नहीं बचा। यह प्रदेश हमेशः हरा बना रहता है; और नारियल, इलायची, सुपारी और केले के स्वाभाविक जौर अस्वाभाविक घने घने घनों और उपवनों से अपनी नैसर्गिक शोभा को सदैव बढ़ाया करता है। यहां के मलयानिल से दूर दूर तक का देश सौरभमय हो जाता है। इस प्रदेश ने संस्कृत-कवियों को काव्य-रचना के लिए इतना मसाला दिया है कि शायद ही कोई ऐसा कवि हुआ होगा जिसने मलय और मलयानिल पर दो चार श्लोक न कहे हों। इसी मलयानिल- मण्डित देश के राजा के साथ,मलयस्थली में विहार करने की सिफारिश इन्दुमती से कालिदास,इस प्रकार,करते हैं -
मलावार का मुख्य नगर कालीकट है। वह बहुत बड़ा शहर है। उसके दक्षिण-पूर्वी भाग में मोपला मुसलमानों की बस्ती है ; उत्तर-पश्चिमाञ्चल में पोर्चुगीज लोग रहते हैं। जेल, जिले की कचहरियों और रोमन कैथलिक गिरजाघर भी उधर ही हैं। इस भाग में एक बहुत बड़ा तालाब है । मलायालियों की वस्ती अलग है। जेल के पास क्रिस्तानों का समाधि स्थान है। वहां पर मलाबार के कलेकर और मजिस्ट्रेट कानली साहब गड़े हुए हैं। १८५५ ई० में मोपला लोगों ने आपका खून कर डाला था। कानली साहब की अदालत में इन लोगों का एक मुकदमा चला। पर जिस पक्षवालों की हार हुई उन्होंने न्यायकारो साहब ही को भाले से छेद डाला । कानली साहब की हत्या होने पर देशी फौज मंगाई गई मगर मोपालों ने उसे भी मार भगाया। तब