पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/२०२

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

के हाथ राजा करनसिह को गिरफ्तार करके नेपाल ले जायेंगे। सोम०-केवल यही नहीं, राजा ने बीरसिंह के कई रिश्तेदारों को बेकसूर मार डाला है जिसका खुलासा हाल सुन कर आप के रोंगटे खड़े होंगे, बेचारा बीरसिह अभी तक चुपचाप बैठा है। खडगo-(तलवार के कब्जे पर हाथ रख के) अगर यह बात सही है तो हम लोग बीरसिह का साथ देने के लिए इसी वक्त से तैयार है मगर नाहरसिह को खुद हमारे सामने आना चाहिए। इतना सुनते ही खडगसिंह के साथ अन्य सर्दारों और बहादुरों ने भी तलवारें म्यान से निकाली और धर्म का साक्षी देकर कसम खाई कि हम लोग नाहरसिंह क साथ दगा न करेंगे बल्कि उसके साथ दोस्ताना बर्ताव करेंगे। उन सभों को कसम खाते देख सोमनाथ ने अपने चेहरे से नकाब उलट दी और तलवार सर के साथ लगाकर गरज कर बोला, "आप लोगों के सामने खडा हुआ नाहरसिह भी कसम खाता है कि अगर वह झूठा निकला तो दुर्गा की शरण में अपने हाथ से अपना सिर अर्पण करेगा । मेरा नाम नाहरसिह है आज तक अपने को छिपाये हुए था और अपना नाम सोमनाथ जाहिर किए था। शमादान की रोशनी एक दम नाहरसिंह के खूबसूरत चेहरे पर दौड गई। उसकी सूरत, आवाज और उसके हियाव ने सभों को मोहित कर लिया, यहाँ तक कि खडगसिंह ने उठकर नाहरसिंह को गले लगा लिया और कहा 'वेशक तुम बहादुर हो !ऐसे मौके पर इस तरह अपने को जाहिर करना तुम्हारा ही काम है ! भगवती चाहे तो अवश्य तुम सच्चे - निकलोगे इसमें कोई शक नहीं। (सर्दारों और जमीदारों की तरफ देख कर) उठो और ऐसे वहादुर को गले लगाओ इन्हीं से तुम । लोगों का कष्ट दूर होगा। सभों ने उठकर नाहरसिह को गले लगाया और खडगसिह ने बडी इज्जत के साथ उसे अपने बगल में बैठाया। नाहर०-वीरसिंह को मैं बाहर दर्वाजे पर छोड आया हूँ। खडग०--क्या आप उन्हें अपने साथ लाए थे? नाहर--जी हाँ। खडग०-शाबाश !तो अब उनका यहाँ बुला लेना चाहिए (एक सर्दार की तरफ देख कर) आप ही जाइए। सर्दार०-बहुत अच्छा। सर्दार उठा और वीरसिंह को लिवा लाने के लिए ड्योढी पर गया मगर लौटने में देरी अन्दाज से ज्यादे हुई इसलिए जब वह बीरसिह को साथ लिए लौट आया तो खडगसिह ने पूछा, इतनी देर क्यों लगी? सर्दार०-(वीरसिह की तरफ इशारा कर के) ये टहलते हुए कुछ दूर निकल गए थे। नाहर०बीरसिह तुम इधर आओ और अपने चेहरे से नकाब हटा दो क्योंकि आज हमने अपना पर्दा खोल दिया। यह सुन कर वीरसिह ने सिर हिलाया मानों उसे ऐसा करना मजूर नहीं है। नाहरo-ताज्जुब है कि तुम नकाब हटाने से इन्कार करते हो? जरा सोचो तो कि मेरी जुबानी तुम्हारा नाम इन लोगों ने सुन लिया तो पर्दा खुलने में फिर क्या कसर रह गई? क्या सूरत इन लोगों से छिपी है ? हम तुम्हें बहादुर शेरदिल समझते थे। यह क्या बात है? बीरसिह ने फिर सर हिलाकर नकाब हटाने से इन्कार किया बल्कि दो तीन कदम पीछे की तरफ हट गया। यह बात नाहरसिह को बहुत बुरी मालूम हुई वह उछल कर बीरसिंह के पास पहुंचा तथा उसकी कलाई पकड क्रोध से भर उसकी तरफ देखने लगा। कलाई पकडते ही नाहरसिह चौका और एक निगाह सिर से पैर तक बीरसिह पर डाल खडगसिह की तरफ देख कर बोला मुमकिन नहीं कि वीरसिह इतना बुजदिल और कम हिम्मत हो यह हो ही नहीं सकता कि बीरसिह मेरा हुक्म न माने 'देखिये कितनी बड़ी चालाकी खेली गई बेईमान राजा ने हम लोगों को कैसा धोका दिया हाय अफसोस बेचारा बीरसिह किसी आफत में फंसा मालूम होता है । इतना कहाकर नाहरसिंह ने बीरसिंह के चेहरे से नकाब खैच कर फेक दी। अब सभों ने पहिचाना की राजा का प्यारा नौकर बच्चनर्सिह है। खडग०-नाहरसिंह, यह क्या मामला है। नाहर०--भारी चालबाजी की गई, यह इस उम्मीद में यहाँ बेखौफ चला आया कि चेहरे से नकाब न हटानी पडेगी शायद इसे यह मालूम हो गया था कि मैं यहाँ आकर चेहरे से नकाब नहीं हटाता । मैं नहीं कह सकता कि इसके साथ हमारे दुश्मनों को और कौन-कौन सा भेद हम लोगों का मालूम हो गया । यही पाजी बीरसिह के कैद होने के बाद और देवकीनन्दन खत्री समग्र १२०४