पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/२७२

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है कि ये यहा के महन्थ वन हुए दियाई दत है। क्या आपकी बड़ी शहादी साध्या का हाल मालमनी सय वह महन्थ-- ( औरत का बालन से सक कर बम 4स a list यह मान थी कि तुप उन बातों का जिक्र किसी तीसरे के सामन छेडोगी! औरत -- (कुछ काध में आकर) मगर लाधार है कि तुम अपना सा जागान कलिय एक अनूठे ही दग पर चल र हो और दाराशिकोह के नाम की धमकी दिया चाहते हो। महन्थ - ता क्या मैंने कुछ भूठ कहा था ? औरत - भरी भी तो सुन लेते कि में भूट कहती या सच ! महन्य- मगर मेर कहन का मतलब किसी दलालन सनाया। औरत - अगर था ताकाल चमकान का। महन्थ - शायद तुम नहीं जानती थी कि य.1 में बितन आदमिया पर एक मत रहा। औरत - इसके जानने की मुजे काई जनरत भी नहीं है क्योंकि तुम्हारी हुमा का झण्डा बात की बात में गिरा देन वाला यह औजार अभी तक भर पास मौजूद है जिसे लोग तस्वीर के नाम से भी पुकार सकता है और जिस पर बादशाह की मोहर भी मौजूद है। अभी थाडी देर हुई ई सय ने कई यात समझाकर यह लिफाफा प्रताप क हाद में दिया। महन्थ - (कुछ डरी हुई आवाज से) खैर अब मालूम हुआ कि तुम यहा तक भेग बन्दायस्त कर चुकी हा और प्रताप को भी इस भेद में शरीक कर चुकी हार याद रहे कि महन्थ की यात्रुफ सवारी भी कोई मामूली बार नहीं है जेसा रास्ता तुम पकडागी सो सवाल मुझ भी चलनी पड़ेगी। औरत - इस बात का खयाल तो दोनो ही तरफ हाचादिय । महन्ध - अब ना में भी पूछ सकता कि परिल कारपाई किस तरपर शुरू हुई 7 औरत कारवाई नहीं इस बचाव का दा कहिये। महन्थ -- सैर ता अब में कहता हू कि इन सब बातों का कोई जरूरत न), जब तक तुम्हारी इच्छा को यहा रहा और जर इच्छा हो चली जाओ मेरा तरफ से किसी बात का ययाला करी आरत - तुम्हारो धातों पर विश्वान करना मुझ पसद नही गरज पसन्द है तो यही कि इसी समय में यह से कूच कर जाज और जब तक स्य अस्त न हो तुम्हे भी अपनी पालका के सगदी हाऊ और सध्या ही जान पर कह कि अब तुम अपन मन्दिर की तरफ लोट जाओ। महाथ - (काप कर ) नहीं नहीं पता पयाल भी अपन दिल में न लानइसमें मरी बड़ी बेइज्जती होगी। औरत - आयिर में कर ही क्या सकती है म्हारी चारपाजियो न मुश इन लायकी नहा रस्सा कि तुम्हारी बातों पर भरोसा करा महन्थ - अगर ऐसा करागी तो लागर हफिर तुम्हारी गिरफ्तारी की हुक्म दना पड़गा। औरत - कोई चिन्ता नही नगर समझरना कि उसके दिल तुम्हार लिए भी फासी का हुक्म मौजद है और साथ ही इसके यह भी ख्याल रखना कि मुझे अपी जान उतनी प्यारी नहीं है जितरी तुम्ई तुम्हारी । महन्ध - (गुस्स स ) तुम यात हा मान बहुत दी जा रही है और इस बात का भूल रही हा कि मैं कौन हूं। औरत -- अगर इस बात का शक हो कि मैं तुम्हें भूज गई ता की तुम्हारी पिछली मते याद दिलाऊ। महन्थ ~ता क्या में ऐसा नहीं कर सकता? औरत-और ताजा तुमस वन तुम करना और जो मुझसहा सगा कलगी समझ लूगी कि मरा सफर यहीं तक पूरा हो गया है। महन्थ -- फिर इसक सिधाय नुकसान के फायदा ही क्या है? औरत-अगर मुझ नहीं तो (नौजवान की तरफ बताकर) इन् फरादा जरूर हागा और सब तोगों है कि प्रताप भी अपनी माँ के ऋण से उऋण हो जाएगा। महन्थ - (घबराहट के साथ ही साय झुझलाकर ) फिर तुम उसी रास्त पर चलने तगा? औरत - लाचारी है, इसके सिवाय बचाव के लिए और कर भी क्या सकती हैं। महन्थ -- तो तुम्नुकसान ही कौन पहुचा रहा है? औरत -- आखिर तुम क्या ठाकुरजी का प्रसाद लेकर मर पास आए हो? महन्थ -- (अपन क्रोध को रोककर ) अच्छा तो में जाता हूँ। औरत - जाओ मगर इस बात को याद रक्यो कि आय घन्टे के अन्दर हो तुम्हें मरे साथ चला क लिए तैयार हो जाना पडगा मैं वादा करती है कि सूर्य अस्त हाने के घटे भर पहिल ही तुम्ट राहा लोट आने के लिए छोड़ दूंगी। देवकीनन्दन खत्री समग्र १२७४