पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/११८

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नदी का जल बिलकुल ठहरा हुआ मालूम होता था जैसे किसी ने फर्श विछा दिया हो। चन्द्रमा भी अपनी पूर्ण किरणों से साफ आसमान में उठा हुआ था। ये तीनों किरती पर बैठे चले आ रहे थे। तीनों नौजवान, ती खूपसूरत, तीनों नाजुक बदन, आपुस में देख देख कर खुश होते मुस्कुराते और जाड़ चलाये चल जाते थे। नाजुक औरत ने इस कर हमारे नौजवान बहादुर से कहा "बस अब मलागों को किसी का डर और खौफ नरी है, किश्ती को धीरे धीरे बहने दीजिये और मेरे पास आकर बैठिये।" नौजवान भी यही चाहता था कि इन दोनों के पास बैठ कर बातचीत से मालूम करें कि ये दोनों कौन है, क्योंकि अब बात करने का मौका बहुत अच्छा है, अस्तु उसने डाड़ खेना बन्द कर दिया बल्कि उन्हें उठा कर किरती में डाल लिया और खुशी खशी उस जगह आकर बैठ गया जहा वे दोनों औरतें बैठी हुई थी। तीसरा बयान किश्ती धीर धीरे वहने लगी। नौजवान ने दोनों औरतों की तरफ देखकर कहा ' अब हम विलाल खौफ है, मुझ तो किसी का उर न था मगर तुम लोगों के समय से डरना पड़ा। अब तुम दोर्ना का हाल जाने दिनाजी बहुत देर हो रहा है और इससे अच्छा समय भी बातचीत करन का न मिलेगा।" नाजुक औरत - पहिले आप कहिये कि आपका क्या नाम है कहा के रहो वाले है, और उस जगल में-(काप कर) ओफ याद करते कलेजा दहलता है-आप कैसे पहुंचे? नौजवान- पहिले तुमको अपना हाल कहना चाहिय क्योंकि तुम्हार पूछने के पहले ही में यह सवाल कर चुका है, सिवाय इसक मेरा काई विचित्र हाल भी नहीं है हातुम दोनों की हालत जक्याद करता हूं तो जरूर बदन के रोगट यड हो जाते है। हाय, उसका कैसा कलेजा था जिसने तुम दोनों के साथ ऐसा सलूक किया। दूसरी औरत-(जो जमीन से निकाली गई थी) हा वहिन पहिले तुम ही अपना हाल कहो क्योकि मेरी तबीयत भी यह सुने बिना बहुत ही घबड़ा रही है कि मेरी वह दशा किसने की थी। नाजुक औरत - अच्छा पहिले में ही अपनी रामकहानी कहती हू।(नौजवान की तरफ देखकर) आप और कुछ हाल न कहिये तो कम से कम अपना नाम तो बता दीजिये जिसमें बात करने या पुकारने का सुनीता हो। नौजवान-इसमें कोई मुजायका नहीं, सुनो मेरा नाम नरेन्द' है। बस अम जब तक तुम दोनो कापूरा हाल न मालूम होगा मै और कुछ न कहूगा। नाजुक औरत - हा हा अब आप दिल लगा कर मरा हाल सुनिये, म कहती हूँ। इन लोगों ने किश्ती खना बन्द कर दिया था और एक दूसरे की रात में इतना लीन हो रहे थे कि इन्डे किश्ती को चाल और बहाव का कुछ खयाल न रहा था जिससे वह बहती हुई कुछ किनारे की तरफ हो गई। अभा नाजुक औरत ने अपना किस्सा कहना शुरू नहीं किया था कि दालागो पर फिरती एक घने पीपल कपड़ के नीचे पहुँची जो नदी के किनार ही पर था। इन लोगों की किरती उस पेड़ के नीच पहुँधी ही थी कि ऊपर से आवाज आई.' मला नरेन्द.ले जा भगा के । अब यारों की फिक क्यों होगी ! मगर हर भी तुम्हार उस्ताद ही निकल, रास्ता ही आकर बन्द कर दिया ! भला अब आगे बढ़ा तो मही, देखें कितना हौसला रयते हा । इस आवाज के सुनते ही वे दोनों औरते डरी मगर हमारा बहादुर नौजवान एक दम हँस पड़ा जिससे दोनों औरतों को बड़ा ताज्जुब हुआ क्योंकि इस आवाज को सुन कर वे घबड़ा गई थी। उनका पूरा विश्वास हा गया था कि कोई हम लोगों का दुश्मन आ पहुंचा और डर के मारे उनका बदन कापन लगा था मगर हमार बहादुर नौजवान नरेन्द को हराते देख उन दानों की विचित्र हालत हो गई और वे उनके मुँह को तरफ देखने लगीं। नरेन्द ने हँस कर कहा- 'घबडाआ मत देखो मैं इसे अपनी किश्ती पर बुलाता है। इतना कह उस पेड़ की तरफ देखा और बोला- 'अवे मूतने ! अब पड़ से उत्तरेगा भी कि ऊपर ही बैठा रहेगा? आ किनारे पर " आवाज- नहीं अब मै नीच नहीं आने का, जाओ अपनी किश्ती ले जाओ! हिहिहि किश्ती ले जाना क्या हैसी ठट्ठा है छू लो ऐसा मन्त्र पद दिया कि सिवाय किनारे लगाने को इस किश्ती को तुम आगे ले जा ही नहीं सकते। बचाजी, तुम ता खूब जान बचा के भागे थे पर अब कहा जाआगे ? तीन दिन का भूखा प्यासा मै आज तुम तीनों को खाये बिना थोड ही छोडूगा । नरेन्द्र - (किश्ती किनारे लगा कर ) अये उतरेगा कि दू मिर्च की धूनी !! आवाज - अगर मिर्च के येत में भी आग लगा दो तो कुछ नहीं होगा नरेन्द्र - अच्छा मेरे भाई अब तो उतरो। आवाज-जी हाँ मै ऐसा वैसा भूत नहीं हूं कि जल्दी उतर जाऊ। नरेन्द्र- अबे उतरता है कि नहीं। देवकीनन्दन खत्री समग्न ११२०