fulturसिक . २ रा धीरे दलित को महिला और हाय जाडकर सामोरादाहा गया। धीरेन्द-करिय अब क्या इरादार? दिग्वि-या इरादा । किजम भर आप 1.1 और धारी | वीरेन्द्र-तीयत में किसी तरह का दिग्विजय-आप एस प्रतापी राजा का साया वाला पूरा पूरा कर किसी तरह पर आपस जीतने की उम्मीद रखे। इसमें कोई सहीfor एक-एक ऐगार दस राजा गारत कर देन की सामथ्र्य रयत । मुइस राह आसाम किले की पर, मरा 20 मगर अचान हो गया कि हरी भूल थी। आप जिरा राजा की राई विना ला पातहकार adमरा तो अपलक कर कुछ समझ में नहीं आता कि क्या हुआ और आपके एयारो नया शापार दिया। पदावा ATR TERTAक मद कतार पर छिपा चला आता या पल्किा सच furs for Dies का dih- in Hindi मुझमी मालूम ना आ उरी सहयान पर बात की बात में आपके एगारों का THE.यह करामात नहीं तो क्या हैराक इरवरी आप पर कृपा है और यः सब सच्चा दिल से उपास I aaitrp है। आप दुरमीना अपाय स अ सिर काटना है। दिग्विजयसित की गात सुनार राजा वीरेन्दसिह राय और उ को सरदर लगा दिपियसिह ने जिस दास ऊपर लिधी बाते कहीं उसमें सपा की पू आती थी। भीर सिंह यार एरा हुए और feireपसिह को अपने पास बैठा फर पाले--- वीरेन्द्र-सु दिग्विजयदि, हम तुम्हे छोड़ देते है और सरतामा की गद्दी पर अपनी तरफ स तुम्बडा मगर एक शर्त पर कि तुम हमश अप का हमारा माहित समझा और विराज की हार पर मालगुजारी दिया करो। दिग्वि- ता अप1 का आपका ताबेदार सम असा समझूगा बाकी 8 राहातगड़ की गदी सो मुझे मन्जूर नही। इसके लिए आप को दसरा नाय मुकर्रर कीजिए और मुझे अपा साब रहने का हुक्म दीजिये। थीरेन्द-तुगर्स चढ़कर और कोई नायक समय के लिए दिया होता। दिग्वि-(हाय जाड कर समुज पर जिये अब रास काल में ही उटा सरता। आधे घण्ट का यही मुज्जत रहावीर सिंह से हारतलासर की गद्दी पर विपिज्यरिह का पैठाया चारत और दिग्विजयरिग इन्कार करायलका आरियर लापारकर दिबिजवादको यो सिंहादुरन मजूर करारापा मगर साथ ही इसका उपसिसइतवातकार करा लियामहा नर आपको मरा भरमान बन पड़ा और इसन दि तक राहताताह में रहना पड़गा। धीरदसि . इस बात का रशी से मजूर किया क्योकि राहतासगयाने काही मालूम कर7] 11 वारन्द्रासन और जसिह को विश्वास हो गया था कि वह जरूर कोई सिलिम है। राजा दिग्विजयसि राय जाकर जाति की 1 और 2017 पर मुझ समझा दीजिए कि आप और आपक मातहत ऐयार लोगों ने सहलासगढ में या विश अनी तक मेरो अपलसाना राजसिह ने सब हाल सुलास तौर पर सुराया। दीदामाद का विविजयसिह रपूर हने याला उ अपनी यवकूफी पर भी इसी आई और बाल अप लोगो से कोई बात दूर है। इसके बाद चार रामानन्द ने उसी जगा बुलवाय गय और दिग्विजयसिह के हवाले किए गय और दिग्विजयसि क लक और कल्याणारे का लान के लिए भी कई आदमी पारगढ रवाना किए गए। इन सब कामों से छट्टी भाकर लाली के बार में बातचीत होने लगी! सिट दिग्विजयसिंह से पूछा कि लाली कौन है और आपके यहा कय से है? इसके जवाब में दिग्विजायपि कहा कि लाली कमी नही जानते । मही भर से ज्यादा न हुआ होगा कि चार-पाच दिर के आगे पा लाती और कुबन दो जवान औरत मरे या पहुची। उनकी पाल दाल और पाशाक से मुझे मालूम हुआ कि किसी इज्जदार धरी की लड़किया है। पूछने पर उन दानों ने अपना इज्जदार घरान की लडकी जाहिर भी किया और कहा कि अपको मुसीबत के दामीन महीन आपके यहा बाटना चाहती हूँ। हम या फार भने उन दा को इज्जत के साथ अपने यहा रक्या, बस इसके सिवाय में नहीं जानता। तेज-वशक इसमें कोई भेद है वेदानों साधारण औरतें नही है। ज्योतिषी-एक ताज्जुब की बात में सुनासा ! देवकीनन्दन खत्री समग्र २९६