पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/२५८

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इन्हीं दोनों आदमियों का है मगर इन दोनों की बातों से यह नहीं मालूम हुआ कि ये लोग रविदत्त को कहा छोड़ आये है। उदयसिह को एक बात का खौफ और भी मालूम हुआ। वह सोचने लगा 'कहीं ऐसा न हो कि हम रविदत्त की टोह में इन दोनों के पीछे-पीछे चले जाने की धुन में रहें और ये दोनों उसके पास पहुच कर एक ही बार में उसका काम तमाम कर दें आखिर ये दोनों आगे-आगे तो जा ही रहे है। उदयसिह का यह सोचना नि सन्देह वाजिब था और इस विचार ने उसे चौका भी दिया। उसने पीछे-पीछे जाना पसन्द न किया और उन दोनों को रोकने का मौका ढूढने लगा। थोडी दूर आगे जाकर एक छोटा सा मैदान मिला। यहा की जमीन ऊसर होने के कारण पेड-पत्तों से खाली थी, उदयसिह को अपने खयाल से यह अच्छा मौका मिला झपटकर उन दोनों के पास जा पहुचा । तलवार खैच कर सामने खडा हो कर बोला, 'तुम दोनों कौन हो? उने दानों ने भी तलवार खैच ली और एक न अकड कर कहा, हमलोग बादशाह के सिपाही है, तुम कौन हौ जो यहा अकेले घूम रहे हो? जल्द जवाब दो नहीं तो गिरफ्तार करके बादशाह के हुजूर में ले चलेंगे।' उदय - अब इस नखरे और धमकी को तो तह कर रक्खो, यह बताओ कि रविदत्त को कहा रख आये हो? एक- रविदत्त कौन? उदय - बहाना करने से कोई फायदा न निकलेग. समझ लो कि मेरा नाम उदयसिह है और मेने तुम्हारी सष वाते छिपकर सुन ली है। दूसरा-(अपने साथी से कुछ कापती हुई आवाज में ) अजी यह वही उदयसिह है जिसे हम लोग बडी देर से खोज रहे हैं. इसी को गिरफ्तार करने के लिये बादशाह ने हुक्म दिया है। ( उदय से ) यस तलवार जमीन पर रख दो और चुपचाप हमारे साथ चले चलो। इतना सुनते ही उदयसिह को क्रोध चढ आया। उसने तेजी से एक के ऊपर तलवार का वार किया जिसे दूसरे ने बडी फुर्ती से रोका मगर उदयसिह के दूसरे वार को रोक न सका और कधे पर गहरा घाव खा जाने के कारण त्योरा कर जमीन पर गिर पडा उसी समय उदयसिह ने दूसरे की भी खबर ली। उदयसिह दिलावर और बहादुर आदमी था, तलवार चलाने की विद्या अच्छी जानता था इसलिये बात की बात में उस आदमी को भी नीचा दिखाया अर्थात् दूसरे को भी जमीन पर गिरा दिया। उदयसिह को मालूम हो गया कि ये दोनों ऐसे नहीं गिरे है कि उठ कर भाग जाय या किसी का पीछा करें इसलिए बेधडक एक के पास चला गया और बोला, अब भी बता दो कि रविदत्त कहा है नहीं तो तुम्हारा सर काट डालूगा ? इसका जवाब उसने कुछ भी नहीं दिया और अपने को ऐसा बना लिया मानो उसमें बोलने की ताकत ही नहीं है, दूसरे ने भी अपने को ऐसा ही दर्शाया । उदयसिह ने सोचा कि अब इनके ऊपर तलवार का वार करना उचित नहीं है इन्हें यहा पर इसी तरह छोडकर रविदत्त की खोज में इधर उधर भटकना भी मुनासिब नहीं जान पडता। यह तो मालूम हो ही चुका है कि रविदत्तै यहा से थोड़ी ही दूर पर या कहीं पास ही बेहोश पडा है और सिवाय इन दोनों के और कोई उसे दुख देने वाला भी नहीं है साथ ही इसके इस अधेरी रात में और ऐसे घने जगल में रविदत्त कापता लग जाना कठिन ही नहीं असम्भव है, इससे यही बेहतर है कि इन दोनों के पास ही थोडी दूर पर बैठे रहें आखिर थोड़ी देर में रविदत्त की बेहोशी दूर होगी ही, उस समय मेरी सीटी की आवाज सुनकर वह आप ही यहाँ आ जायेगा ! अगर इन दोनों को छोडकर उसे दूढने जाता हू तो ताज्जुब नहीं मेरे पीछे ये दोनों सम्हल बैठे और मुझसे पहले ही रविदत्त के पास पहुचकर उसे मार डालें क्योंकि मैं तो बेअदाज इधर-उधर खोलूंगा और ये दोनों झट उसके पास जा पहुचेंगे। इत्यादि बहुत सी बातें सोचकर उदयसिह ने वहा से चले जाना उचित न समझा और उन दोनो जख्मियों से थोडी दूर जमीन पर बैठ गया। थोड़ी देर बाद उदयसिह ने जेब से सीटी निकाल कर बजाई और तुरन्त ही उसका जवाब भी पाया। उदयसिह को विश्वास हो गया कि उसकी सीटी का जवाब रविदत्त ही ने दिया और वह हमारी तरफ आता ही होगा मगर यह बात न थी। मुरादबख्श की फौज के कुछ सिपाही किसी काम के लिये इस रास्ते से कहीं जा रहे थे जो सीटी की आवाज सुनकर रुक गये। उन सभी के पास भी बजाने वाली सीटी थी जिसे एक ने अपनी जेब से निकाल कर उदयसिह की सीटी का जवाब दिया था। सीटी का जवाब पाकर उदयसिह ने पुन सीटी बजाई और थोड़ी ही देर बाद अपने चारों तरफ पन्द्रह या बीस फौजी सिपाहियों को मौजूद पायो । उन सभों के पास चोर लालटेन मौजूद थी और उसमें रोशनी हो रही थी। एक ने लालटेन का मुह खोल कर उदयसिह के चेहरे पर रोशनी की और उसे बड़े गौर से देखकर पूछा तुम कौन हो? इसी बीच में दूसरे की लालटेन ने सभी को बता दिया कि यहा दो जख्मी भी पड़े हुए हैं। ऐसी अवस्था देख कर सभी ने अपने लालटेन की रोशनी खोल दी और दोनों जख्मियों तथा उदयसिह को अच्छी तरह देखा। ऐलोग उदयसिह को पहचानते न थे मगर इनकी पोशाक ने इनको बता दिया कि ये मुसल्मानी फौज के सिपाही हैं। देवकीनन्दन खत्री समग्र १२६०