पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/२७५

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any औरत- ठीक है। अच्छा अब जो मै कहती हू उसे गौर से सुनो। इतना कह कर उस औरत ने एक किस्से के ढग पर उस महन्थ का हाल कहना शुरू किया मगर उसने नौजवान से क्या कहा सो इस जगह बयान करना उचित नहीं जान पडता। आधे घटे तक बराबर उस औरत ने महन्थ का हाल बयान किया इसी बीच में जल भी आया और उस औरत ने अपनी प्यास भी बुझाई। जब वह औरत महन्थ की कथा समाप्त कर चुकी तो अन्त में बोली , "अब तुम्हें मुनासिब है कि सूर्य अस्त हो जाने तक उसे अपने साथ से हटने न दो और यह हाल प्रताप से भी कह दो और महन्थ को विदा करने के बाद अपने सफर का वैसा ही बन्दोबस्त करो, जैसा कि मैं कह चुकी हूँ। नौजवान-वैसा ही होगा बल्कि मेरी राय तो यह है कि इस कम्बख्त को रात भर अपने साथ घसीटे लिये चलना चाहिये । मगर इसमें कोई सन्देह नहीं कि यह बिना कुछ बन्दोबस्त किये घर से बाहर न निकला होगा। औरत- मेरा भी यही खयाल है खैर जो कुछ असल भेद था मैने तुमसे कह दिया। अब तुम जैसा उचित समझो करो, क्योंकि तुम मर्द तथा लिखे-पढ़े बुद्धिमान हो । मैं निर्बुद्धि औरत की जात तुम्हें क्या समझा सकती हूँ। नौजवान -- अस्तु कोई चिन्ता नहीं अब तुम बेफिक्र रहो देखो तो सही मैं कैसा तमाशा करता हूँ। इतना कहकर नौजवान उठा और प्रताप की तरफ चला गया जो महन्थ के पास खडा बातें कर रहा था पास पहुचने पर महन्थ ने नौजवान से कहा, 'मेरे विषय में क्या हुक्म हुआ? आशा है कि आपने मुझे छुट्टी दिला दी होगी क्योंकि अब दिन बहुत कम रह गया है और मुझे जाना बहुत दूर है। यह सुनकर नौजवान ने कुछ रूखी आवाज में जवाब दिया, 'नहीं, अभी आपको और भी कुछ देर तक हम लोगों के साथ रहना बल्कि कुछ आगे चलना पड़ेगा ।' इतना कह और प्रताप का हाथ पकड कर वह कुछ दूर एकान्त की तरफ ले गया और जो कुछ उस औरत से सुना था प्रताप से बयान किया तथा उसके सुनने से प्रताप को जो क्रोध चढ आया था उसे समझा बुझा कर शात भी किया। थोडी देर और दम लेने के बाद सवारी उठी और आगे की तरफ रवाना हुई। हम ऊपर बयान कर चुके हैं कि यहा से कुछ ही दूर आगे एक गाव दिखाई दे रहा था। अस्तु, वहा पहुचकर और एक दो आदमियों से पूछ कर प्रताप ने मालूम कर लिया कि यहा से पाच कोस पर एक बहुत बडा गाव है जहा मुसाफिरों को हर तरह से आराम मिल सकता है। आखिर जाहिर में यही ठीक किया कि हम लोग उसी अगले गाव में चल कर डेरा डालेंगे। सवारी तेजी के साथ रवाना हुई और महन्थ को भी लाचार हो कर उनके साथ जाना पड़ा। जब सध्या हो गई और अधकार ने भी कुछ-कुछ अपना दखल चारों तरफ जमा लिया और वह गाव भी जहा हमारे मुसाफिर ठहरने वाले थे,वहाँ से केवल एक कोस की दूरी पर रह गया तब नौजवान और प्रताप ने महन्थ को लौट कर अपने घर जाने की आज्ञा दी । महन्थ पीछे की तरफ लौटा और उसने अपने घोड़े को तेज किया । लौटने के साथ ही महन्थ के चहर ने पलटा खाया : जब तक वह हमारे मुसाफिर नौजवान के साथ था तब तक उसने अपने को खूब सम्हाला और अपने दिल का भाव अपने चेहरे से जाहिर न होने दिया मगर लौटने के साथ ही उसने एक लम्बी सॉस के साथ अपने दिल का भाव भी बाहर कर दिया। भृकुटी चढ़ गई आँखों ने सुर्थी के साथ अपना आकार भी बढ़ा दिया, कॉपते हुए होंठों को दाँतों ने पीसना आरम्म कर दिया और खून ने जोश में आकर थर्राहट पैदा कर दी। उस समय उसने अपने घोडे के मरने या जीने की कुछ भी परवाह न की और नौजवान तथा प्रताप इत्यादि की नजरों के ओट होते ही उसे उसकी ताकत के माफिक दौडाया, यहा तक कि बात की बात में वह दो कोस से ज्यादे निकल आया और ऐसी जगह यहुचा जहा सड़क के किनारे मिखमगों के दो तीन झोंपड़े और पास ही में एक कूओं भी था। देखने वाला यही कहेगा कि इन झोपड़ों में रहने वाले मिखममें है मगर जिन्हें उनसे वास्ता पड चुका था वे जानते थे कि ये वास्तव में सगदिल डाकुओं या भयानक लुटेरों तथा बदमाशों के मेदिये है। महन्थ सडक के नीचे उतर कर एक झोपड़े के पास गया और घोडे को रोक कर आवाज दी 'अरे कोई भूखा भिखमगा है रे ? आवाज सुनते ही एक बुड्ढा 'हॉ बाबू कहता हुआ बाहर निकला और सामने एक सवार को देख कर बोला “हुक्म सरकार अब्दुल्लाह हाजिर है।' महन्थ - रमललवा आया था? मिखमगा-जी हाँ आया था। महन्ध -(धीरे से ) रगू से मुलाकात हुई थी? मिखमगा - (धीरे से ) आहा !आप है महन्थ जी? महन्थ-हॉ। मिखमगा-जी हॉ रगू आये उनसे मुलाकात करा दिया और सब बात भी ठीक हो गई जब आप पालकी के साथ जा रहे थे तब आपका रामलाल इसी झोपड़ी के अन्दर बैठा देख रहा था, मैं सड़क पर था, जय आपने मेरी तरफ पैता गुप्तगोदना १२७७