पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/३१०

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lort राममोली का चेहरा गवाही दे रहा था कि वह इस अगूठी को पाकर हद्द से ज्यादे खुश हुई है। रामभोली ने इज्जत देने के ढग पर उस अगूठी को सिर से लगाया और अपनी अंगुली में पहिर लिया चीठी कमर में खौसकर फुर्ती से उस घोड़े पर सवार हो गई और देखते ही देखते जगल में घुसकर नजरों से गायब हो गई। नानकप्रसाद यह तमाशा देख भौचक सा रह गया कुछ करते-धरते बन न पडा। न मुँह से कोई आवाज निकली और न हाथ के इशारे ही से कुछ पूछ सका पूछता भी तो किससे? रामभोली ने तो नजर उठा के उसकी तरफ देखा तक नहीं। नानक बिल्कुल नहीं जानता था कि यह सुखं पोशाक वाली औरत है कौन जो यकायक यहा आ पहुची और जिसने इशारेबाजी करके रामभोली को अपने घोड़े पर सवार कर भगा दिया। वह औरत नानक के पास आई और हस के बोली- औरत--वह औरत जो तेरे साथ थी मेरेघोडे पर सवार होकर चली गई कोई हर्ज नहीं मगर तू उदास क्यों हो गया? क्या तुझसे उससे कोई रिश्तेदारी थी? नानक रिश्तेदारी थी तो नहीं मगर होने वाली थी तुमने सब चौपटकर दिया 1 औरत-( मुस्कुरा कर ) क्या उससे शादी करने की धुन समाई थी? नानक-बंशक ऐमा ही था। वह मेरी हो चुकी थी तुम नहीं जानती कि मैंने उसके लिए कैसी-कैसी तकलीफें उठाई। अपने बाप-दादे की जमींदारी चौपट की और उसकी गुलामी करने पर तैयार हुआ। औरत-(बैठ कर ) किसकी गुलामी ? नानक उसी रामभाली की जो तुम्हारे घोड़े पर सवार होकर चली गई। औरत-(चौक फर ) क्या नाम लिया जरा फिर तो कहो? नानक-रामभोली। औरत-(हस कर ) बहुत ठीक तू मेरी सखी अर्थात उस औरत को कब से जानता है । नानक-(कुछ चिढ कर और मुह बनाकर उसे मैं लडकपन से जानता है मगर तुम्हें सिवाय आज के कभी नहीं देखा वह तुम्हारी सखी क्योंकर हो सकती है? औरत-तू झूठा घेवकूफ और उल्लू बल्कि उल्लू का इत्र 'तू मेरी सखी को क्या जाने जब तू मुझे नहीं जानता तो उसे क्योकर पहिचान सकता है? उस औरत की बातों ने नानक को आपे से बाहर कर दिया। वह एकदम चिढ गया और गुस्से में आकर म्यान से .तलवार निकाल कर बोला- नानक-कम्बख्त औरत ते मुझे बेवकूफ बनाती है । जलीकटी बातें कहती है और मेरी आखों में धूल डाला चाहती है। अभी तेरा सर काट क फेंक देता हू !' औरत-(हसकर) शाबाश क्यों न हो आप जवामर्द जा ठहर (नानक के मुह क पास चुटकिया बजाकर) चेत ऐठासिह जरा होश की दवा कर । अब नानकप्रसाद बर्दाश्त न कर सका और यह कहकर कि ले अपने किये का फल भोग | उसने तलवार का वार उस औरत पर किया। औरत ने फुर्ती से अपने को बचा लिया और हाथ यढा नानक की कलाई पकड जोर से ऐसा झटका दिया कि तलवार उसके हाथ से निकल कर दूर जा गिरी और नानक आश्चर्य में आकर उसका मुंह देखने लगा। औरत हसकर नानक से कहा बस इसी जवामी पर मेरी सखी से ब्याह करने का इरादा था बस जा और हिजले में मिल कर नाचा कर। इतना कह कर औरत हद गई और पश्चिम की तरफ रवाना हुई। नानक का क्रोध अभी शान्त नहीं हुआ था। उसने अपनी तलवार जो दूर पड़ी हुईथी उठाकर भ्यान में रख ली और कुछ सोचता और दात पीसता हुआ उस औरत के पीछे-पीछे चला । वह औरत इस बात से भी होशिशार थी कि नानक पीछे से आकर धोखे में तलवार न मारे वह कनखियों से पीछे की तरफ देखती जाती थी। थोडी दूर जाने के बाद वह औरत एक कुए पर पहुची जिसका सगीन चबुतरा एक पुर्से से कम ऊचा न था। चारो तरफ चढने के लिए सीढियो अनी हुई थीं। कुआं बहुत बड़ा और खूबसूरत था,वह औरत कुएँ पर चली गई और बैठकर धीरे-धीरे गाने लगी। समय दोपहर का थाधूप खूब निकली थी मगर इस जगह कूए के चारो तरफ घने पेड़ों की ऐसी छाया थी और ठडी ठडी हवा आ रही थी कि नानक की तबियत खुश हो गई क्रोध-रज और बदला लेने का ध्यान बिल्कुल ही जाता रहा तिस पर उस औरत की सुरीली आवाज में और भी रग जमाया। वह उस औरत के सामने जा कर बैठ गया और उसका 1 चन्द्रकान्ता सन्तति भाग ४ २८३