चिदस्जद में सबसे बड़ा और सबसे प्रसिद्ध मन्दिर महादेव का है। विद्वानों का कथन है कि उसे राजा हिरण्यवर्ण चक्रवर्ती ते बनवाया था। यह राजा श्वेतकुष्ट से पीड़ित था, इसी लिए लोग उसे श्वेतवर्मा कह कर पुकारते थे । वह एक बार देवदर्शन के लिए दक्षिण की ओर माया। यात्रा करते करते जब वह चिदम्बर में पहुंचा और वहाँ के तालाब में उसने स्नान किया तब उसका कुष्ट नहाने के साथ हो नाश हो गया। अतएव उसने वहीं पर विशाल शिव मन्दिर निर्माण कराया। किसी किलीका मत है कि राजा हिरण्यवर्ण ने इस मन्दिर को बनवाया वहीं;किन्तु कुष्ट से छुटकारा पाने पर उसने केवल उसकी मरस्वत बार उनके आकार-प्रकार की विशेष भव्य कर दिया।
परन्तु इस मन्दिर के विषय में एक दूसरे मार्ग से एक दूसरे ही प्रकार की बात निदित हुई है। मेकजी नाम के एक साहब ने दक्षिण में प्रचलित पुस्तकें बहुत खोज से एकत्र की हैं। उनमें से एक हाथ की लिखी हुई पुस्तक से सूचित होता है कि ९२७ से ९७७ ईसवी के बीच चोल देश में वीर नाम का एक राजा हुआ। उसने एक वार समुद्र के किनारे शङ्कर को पार्वती के साथ ताण्डव-नृत्य करते देखा। इस उपलक्ष्य में कनक-सभा के नाम का यह सुवर्ण मन्दिर उसने बनवाया और उसमें जो शिव की मूर्ति स्थापित की उसका नाम उसने नटेश्वर रक्खा। चाहे जिसने, चाहे जब,और चाहे जिस निमित्त इस मन्दिर को बनवाया हो, यह दर्शनीय अवश्य है । इसीलिए दूर दूर से लेग वहां दर्शनों के लिए आते हैं।
इस मन्दिर के चारों ओर ऊँची उंची दो दीवारें हैं। मन्दिर का