पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/२६४

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रविदत्त-मैं उन लोगों के साथ ही आप लोगों को खोजने निकला था और जब आप बेहोशी की हालत में मिल गये तव मैने उन लोगों का कई काम सुपुर्द करके इधर-उधर भेज दिया। कई तो छिपकर हम लोगों की हिफाजत कर रहे है और कइ आरगजेब के लश्कर में गये हैं और दा तीन आदमी दुश्मनों का टूढ रहे हैं। इस खंडहर के आस-पास भी एक दा आदमी जरूर होंगें। उस औरत के मुँह से आप का नाम सुनकर मुझे उसका पता लगाना आवश्यक हो गया मगर अब ता आपकी जुबानी मालूम हो गया कि वह ओरगजब के लश्कर में गई है शायद आप भी रामसिह बनकर वहा जाएहींगे। उदय-जाऊगा मगर एक बात का ख्याल और भी उदयसिह अपनी बात पूरी करने भी न पाए थे कि कई आदमी हाथ में नगी तलवार लिये हुए खडहर के अन्दर आते दिखाई पडे। छठवां बयान गरमी के दिनों में मुसाफिरों को रात का सफर कुछ अच्छा मालूम पड़ता है, तिस पर यदि रात चादनी हो और चित्त के अनुकूल सवारी हो तो फिर कहना ही क्या है ? मगर एसे रास्ते से होना चाहिए जहा डाकुओं का डर लुटरों का खौफ और बदमाशों का ख्याल न हो। आज यद्यपि चन्द्रदेव के दर्शन आधी रात के वाद होंगे परन्तु वेचारे टुटपूजिये तारे यह समझकर कि थोड़ी ही देर में हमारी चमक दमक के साथ ही साथ कदर और रौनक भी जाती रहेगी, अपनी राशनी से दिल खालकर मुसाफिरों और राह चलतों को फायदा पहुंचा रहे हैं। इस समय जिस आगर स दिल्ली जान वाली सड़क पर हम अपने पाठकों का ले चलते है वह आजकल की तरह पक्की सडकों का मुकाबिला करने वाली ता नहीं मगर पुरान जमाने की कच्ची सडकों में अच्छी समझे जाने लायक थी। उसके दानों तरफ बडबडे मैदान (चौर ) थे जिनमें वरसाती पानी भरे रहने के कारण मौसम में धान की खेती के सिवाय कोसों तक और कुछ दिखाई नहीं देता था परन्तु आज उनमें एक पत्ती भी न हाने के कारण विचित्र सन्नाटा छाया हुआ है। यह जमाना भी (आजकल की तरह) सोना उछालत जाने की कहावत पूरी करने वाला नहीं बल्कि जिसकी लाठी उसकी भैस वाली कहावत पैदा करने वाला था अच्छे- अच्छ जमींदार डाकुओं के मली बने हुए थे और लूट के माल के साथ ही साथ गरीब मुसाफिर का दुख पहुचाने में भी एक भारी हिस्सा लेते थे। इसी सडक पर हम एक पालकी जिस पर जरबफ्त का पर्दा पडा हुआ था और जिसे बानाती पोशाक पहिरे हुए बत्तीस कहारों के अतिरिक्त दस-बारह फोजी सवार अपनी हिफाजत में लिये हुए थे तजी के साथ दिल्ली की तरफ जाते हुए देख रह है। इसी तरह बहुत दूर तक सफर करने के बाद कहारों ने एक जगह पालकी रख दी और दम लेने लग। उस समय हिफाजत करने वाले सवारों में से एक सवार जो कम उम्र और हर तरह से सभों का सर्दार मालूम होता था घोडे से उतर- कर उस पालकी के पास गया और जरा सा पर्दा उठाकर बोला किसी चीज की जरूरत है? इसके जवाब में पालकी के अन्दर से एक नाजुक सी बारीक आवाज आई, "नहीं किसी चीज की जरूरत नहीं है मगर सुनो तो सही । निसन्देह इस पालकी के अन्दर एक कमसिन और खूबसूरत औरत थी मगर इस ॲधरी रात में विना अच्छी तरह देखे भाले हम उसकी खूबसूरती का बयान इस जगह नहीं कर सकते केवल उन दोनों की बातचीत लिख कर छोड देना उचित समझते हैं। उस औरत की यह बात कि मगर सुना तो सही सुन कर उस नौजवान ने पालकी का पदा उठाया और कहा "कहो, क्या कहती हो? औरत-क्या अभी कोई गाव या कसबा हन लागों को नहीं मिलेगा? नौजवान-मिलेगा क्यों नहीं मगर इस तरफ ता यडी दूर-दूर पर गाव मिलता है। चलते-चलते तबीयत घवडा गई कहार लोग भी परशान हो रहे हैं। औरत-तबीयत क्या घबडा गई मेरा तो डर के मारे दम निकला जाता है घडी रात गये से इस समय तक हमलाग बराबर दौडादौड चले आ रहे हैं मगर अभी तक वस्ती या आबादी की बू तक नहीं मिली है किसी से पूछो तो सही नौजवान – पूछे किससे काई आदमी भी तो दिखाई नहीं दता । औरत - क्या इन कहारों में से कोई भी नहीं जानता कि गाव कब और कहा मिलेगा? नौजवान – कहारों से मैं पूछ चुका हू उन बेचारों को इस तरफ की कुछ भी खबर नहीं है। औरत - कहीं आग की राशनी या उजाला भी दिखाई नहीं देता? नौजवान – कहीं नहीं चारों तरफ सन्नाटा मालूम पडता है बस्ती का निशान बताने वाले कुत्ते के भौकने की भी आवाज सुनाई नहीं देती। औरत- है है " तब कैसे बनेगा? इस तरफ के डाकुओं का हाल सुन सुन के पहिले ही से में अधमुई हो रही थी अब तो और भी सोने-चाँदी के तारों से बना हुआ कपडा देवकीनन्दन खत्री समग्र १२६६