पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/३०८

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नानक ने वैसा ही किया दूसरी कोठरी जिसमें पलग विछा हुआ था और कुछ असवार और सन्दूक रखा हुआ था गया और उसी ताली से एक सन्दूक खोलकर वह टीन का डिब्बा रख दिया और उसी तरह ताला बन्दकर ताली उस औरत के हवाले की । उसी समय बाहर स बन्दूक की आवाज आई। नानक ने तुरन्त बाहर जाकर पूछा 'क्या है? सिपाही-देखिये कई आदमी तैर कर इधर आ रहे है। दूसरा-मगर बन्दूक की आवाज पाकर अब लौट चले। नानक फिर अन्दर गया और बाहर का हाल पटिया पर लिख कर औरत को समझाया। वह भी उठ खडी हुई और बाहर आकर पार की तरफ देखने लगी। घंटा भर यों ही गुजर गया और अब वे आदमी जो पार दिखाई दे रहे थे या तैर कर इस यजर्ड की तरफ आ रहेथे कहींचले गये दिखाई नहीं देते। नानकप्रसाद को साथ आने का इशारा करके वह औरत फिर बजडे के अन्दर चली गई और पीछ नानक भी गया। उस गठरी में और जो-जो चीजें थीं वह गूगी औरत देखने लगी। तीन चार बेशकीमत मर्दाने कपडों के सिवाय और उस गठरी में कुछ भी न था। गठरी बाध कर एक किनारे रख दी गई और पटिया पर लिख-लिख कर दोनों में बातचीत होने लगी। औरत-कलमदान में जो चीठिया है ये तुमने कहा से पाई? मानक-उसी कलमदान में थी। औरत-और वह कलमदान कहा पर था ? भानक-उसकी चारपाई के नीचे पड़ा हुआ था, घर में सन्नाटा था और कोई दिखाई न पडा जो कुछ जल्दी में पाया ले आया। औरत-खैर कोई हर्ज नहीं। हमें केवल उस टीन के डिब्बे से मतलवथा यहरुलमदान मिल गया तो इन चीठी पुर्जा से भी बहुत काम चलेगा। इसक अलावे और कई बातें हुई जिसके लिखने की यहा कोई जरूरत नहीं। पहर रात से ज्यादे जा चुकी थी जब वह औरत वहास उठी और शमादान जो जल रहाथा बुझाअपनी चारपाई पर कर लेट रही। नानक भी एक किनारे फर्श पर सो रहा और रात भर नाव बेखटके चली गई कोई बात ऐसी नहीं हुई जो लिखने योग्य हो। जब थोडी रात याकी रही वह औरत अपनी चारपाई से उठी और खिडकी से बाहर झाककर देखने लगी। इस समय आसमान बिल्कुल साफ था चन्द्रमा के साथ ही साथ तारे भी समयानुसार अपनी चमक दिखा रहे थे और दो तीन खिडकियों की राह इस यजड़े के अन्दर भी चादनी आ रही थी। बल्कि जिस चारपाई पर वह औरत सोई हुई थी चन्द्रमा की रोशनी अच्छी तरह पड रही थी। वह औरत धीरे से चारपाई के नीचे उतरी और उस सन्दूक को खोला जिसमे नानक का लाया हुआ टीन का डिब्या रखवा दिया था। डिव्या उसमें से निकाल कर चारपाई पर रक्खा सन्दूक बन्द करने के बाद दूसरा सन्दूक खोलकर उसमें से एक मोमबत्ती निकाली और चारपाई पर आकर बैठी रही। मोमबत्ती में से मोम लेकर उसने टीन के डिव्ये की दरारों को अच्छी तरह बन्द किया और हर एक जोड़ में मोम लगाया जिसमें हवा तक भी उसके अन्दर न जा सके। इस काम के बाद वह खिडकी के बाहर गर्दन निकालकर बैठी और किनारे की तरफ देखने लगी। दो माझी धीरेधीरे डाडखे रहे थे जब वे थक जाले तो दूसरे दो को उठाकर उसी काम पर लगा देते और आप आराम करते। सवरा होते-हाते वह नाव एक ऐसी जगह पहुची जहा किनारे पर कुछ आबादी थी, बल्कि मगा के किनारे ही एक ऊँचा शिवालय भी था और उतर कर गगाजी में स्नान करने के लिए सीढिया भी बनी हुई थीं। औरत ने उस मुकाम को अच्छी तरह देखा और जब वह बजडा उस शिवालय के ठीक सामने पहुंचा तब उसने टीन का डिव्या जिसमेंकोई अदभुत वस्तु थी और जिसके सूराखों को उसने अच्छी तरह मोम से बन्द कर दिया था जल में फेंक दिया और फिर अपनी चारपाई पर लेट रही। यह हाल किसी दूसरे को मालूम न हुआ। थोड़ी ही देर में वह आबादी पीछे रह गई और बजडा दूर निकल गया। जब अच्छी तरह सवेरा हुआ और सूर्य की लालिमा निकल आई तो उस औरत के हुक्म के मुताबिक यजडा एक जगल के किनारे पहुचा। उस औरत ने किनारे चलने का हुक्म दिया। यह किनारा इसी पार का था जिस तरफ काशी पडती है या जिस हिस्से से बजड़ा खोलकर सफर शुरू किया गया था। बजडा किनारे-किनारे जाने लगा और वह औरत किनारे के दरख्तों को बड़े गौर से देखने लगी। जगल गुजान और रमणीक था सुबह के सुहावने समय में तरह तरह के पक्षी बोल रहे थे हवा के झपेटों के साथ जगली फूलों की मीठी खुशबू आ रही थी। वह औरत एक खिडकी में सिर रक्से जगल की शोमा देख रही थी। यकायक उसकी निगाह किसी - चन्द्रकान्ता सन्तति भाग ४ २८१