पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/२०८

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

- 1 "जब मुझे होश आया मैं उठी और उसी सूराख की राह झांक कर दखने लगी मगर इस वक्त दूसरा ही समा नजर पड़ा। उस दीवानखान में न तो सुन्दरी थी और न वह लटकती हुई लडकी ही। उसके बदले दूसरे दो आदमियों की लाश वहाँ पडी हुई थी। राजा और उसके साथी जो-जा याते करते थे साफ सुनाई देती थी। राजा ने मरे वाप की तरफ देख कर कहा ये दो हरामजादी लौडियों छत पर चढ कर मेरी कारयाई दख रही थीं इन्हें अपनी जान का कुछ खौफ न था (हरीसिंह की तरफ देखकर) हरी, इन दोनों की लारा एसी जगह पहुँचाओ कि हजारों वर्ष यीत जाने पर भी किसी को इनके हाल की खबर न हो (मर बाप की तरफ देख कर) तेने बहुत बुरा किया जो तारा को छोड़ दिया वेशक अब वह भाग गई हागी, लेकिन तेरी जान तभी वचंगी जय तारा का सर भर सामने लाकर हाजिर करेगा वह भी एसे ढंग स कि किसी को कानोंकान खबर न हा कि तारा कहाँ गई और क्या हुई। वशक तारा यह हाल वीरसिह स भी कही मुझ लाजिम है कि जहाँ तक जल्द हो सक वीरसिह को भी इस दुनिया से उठा दूं । यह सुनत ही मेरा कलजा कॉप उठा और यह सोचती हुई कि मैं अभी जाकर अपने पति को इस हाल की खबर करूगी जिसमें वे अपनी जान बचा सके वहाँ से भागी औरमहल स एक लाडी साथ ले तुरंत अपन घर चली आई। साधू महाशय तारा के मुंह में इस किस्स को सुनकर कॉप गये और देर तक गौर में पड़ रहन क बाद बोले यह राजा बड़ा ही दुष्ट और दगाबाज है, लेकिन ईश्वर चाहगा तो बहुत जल्द अपने कर्मों का फल भोगेगा ॥ बारहवां बयान हम ऊपर लिख आये है कि जमींदारों और सरदारों की कुर्मटी में से अपने तीनों साथियों और नाहरसिह को साथ ले वीरसिह की खोज में खडगसिंह बाहर निकले और थाडी दूर जाकर उन्होंन जमीन पर पड़ी हुई एक लाश दखी। लालटेन की राशनी में चेहरा देख कर लागों ने पहिचाना कि यह राजा का आदमी है। नाहरo-मालूम होता है इस जगह राजा के आदमियों और वीरसिंह में लड़ाई हुई है। खड़ग०-अगर ऐसा हुआ है ताज्जुब नहीं कि वीरसिह को गिरफ्तार करक राजा के आदमी ले गए हों। नाइर० अगर इस समय हम लोग महाराज के पास पहुंचे तो वीरसिह को जरूर पावेंगे। खडग०-मै इस समय जरूर महाराज के पास जाऊँगा, क्या आप भी मर साथ वहाँ चल सकते हैं? नाहर०-चलने में हज ही क्या है ?* एसा डरपाक नहीं हूँ, और जब आप ऐसा मददगार मेरे साथ है तो मैं किसी को कुछ नहीं समझता !फिर मुझे वहाँ पहिचानता ही कौन है? खड़ग०-शाबाश आपकी बहादुरीम कोई शक नहीं मगर में इस समय वहाँ जाने की राय आपको नहीं दे सकता, क्या जाने कैसा मामला हो। आप इसी जगह ठहरें में जाता हूँ, अगर वीरसिंह वहाँ होंगे तो जरूर अपने साथ ले आऊँगा (कुछ सोच कर) मगर आपका यहाँ अकले रहना भी मुनासिव नहीं। नाहर०-इसकी चिन्ता आप न करें । में अकेला नहीं हूँ मेर साथी लाग इधर-उधर छिप-लुके जरूर होंगे। खडग०- अच्छा तो में इन तीनों आदमियों को साथ लिए जाता हूँ। अपने तीनों आदमियों को साथ ले खड़गसिंह राजमहल की तरफ रवाना हुए। वहाँ ड्योढी पर के सिपाहियों ने राजा के हुक्म मुतायिक इन्हें रोका मगर खडगसिह ने किसी की कुछ न सुनी ज्यादे हुज्जत करने का हौसला भी सिपाहियों को न हुआ क्योंकि वे लोग जानते थे कि खडगसिंह नैपाल के सेनापति है। खडगसिह धडधडाते हुए दिवानखाने में चले गये और ठीक उस समय पहुंचे जब राजा करनसिह अपने दोनों मुसाहबों शभूदत्त और सरूपसिह के साथ बातें कर रहा था और चार आदमी एक लाश उठाये हुए वहाँ पहुंचे थे। वह लाश वीरसिंह की ही थी और इस समय राजा के सामन रक्खी हुई थी। वीरसिंह मरा नहीं था मगर बहुत ज्यादं जख्मी हा जाने के कारण बहोश था। यकायक खड़गसिंह को वहाँ पहुँचत देख राजा को ताज्जुब हुआ और वह कुछ हिचका चेहरे पर खौफ की निशानी फैल गई, उसने बहुत जल्द अपने को सम्हाल लिया उठकर बडी खातिरदारी के साथ खडगसिह का इस्तकबाल किया और अपने पास बैठा कर बोला, "देखिए बड़ी महनत और परेशानी से अपने प्यार लडके के खूनी वीरसिंह को जिसे शैतान नाहरसिंह छुड़ा कर ले गया था मैने फिर पाया है।' खड़ग०-खूनी के गिरफ्तार होने की मैं आपको बधाई देता हूँ। मैंने अच्छी तरह तहकीकात किया और निश्चयकर लिया कि वीरसिंह बड़ा ही शेतान और निमकहराम है। मैं अपने हाथ से इसका सिर काटूंगा। हॉ मैं एक बात कीऔर देवकीनन्दन खत्री समग्र १२१०