पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/२९९

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देर बैठ कर वहा से रवाना हुआ और डयोढी पर पहुच कर इत्तिला करवाई। रामानन्द रूपी तेजसिह बैठे महाराज से बातें कर रहे थे कि एक खिदमतगार आया और हाथ जोड़कर सामने खड़ा हो गया। उसकी सूरत से मालूम होता था कि वह घबराया हुआ है और कुछ कहना चाहता है मगर आवाज मुँह से न्ने निकलती । तेजसिह समझ गये कि अब कुछ गुल खिला चाहता है आखिर खिदमतगार की तरफ देखकर बोले तेज-क्यों क्या कहना चाहता है ? खिद-मै ताज्जुब के साथ यह इतिला करते डरता हूँ कि दीवान साहय ( रामानन्द ) डयोढी पर हाजिर है। महा-रामानन्द 1 खिद-जी हा। महा-(तेजसिह की तरफ, देखकर यह क्या मामला है ? तेज-(मुस्कुराकर) महाराज बस अब काम निकला ही चाहता है। मैं जो कुछ अर्ज कर चुका वही बात है। काई ऐयार मेरी सूरत यन आया है और आपको धोखा दिया चाहता है लीजिये इस कम्बस्त को तो मैं अभी गिरफ्तार करता हू फिर दखा जायेगा। सरकार उसे हाजिर होने का हुक्म दे फिर देखें मै क्या तमाशा करता हूँ। मुझे जरा छिप जाने दें वह आकर बैठ जाय ता में उसका पर्दा खोलू । महा-तुम्हारा कहना ठीक है वेशक कोई ऐयार है अच्छा तुम छिप जाओ मैं उसे बुलाता हूँ। तेज-बहुत खूब मै छिप जाता , मगर ऐसा है कि सरकार उसकी दादी मूछ पर खूब ध्यान दें, मै एकाएक पर्दे से निकलकर उसकी दाढी उखाड लूगा क्योंकि नकली दाढी जरा ही सा झटका चाहती है। महा-(हस कर ) अच्छा अच्छा (खिदमतगार की तरफ देखकर ) देख उससे और कुछ मत कहिया केवल हाजिर होने का हुक्म सुना दे। तेजसिह दूसरे कमरे में जाकर छिप रहे और असली रामानन्द धीरे-धीरे वहा पहुचा जहा महाराज विराज रहे थे। राम्गनन्द को ताज्जुव था कि आज महाराज ने देर क्यों लगाई इससे उसका चेहर भी कुछ उदास सा हो रहा था। दाढी तो वही थी तो तेजसिह ने लगा दी थी। तेजसिह ने दाढी बनाते समय जान चूझकर कुछ फर्क डाल दिया था जिस पर रामानन्द ने तो कुछ ध्यान न दिया मगर वही फर्क अब महाराज की आखों में खटकने लगा। जिस निगाह से कोई किसी बहुरूपिये को देखता है उसी निगाह से बिना कुछ बोले महाराज अपने दीवान साहब को देखने लगे। रामानन्द यह देख कर और भी उदास हुआ कि इस समय महाराज की निगाह में अन्तर क्यों पड़ गया है। तरददुद और ताज्जुब के सवव रामानन्द के चेहरे का रग जैसे-जैसे बदलता गया,तैसे तैसे उसके ऐयार होने का शक भी महाराज के दिल में बैठता गया। कई सायत बीतने पर भी न ता रामानन्द ही कुछ पूछ सका और न महाराज ही ने उसे बैठने का हुक्म दिया। तेजसिह ने अपने लिए यह मौका बहुत अच्छा समझा झट बाहर निकल आये और हसते हुए एक फर्शी सलाम उन्होंने रामानन्द को किया। ताज्जुव,तरददुद और डर से रामानन्द के चेहरे का रंग उड गया और वह एकटक तेजसिह की तरफ देखने लगा। ऐयारी भी कठिन काम है। इस फन में सबसे भारी हिस्सा जीवट का है। जो ऐयार जितना डरपोक होगा उतना ही जल्द फंसेगा। तेजसिह को देखिये किस जीवट का ऐयार है कि दुश्मन के घर में घुसकर भी जरा भी नहीं डरता और दिन दोपहर सच्चे को झूठा बना रहा है ऐसे समय अगर जरा भी उसके चेहरे पर खौफ या तरदुद की निशानी आ जाय तो ताज्जुब नहीं कि वह खुद फस जाय । तजसिह ने रामानन्द को बात करने की भी मोहलत न दी हसकर उसकी तरफ देखा और कहा 'क्यो । क्या महाराज दिग्विजयसिह के दर को तैने ऐसा वैसा समझ रक्खा है क्या त यहा भी ऐयारी से काम निकालना चाहता है ? यहा तेरी कारीगरी न लगेगी देख तेरी गदहे की सी मुटाई मै पचकाता हू तेजसिह ने फुर्ती से रामानन्द की दाढी पर हाथ डाल दिया और महाराज को 'दिखाकर एक झटका दिया। झटका तो जोर से दिया मगर इस ढग से कि महाराज को बहुत हलका झटका मालूम हो। रामानन्द की नकली दाढी अलम हो गई। इस तमाशे ने रामानन्द को पागल सा बना दिया। उसके दिल में तरहतरह की बातें पैदा होने लगी। यह समझकर कि यह ऐयार मुझ सच्चे को झूला किया चाहता है,उसे क्राध चढ आया और वह खजर निकालकर तेजसिह पर झपटा पर तेजसिह वार वचा गए । महाराज को रामानन्द पर और भी शक बैठ गया। उन्होंने उठकर रामानन्द की कलाई देवकीनन्दन खत्री समग्र