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मलावार
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सब से अधिक व्यापार होता है। उसका तेल निकाला जाता है; उस की जटाओं की चटाइयां और रस्से रस्सियां बनती हैं; और उसके पत्तों से पंखे और छाते बनते हैं। जो भाग कम पार्वतीय है उसमें चावल बहुत होता हैं,सुपारी,इलायची,जायफल,जायवित्रो और लौंग भी वहां खूब होती है। कहवा भी बहुत होता है।

मलाबार में पुरुषों की अपेक्षा स्त्रियों का अधिक प्रभुत्व है। प्रायः घर की स्वामिनी वही होती हैं। उन के पति उन के घर आते हैं वे पति के घर नहीं जाती। वहां पर मातृवंश स्थावर-जंगम सम्पत्ति का वारिस माना जाता है;पितृवंश नहीं माना जाता। अथवा यों कहिए कि लड़का अपनी मां का कहलाता है,वाप का नहीं।

मलावारी स्त्री पुरुषों में कोई कोई बातें बहुत ही विलक्षण हैं। यहां के नंबूरी ब्राह्मणों में सिर्फ सब से बड़े लड़के का विवाह होता है। उसी की सन्तति वारिस मानी जाती है। इन ब्राह्मणों में स्त्रियां बहुत वर्षों तक बेव्याही रहती हैं। कभी चालीस चालीस पचास पचास वर्ष की बूढ़ी बूढ़ो कुमारिकाओं का व्याह होता है ! कोई कोई वेब्याही बूढ़ी हो कर मर जाती हैं। नायर जाति की शूद्र-स्त्रियों के साथ कभी कभी और वर्ण वाले भी विवाह कर लेते हैं। पर इन लोगों के पति नाम के लिए पति होते हैं; अपनी स्त्रियों पर उन का बहुत कम अधिकार रहता है। बहन और बहन की सन्तति ही का स्वामित्व सारी सम्पत्ति पर रहता है । मलावा- रियों की एक सम्प्रदाय थियार नाम से प्रसिद्ध है। इन लोगों के भी रीति-रवाज नाम्यूरियों के जैसे होते हैं

(मार्च १९०५)