पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/१९५

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आठवां बयान घटाटोप अधेरी छाई हुई है रात आधी से भी ज्यादा जा चुकी है यादल गरज रहा है विजली चमक रही है मूसलाधार पानी बरस रहा है सडक पर वित्ता-वित्ता भर पानी चढ गया है राह में कोई मुसाफिर चलता हुआ नहीं दिखाई देता । ऐसे समय में एक आदमी अपनी गोद में तीन वर्ष का लडका लिए और उसे कपडे से छिपाये छाती स लगाए मोमजामे क छाते से आड किये किले की तरफ लपका चला जा रहा है। जब कहीं रास्त में आड की जगह मिल जाती है अपने को उसक नीचे ल जाकर सुस्ता लता है और तब न बन्द होने वाली बदली की तरफ काई ध्यान न दकर पुन चल पडता है। यह आदमी जव किले के मैदान में पहुंचा तो बाएं तरफ मुडा जिधर एक ऊँचा शिवालय था । यह वेखौफ उस शिवालय में घुस गया और कुछ देर सभामण्डप में सुस्ताने का इरादा किया मगर उसी समय वह लडका राने और चिल्लाने लगा जिसकी आवाज सुनकर वहाँ का पुजारी उठा और बाहर निकल कर उस आदमी के सामने खडा होकर वोला 'कौन है बाबू साहब? बाबू साहव०-हों। पुजारी०-बहुत अच्छा किया जा आप आ गए। चाहे यह समय कैसा ही टेढा क्यों न हो मगर आपके लिए बहुत अच्छा मौका है। बाबू साहब०-(लडके को चुप कराक) कवल इस लड़के की तकलीफ का खयाल है। पुजारीo-कोई हर्ज नहीं अब आप ठिकाने पहुंच गए। आइये हमारे साथ चलिये। उस शिवालय की दिवार किले की दीवार से मिली हुई थी और किला भी नाम को ही किला था असल में ता इसे एक भारी इमारत कहना चाहिए मगर दीवारें इसकी बहुत ही मजबूत और चौड़ी थीं। इसमे छोटछाटे कई तहखान थे। यहाँ का राजा करनसिह राहू यडा ही सूम और जालिम था खजाना जमा करने और इमारत बनान की इसे हद से ज्यादे शौक था। खर्च के डर से वह याडी ही कौज से अपना काम चलाता और महाराज नेपाल के भरोसे किसी को | कुछ नहीं समझता था हॉ नाहरसिह ने इसे तग कर रक्खा था जिसके सयव स इसके खजान में बहुत कुछ कमी हा जाया करती थी। वह पुजारी पानी बरसते ही में कम्बल आढ'कर बाबू साहब का साथ लिए किले के पिछवाडे वाले चोर दर्वाजे पर पहुंचा और दो तीन दफे कुडी खटखटाई। एक आदमी ने भीतर से किवाड खोल दिया और ये दोनों अदर घुसे। भीतर से दर्वाजा खालने वाला एक बुडढा चोकीदार था जिसने इन दोनों को भीतर लेकर फिर से दर्वाजा बंद कर दिया। पुजारी ने बाबू साहब से कहा अब आप आगे जाइये और जल्द लौट कर आइय में जाता हूँ। बाबू साहब ने छाता उसी जगह रख दिया क्योंकि उसकी अय यहाँ कुछ जरूरत न थी और लडके का छाती से लगाये बाई तरफ के एक दालान में पहुचे जहॉ से होते हुए एक सहन में जाकर पास की बारहदरी में होकर छत पर चढ गए।ऊपर उन्हें दो लोडियाँ मिली जो शायद पहिले ही से इनकी राह दख रही थीं। दोनों लौडियों ने इन्हें अपन साथ लिया और दूसरी सीढी की राह से एक कोठरी में उतर गई जहाँ एक ने बाबू साहब से कहा अब बिना रामदीन खवास की मदद के हम लोग तहखाने में नहीं जा सकते। आज उसको राजी करने के लिए बड़ी कोशिश करनी पड़ी। वह बिचारा नेक और रहमदिल है इसलिए काबू में आ गया अगर कोई दूसरा होता तो हमारा काम कभी न चलता। अच्छा अब आप यही ठहरिये मैं जाकर उसे बुला लाती हूँ।' इतना कह कर वह लौडी वहाँ से चली गई और थोड़ी ही देर में उस बुडढे खवास को साथ लेकर लौट आई। इस घुडढे खवास की उम्र सत्तर वर्ष से कम न होगी। हाथ में पीतल की एक जालदार लालटेन लिए वहां आया और यायू साहय के सामने खड़ा होकर बोला ‘देखिए बाबू साहब मै तो आपके हुक्म की तामील करता ही हूँ मगर अब मेरी इज्जत आप के हाथ में है। एक हिसाब से आज मैं मालिक की नमकहरामी करता हूँ कि इस राह से आपको जाने देता हूँ। मगर नहीं सुंदरी दया के योग्य है, उसकी अवस्था पर ध्यान देने से मुझे रूलाई आती है और इस बच्चे की हालत सोच। कर कलेजा फटा जाता है जो आपकी गोद में है। बेशक मैं एक अन्यायी राजा का अन्न खाता हूँ। लाचार हूँ, गरीवी जान मारी जाती है नहीं तो आज ही नौकरी छोड़ने के लिए तैयार हूँ। बाबू साहब०-रामदीन वेशक तुम बडे ही नेक और रहमदिल आदमी हो । ईश्वर तुम्हें इस नेकी का बदला देवे। अभी तुम नौकरी मत छोडो नहीं तो हम लोगों का काम मिट्टी हो जायेगा वह दिन बहुत करीव है कि इस राज्य का सच्चा वीरेन्द्र वीर ११९७