पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/२५२

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api तेरहवां बयान यह सुलतानी वही औरत है जिसे हम वादी के मकान में दिखला आये है और लिख आये हैं कि इसने हाल ही में बादी के यहॉ नौकरी की है। बादी की तरफ से सरला को समझाने का ठीका लिया है और यही इस काम का बीड़ा उठाकर आई है कि सरला को दूसरे के साथ शादी करने पर राजी कर लूँगी। जिस समय वह उन लोगों के सामने पहुंची, पारसनाथ उठा, "लीजिये वो आ गई । अब इसे सरला के पास पहुंचाना चाहिये।" सरला कहीं दूर न थी, इसी मकान की एक अधेरी मगर हवादार कोठरी में अपनी बदकिस्मती के दिनों को नाजुक उगलियों के पोरों पर गिनती और बड़ी-बड़ी उम्मीदों को ठडी सॉसों के झोंकों से उड़ाती हुई जमाना विना रही थी। साधारण परिचय देने और लेने के बाद सुलतानी उस कोठरी में पहुंचाई गई जिसमें एक चिराग सरला की अवस्था को दिखलाने के लिए जल रहा था। जय से सरला को यह कोठरी नसीब हुई तब से आज तक उसने किसी औरत की सूरत नहीं देखी थी। इस समय यकायक सुलतानी पर निगाह पडते ही वह चौकी और ताज्जुब से उसका मुह देखने लगी। सुलतानी ने सरला के पास पहुँच कर धीर से कहा “मुझे देख कर यह न समझना कि तुम्हार लिए काई दुखदाई खवर या सामान अपने साथ लाई हूँ बल्कि मेरा आना तुम्हें दुख के अथाह समुद्र से निकालने के लिए हुआ है। अपने चित्त को शान्त करो और जो कुछ भी कहती हूँ उसे ध्यान देकर सुनो।" पाठक | इस जगह हम यह न लिखंग कि सुलतानी ने सरला से क्या क्या कहा और सरला ने उसकी चलती- फिरती बातों का क्या और किस तौर पर जवाब दिया अथवा उन दोनों में कितनी देर तक हुज्जत होती रही। हॉ इतना जरूर कहेंगे कि सुलतानी के आने का नतीजा इस समय पारसनाथ वगैरह को खुश करने के लिए अच्छा ही हुआ अर्थात घण्टे भर के बाद जब सुलतानी मुस्कुराती हुई उस कोठरी के बाहर निकली और कोठरी का दरवाजा पुन बन्द कर दिया गया तब उसने (सुलतानी ने) पारसनाथ से कहा 'लीजिय बाबू साहब, मैं आपका काम कर आई। हरनन्दन की लिखी हुई चिट्ठी का नतीजा तो अच्छा होना ही था मगर मेरी अनूठी बातों ने सरला का दिल मोम कर दिया और जब उसने मेरी जुबानी यह सुना कि उसका बाप लालसिह उसी के गम में सन्यासी हो गया तब तो और भी उसका दिल पिघलकर वह गया और जो कुछ मैने उसे समझाया और कहा उसे उसने खुशी से कबूल कर लिया। उसने इस बात का भी मुझसे वादा किया है कि व्याह हो जाने पर मैं अपने हाथ से अपने बाप को इस मजमून की चिट्ठी लिख दूंगी कि मैंने अपनी खुशी और रजामन्दी से शिवनन्दन के साथ शादी कर ली। मगर मुझसे उसने इस बात की शर्त करा ली है कि शादी होने के समय में उसक साथ रहूगी। सुलतानी की बातें सुनकर ये लोग बहुत प्रसन्न हुए और पारसनाथ ने खुशी के मारे उछलते हुए अपने कलेजे को रोक कर सुलतानी से कहा "क्या हर्ज है अगर एक रोज दो घण्टे के लिए तुम और भी तकलीफ करोगी। तुम्हारे रहने से सरला का डाढस बनी रहेगी और वह अपने कौल से फिरने न पायेगी। तुम यह न समझो कि मैं तुम्हें यों ही परेशान करना चाहता हूँ बल्कि विश्वास रक्खो कि शादी हो जाने पर मैं तुम्हें अच्छी तरह खुश करके बिदा करूँगा। सुलतानी ने खुश होकर सलाम किया और जिसके साथ आई थी उसी के साथ मकान के बाहर होकर अपने घर का रास्ता लिया। हमारे पाठक यह जानना चाहते होंगे कि यह शिवनन्दन कौन है जिसक साथ शादी करने के लिए सरला तैयार हो गई। इसके जवाब में हम इस समय इतना ही कहना काफी समझते है कि यादीन शिवनन्दन के बारे में पारसनाथ से इतना ही कहा था कि शिवनन्दन एक साधारण और बिना बाप मॉ का गरीब लडका है, उसकी और हरनन्दन की उम्र एक ही है, बातचीत और चालढाल में भी विशेष फर्क नहीं है। हरनन्दन और शिवनन्दन एक साथ एक ही पाठशाला में पढते थे, उसी सबब से हरनन्दन के दिल में उसका कुछ खयाल है ओर उसी के साथ सरला की शादी हरनन्दन पसन्द करता शिवनन्दन को पारसनाथ भी बहुत दिनों से जानता था और उसे विश्वास था कि यह बिल्कुल साधारण और सीधे मिजाज का लडका है। सुलतानी को विदा करने के बाद पारसनाथ और हरिहरसिह शिवनन्दन के मकान पर गये और उसकी शादी के बारे में बहुत देर तक चलती-फिरती चातें करते रहे। हरिहरसिह वहाँ भी अपनी चालाकी से बाज न आया, शिवनन्दन को शादी के बन्दोबस्त से खुश देखकर उसने इस बात का इकरार लिखा लिया कि शादी होने के बाद सरला की जो जायदाद उसे मिलेगी उसमें से आधा हरिहरसिह को वह विला उन दे देगा। शादी की बातचीत खतम हुई। दिन और समय ठीक हो गया। शादी कराने वाले पण्डितजी भी स्थिर कर लिये गये और यह भी तै पा गया कि बिना धूमधाम के मामूली रस्म और रिवाज के साथ रात्रि के समय शादी हो जायेगी। इन बातों में शिवनन्दन ने अपने खानदान की रस्मों में से दो बातों का होना बहुत जरूरी बयान किया और उसकी ये दोनों बातें भी देवकीनन्दन खत्री समग्र १२५४