पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/३०२

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- किस ऐयार को लेजाओगे? तेज-मुझे तो इस समय कई ऐयारों की जरूरत थी मगर यहा केवल चार मौजूद है और बाकी सब कुँअर इन्दजीतसिह का पता लगाने गये हैं खैर कोई हर्ज नहीं । पण्डित बद्रीनाथ को तो इसी लश्कर में रहने दीजिये उन्हें किसी दूसरी जगह भेजना मै मुनासिब नहीं समझता क्योंकि यहाँ बडे ही चालाक और पुराने ऐयार का काम है बाकी ज्योतिषीजी निरो और तारा को मैं अपने साथ ले जाऊगा। धीरेन्द-अच्छी बात है इन तीनों से तुम्हारा काम बखूबी चलेगा। तेज-जी नहीं मै तीनों ऐयारों को अपने साथ नहीं रक्खा चाहता बल्कि भैरो और तारा को तो वहा का रास्ता दिखा- कर वापस कर दूंगा इसके बाद वे दोनों थोडे से लडाको को मेरे पास पहुचा कर फिर आपको या कुअर आनन्दसिह को लेकर मेरे पास आवेंगे तब वह सब कार्रवाई की जायगी जो मैं आपसे कह चुका है। वीरेन्द-और यह दारोगा वाली किताय जो तुम ले आये हो क्या होगी? तेज--इसे फिर अपने साथ ले जाऊगा और मौका मिलने पर शुरू से आखीर तक पढ़ जाऊगा, यही तो एक चीज हाथ लगी है। वीरेन्द-बेशक उम्दा चीज है (किताब तेजसिह के हाथ से लेकर ) रोहतासगढ तहखाने का कुल हाल इससे तुम्हें मालूम हो जायेगा बल्कि इसके अलावे वहा का और भी बहुत कुछ भेद मालूम होगा। तेज-जी हा इसमे दारोगा ने रोज-रोज का हाल लिखा है मैं समझता हू वहा ऐसी-ऐसी और भी कई किताबें होंगी जो इसको पहिले के और दारोगाओं के हाथ से लिखी गई होगी। धीरेन्द्र-जरूर होंगी और इससे उस तहखाने के खजाने का भी पता लगता है। तेज-लीजिए अब वह खजाना मी हमी लोगों का हुआ चाहता है । अब हमें यहा देर न करके बहुत जल्द वहा पहुचना चाहिए क्योंकि दिग्विजयसिह मुझे और दारोगा को अपने पास बुला गया था देर हो जाने पर वह फिर तहखाने में आवेगा और किसी को न देखेगा तो सब काम ही चौपट हो जायेगा। । वीरेन्द्र-ठीक है अब तुम जाओ देर मत करो। कुछ जलपान करने के बाद ज्योतिषीजी भैरोसिह और तारासिंह को साथ लिए हुए तेजसिह वहा से रोहतासगढ़ की तरफ रवाना हुए और दो घण्टे दिन रहते ही तहखाने में जा पहुचे। अभी तक तेजसिह रामानन्द की सूरत में थे। तहखाने का रास्ता दिखाने के बाद भैरोसिह और तारासिंह को तो वापस किया और ज्योतिषीजी को अपने पास रक्खा। अबकी दफे तहखाने से बाहर निकलने वाले दैर्वाजे में तेजसिह ने ताला नहीं लगाया उन्हें केवल खटकों पर बन्द रहने दिया। दारोगा वाले रोजनामचे के पढ़ने से तेजसिह को बहुत सी बातें मालूम हो गई जिसे यहा लिखने की कोई जरूरत नहीं समय-समय पर आप ही मालूम हो जायेगा हा उनमें से एक बात यहा लिख देना जरूरी है। जिस दालान में दारोगा रहता था उसमें एक खम्मे के साथ लोहे की एक तार बधी हुई थी जिसका दूसरा सिरा छत में सूराख करके ऊपर की तरफ निकाल दिया गया था। तेजसिह को किताब के पढने से मालूम हुआ कि इस तार को खैचने या हिलाने से वह घण्टा बोलेगा जो खास दिग्विजयसिह के दीवानखाने में लगा हुआ है क्योंकि उस तार का दूसरा सिरा उसी घटे से चधा है। जब किसी तरह की मदद की जरूरत पड़ती थीं तब दारोगा उस तार को छेडत'था। उस दालान के बगल की एक कोठरी के अन्दर भी एक बड़ा सा घण्टा लटकता था जिसके साथ बीहुई लोहे का तार का दूसरा हिस्सा महाराज के दीवानखाने में था। महाराज भी जब तहखाने वालों को होशियार किया चाहते थे या और कोई जरूरत पड़ती थी तो ऊपर लिखी रीति से वह तहखाने का घटा भी बजाया जाता और यह काम केवल महाराज का था क्योंकि तहखाने का हाल वहुत गुप्त था तहखाना कैसा है और उसके अन्दर क्या होता है यह हाल सिवाय खास-खास आठ-दसआदमियों के और किसी को भी मालूम न था इसके भेद मन्त्र की तरह गुप्त रक्खे जाते थे। हम ऊपर लिख आये है कि असली रामानन्द को ऐयार समझ कर महाराज दिग्विजयसिह तहखाने में ले आए और लौटकर' जाती समय नकली रामानन्द अर्थात तेजसिह और दारोगा को कहले गये कि तुम दोनों फुरसत पाकर हमारे पास आना। महाराज के हुक्म की तामील न हो सकी क्योंकि दारोगा को कैदकर तेजसिह अपने लश्कर में ले गये और ज्यादा हिस्सा दिन का उधर ही बीत गया था जैसा कि हम ऊपर लिख आये हैं। जब तेजसिह लौट कर तहखाने में आये तो ज्योतिपीजी को बहुत सी बातें समझाई और उन्हें कर गद्दी पर बैठाया उसी समय सामन की कोठरियों में से --- खटके की आवाज आई। तेजसिह समझा रहे है ज्योतिपीजी को तो लिटा दिया और कहा कि 1 २७५