पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/१३६

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घडी तक आपुस में कुछ बातें करती रही इसके बाद फिर नरेन्दसिह के पास आई और बोली चलिये मकान में क्योंकि 'अब अन्धेरा हो गया और यहा ठहरने का मौका नहीं रहा। नरेन्द्रसिंह को साथ लिये हुए उसी मकान में गई जिसे उन्होंने कुछ दूर पेडों की आड में चमकता हुआ देखा था। इस मकान के दर्वाजे पर कई सिपाही नगी तलवार लिये पहरा दे रहे थे जो एक नये आदमी के साथ अपने मालिक को आते देख उठ खड़े हुए। नरेन्दसिह का हाथ पकडे हुए मोहिनी मकान के अन्दर गई पीछे उसकी सखियाँ भी पहुंची। फाटक के अन्दर जाकर एक लम्बे चौडे बाग में पहुंचे जिसकी रविशं निहायत खूबसूरती के साथ बनाई हुई थीं। पहाडी और जगली फल पत्तियों के अलावे खुशबूदार फूलों के पड भी वशुमार लगे हुए थे जिनकी खुशबू से तमाम बाग गमक रहा था । सामने ही एक लम्बा चौडा दामजिला मकान बना हुआ नजर आया 1 नरेन्द्रसिह का हाथ पकडे हुए उस मकान के ऊपर वाले खण्ड में ले गई और सजे हुए कमर में ले जाकर बैठाया। नरेन्द्रसिह को इस वक्त बडी ही खुशी थी मगर साथ ही इसके गुलाब को देखे विना जी बेचैन था। बैठते ही पूछा ‘क्यों मोहिनी गुलाब कहाँ है ? उसे जल्द बुलाओ मैं देखूगा ।' मोहिनी - आज आप उसे नहीं देख सकते। नरन्द्रसिह -क्यों? मोहिनी - इसका सवय फिर आपसे कहूँगी। नरेन्द्रसिह - अच्छा यह तो बताओ कि तुम्हारी सूरत ऐसी क्यों हो गई ? मालूम होता है कि सात आठ वर्ष याद तुम्हें देख रहा होऊँ। मोहिनी -- ( ऊँची सॉस लेकर ) एक तो तुम्हारी जुदाई, दूसरे के गम ने मेरी यह हालत कर दी। नरेन्द्र - क्या गुलाब के सिवाय और भी तुम्हारी कोई बहिन थी? मोहिनी-जी नहीं। नरेन्द्र - फिर किसका गम हुआ? मोहिनी- उसी गुलाब का। नरेन्द्र -(चौक कर ) गुलाव को क्या हुआ? वह कहाँ गई? मोहिनी--(ऑसू गिरा कर ) वैकुण्ठ चली गई। गुलाब के मरने का हाल सुन नरेन्द्रसिह की अजीब हालत हो गई बहुत देर तक रोते रहे। नरेन्द्रसिह - अफ़सोस अभी तक तुम्हारा कोई हाल भी नहीं मालूम हुआ कि तुम कौन हो और किस सबब से तुम्हारी वह दशा हुई थी। मोहिनी- क्या इतने दिन अलग रह कर भी आपको मेरा हाल कुछ मालूम न हुआ नरेन्द्र - कुछ भी नहीं। मोहिनी- अच्छा तो मैं जरूर अपना हाल कहूँगी। नरेन्द्र – भला इतना तो बता दो कि उस किश्ती पर से तुम लोग कहाँ गायब हो गई और बहादुरसिह कहाँ चला मोहिनी -- इसका हाल भी अपने हाल के साथ ही कहूँगी इस समय कुछ भोजन करके आराम कीजिए क्योंकि आपके चेहरे से थकावट और सुस्ती बहुत मालूम होती है। नरेन्द्र - तुम्हारे मिलने ही से थकावट और सुस्ती बिल्कुल जाती रही, मगर अफसोस बेचारी गुलाब इतना कहते कहते फिर आँखों में आंसू आ गए । मोहिनी ने बहुत कुछ समझाया और कुछ खाने के लिए जिद्द की मगर नरेन्द्रसिह ने कुछ न सुना। लाधार उनको चारपाई पर लिटा और उनसे विदा हो वह नीचे उतर आई और एक दूसरे कमरे में गई जहाँ उसकी सखियाँ बैठी उसकी राह देख रही थीं और शराब से भरी हुई कई बोतलें भी उस जगह रक्खी हुई थीं जिनमें से थोडा थोडा गिलास में डाल कर वे सब पी रही थीं। मोहिनी को आते देख वे सब उठ खडी हुई और हँस कर बोली 'मुबारक हो ईश्वर ने तेरे लिए क्या खूबसूरत जवान भेज दिया। मोहिनी- ( हंस कर ) देखिए जब रह जाय तब तो । एक - तेरे पजे में फंसा हुआ कब निकल सकता है हॉ तू खुद निकाल बाहर करे तो बात दूसरी है । मोहिनी- नहीं नहीं इसके साथ कभी वैसा न करूँगी जैसा दूसरों के साथ किया है क्योंकि ऐसा खूबसूरत और बहादुर जवान अभी तक मुझे कोई भी नहीं मिला था। मुझे तो मालूम होता है यह जरूर किसी राजा का लडका है। एक - इसमें कोई शक नहीं | आओ बैठो कहो क्या क्या बातचीत हुई? मोहिनी-- इस वक्त कोई विशेष बातचीत तो नहीं हुई सिर्फ गुलाब का हाल पूछा सो मैंने कह दिया कि मर गई। यह सुन बहुत रोए पीटे फिर पूछा की तुम अपना हाल बताओ कि तुम्हारी वह दशा कैसे भई थी, किश्ती पर से कहाचली गई और वहादुरसिह कहाँ गया। इसका जवाब भला क्या देती? मुझे कुछ मालूम तो था नहीं, और न मै बहादुरसिह को ही जानती थी कि वह कौन बला है आखिर यह कह के टाल दिया कि कल कहूँगी। 7 गया। देवकीनन्दन खत्री समग्र ११३८