पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/१९८

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! सुन्दरी-( लम्बी सास लेकर ) हाय, इसी कम्बख्त न तो मेरे बड़े भाई विजयसिह का मारा है। वायू साइय० मै एक बात तुम्हारे कान में कहा चाहता हूँ। सुन्दरीo-कहो। बाबू साहब ने झुक कर उसके कान में कोई बात कही जिसके सुनते ही सुन्दरी का चेहरा बदल गया और खुशी की निशानी उसके गालों पर दौड़ आई। चौक कर पूछा, 'क्या तुम सच कह रहे हो?" वावू साइब० (सुन्दरी के सिर पर हाथ रख के) तुम्हारी कसम, सच कहता हूँ। एक लौडी०-मालूम होता है कोई आ रहा है। सुन्दरी०-(लड़के को लौडी के हवाले करके) हाय, क्या गजय हुआ !क्या किस्मत अब भी आराम न लने देगी? इतने ही में सामने का दर्वाजा खुला और हाथ में नगी तलवार लिये हरीसिंह आता दिखाई दिया जिसे देखते ही बेचारी सुन्दरी और कुल लौडियों कौंपने लगी। यावू साहब के चेहरे पर भी एक दफे ता उदासी आई मगर साथ ही वह निशानी पलट गई और हांठों पर मुसकुराहट मालूम होने लगी। हरीसिंह मसहरी के पास आया और याबू साहब को देख कर ताज्जुब से बोला, 'तू कौन है ?" बाबूसाहय०-तू मेरा नाम पूछ कर क्या करेगा? हरीसिंह०-तू यहाँ क्यो आया है ? (लौडियों की तरफ देख कर) आज तुम सभों की मक्कारी खुल गई !! वायू साइव०-अब तू मेरे सामने हो और मुझसे बोल !औरतों को क्या धमकाता है ? हरीसिंह०-तुझसे मै बातें नहीं किया चाहता, तुझे तो गिरफ्तार करके सीधे महाराज के पास ले जाऊंगा, वहीं जो कुछ होगा देखा जायेगा। बाबू साहब०-मै तुझे और तेरे महाराज को तिनके के बराबर भी नहीं समझता तेरी क्या मजाल कि मुझे गिरफ्तार करे !! इतना सुनना था कि हरीसिंह गुस्से से कॉप उठा। याबू साहय के पास आकर उसने तलवार का एक वार किया। वायूसाहब ने फुर्ती से उस का हाथ खाली दिया और घूमाकर उसकी कलाई पकड़ ली तथा इस जोर से झटकादिया कि तलवार उसके हाथ से दूर जा गिरी। अब दोनों में कुश्ती होने लगी। थोड़ी ही देर में बाबू साहब ने उसे उठाकरदे मारा। इतिफाक से हरीसिंह का सिर पत्थर की चौखट पर इस जोर से जाकर लगा कि फटकर खून का तरारा बहने लगा। साथ ही इसके एक लौंडी ने लपक कर हरीसिंह के हाथ की गिरी हुई तलवार उठा ली और एक ही बार में हरीसिंह का सिर काट कर कलेजा ठडा किया। बाबू साहब०-हाय तुमने यह क्या किया? लौडी०-इस हरामजादे का मारा ही जाना बेहतर था, नहीं तो यह बड़ा फसाद मचाता !! बाबू साहय०-खैर जो हुआ सो हुआ, अव मुनासिव है कि हम इसे उठाकर बाहर ले जावें और किसी जगह गाड़ दें कि किसी को पता न लगे। वायू साहब पलट कर सुन्दरी के पास आए और उसे समझा युझा कर बाहर जाने की इजाजत ली। एक लौडी ने लड़के को गोद में लिया, बाबू साहब ने उसी जगह से एक कम्बल लेकर हरीसिह की लाश बाघ पीठ पर लादी और जिस । तरह से इस तहखाने में आये थे उसी तरह बाहर की तरफ रवाना हुए। जब उस खिड़की तक पहुंचे जिसे रामदीन ने खोला था, तो भीतर से कुडा खटखटाया। रामदीन बाहर मौजूद था, उसने झट दर्वाजा खोल दिया और ये दोनों बाहर निकल गये। रामदीन बामू साहब की पीठ पर गट्ठर देख चौका और बोला, 'आप यह क्या गजब करते है !मालूम होता है आप सुन्दरी को लिए जाते है !नहीं. ऐसा न होगा. हम लोग मुफ्त में फॉसी पावेंगे। इतना ही बहुत हैं कि मैं आपको सुन्दरी के पास जाने देता हूँ !! बाबू साहब ने गठरी खोलकर रामदीन को लाश दिखा दी और कहा, रामदीन, तुम ऐसा न समझो कि हम तुम्हारे ऊपर किसी तरह की आफत लावेंगे। यह कोई दूसरा आदमी है जो उस समय सुन्दरी के पास आ पहुँचा जिस समय मै वहाँ मौजूद था, लाचार यह समझकर इसे मारना ही पड़ा कि मेरा आना-जाना किसी को मालूम न हो और तुम लोगों पर आफत न आवे। लौडी०-अजी यह वही हरामजादा हरीसिंह है जिसने मुद्दत से हम लागों को तग कर रखा था ! देवकीनन्दन खत्री समग्र १२००