पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/१९१

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ch एक छुरा कमर में लगाया और माझियों को कुछ इशारा कर जल में कूद पडा। दूसर गाते में उस घडे के पास पहुँचा साथ ही मालूम हुआ कि जल में दो आदमी हाथावाही कर रहे हैं। माझियों ने तजी के साथ किश्ती उस जगह पहुँचाई और बात की बात में उस आदमी को गिरफ्तार कर लिया जो सर पर घडा औध अपने को छिपाय हुए जल में वहा जा रहा था। सब लोग उस आदमी का किनार लाये जहाँ नाहरसिह ने अच्छी तरह पहिचान कर कहा, अखआह, कौन? रामदास !मला चेहरामजादे खूब छिपा छिपा फिरता था !अब समझ ले कि तेरी मौत आ गई और तू नाहरसिंह डाकू के हाथ से किसी तरह बच नहीं सकता ॥ नाहरसिह का नाम सुनते ही रामदार के तो होश उड गए मगर नाहरसिह न उसे बात करने की फुरसत न दी और तुरत तलाशी लेना शुरू किया 1 मोमजामें में लिपटी हुई एक चिठी और खजर उसकी कमर से निकला जिसे ले लेने के बाद हाथ पैर यॉघ नाव पर माझियों को हुक्म दिया 'इसे नाहरगढ में ले जाकर कैद करो, हम परसो आवेगें तब जो मुनासिब होगा किया जायेगा। माझियों ने वैसा ही किया और अब किनारे पर सिर्फ ये ही दोनों आदमी रह गए। छठवां बयान किनारे पर जब केवल नाहरसिह और वीरसिह रह गए तव नाहरसिह न वह चिठी पढी जा रामदास की कमर से निकाली थी। उसमें यह लिखा हुआ था - मेर प्यारे दोस्त, अपने लडक के मारने का इलजाम लगाकर मैंने वीरसिह को कैद खाने भेज दिया। अब एक ही दो दिन में उसे फाँसी देकर आराम की नींद साऊँगा। ऐसी अवस्था में मुझ रिआया भी बदनाम न करगी। बहुत दिनों के बाद यह मौका भर हाथ लगा है अभी तक मुझ मालूम नहीं हुआ कि रिआया वीरसिह की तरफदारी क्यों करती है और मुझस राज्य छीन कर वीरसिह को क्यों दिया चाहती है ? जो हो अव रिआया को भी कुछ कहने का मौका न मिलेगा। हॉ एक नाहरसिह डाल का खटका मुझे बना रह गया उसके सक्य से मैं बहुत तग हूँ। जिस तरह तुमने कृपा करके बीरसिंह से मेरी जान छुडाई आशा है कि उसी तरह नाहरसिंह की गिरफ्तारी की तर्कीव बताआगे। तुम्हारा सच्चा दोस्त- करनसिह। इस चिठी के पढन स वीरसिंह का बडा ही ताज्जुब हुआ और उसने नाहरसिंह की तरफ देख कर कहा - वीर०-अब मुझ निश्चय हो गया है कि करनसिह बडा ही बेईमान और हरामजादा आदमी है। अभी तक मैं उसे अपने पिता की जगह समझता था और उसकी मुहब्बत को दिल में जगह दिय रहा। आज तक मैंने उसकी कभी कोई मुराई नहीं की फिर भी न मालूम क्यों वह मुझस दुश्मनी करता है। आज तक मैं उसे अपना हितू समझे हुए था मगर. नाहर०-तुम्हारा कोई कसूर नहीं तुम नहीं जानते कि तुम कौन हो और करनसिह कौन है जिस समय तुम यह सुनागे कि तुम्हारे पिता को करनसिंह ने मरवा डाला तो और भी ताज्जुब करागे और कहोगे कि वह हरामजादा ता कुत्तों से नुचवाने लायक है। बीर०-मेरे बाप का करनसिह न मरवा डाला ॥ नाहर०-हाँ। बीर०-वह क्योंकर और किस लिय? नाहर०-यह किस्सा बहुत बड़ा है इस समय मै कह नहीं सकता दखो सवेरा हो गया और पूरब तरफ सूर्य की लालिमा निकली आती है। इस समय हम लागों का यहाँ ठहरना मुनासिब नहीं है। मै उम्मीद करता हूँ कि तुम मुझे अपना सच्चादास्त या माई समझागे और मेरे घर चलकर दा तीन दिन आराम करोग। इस बीच में जितने छिपे हुए भेद है सब तुम्हें मालूम हा जायेंगे वीर०-वराक अब मैं आपका भरोसा रखता हूँ क्योंकि आप ने मेरी जान बचाई और येईमान राजा की बदमाशी से मुझे सचत किया ।अफसोस इतना ही है कि तारा का हाल मुझे कुछ भी मालूम न हुआ। नाहरo-मै वादा करता हूँ कि तुम्हें बहुत जल्द तारा स मिलाऊँगा और तुम्हारी उस बहिन से भी तुम्हें मिलाऊँगा 'जिसके बदन में सिवाय हड्डी के और कुछ नहीं बच गया है। वीरेन्द्र वीर ११९३