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दृश्य-दर्शन

से आगे वह किसी प्रकार न बढ़ सके। बढ़ने से उसे वहीं झुलस जाना पड़े।

किले के भीतर प्राचीन हिन्दू राजाओं के महलों के खंडहर दूर तक देखे जाते हैं। दो एक मन्दिर भी उजाड़ दशा में पड़े हैं। प्राचीन नगर का अस्तित्व बिलकुल ही जाता रहा है। उसकी जगह पर,इस समय, एक छोटा-सा गांव है । १२९३ ईसवी में अल्ला- उद्दीन ने देवगिरि पर कब्जा किया; परन्तु किले को वह न ले सका । बहुत दिनों तक वह किले को घेरे पड़ा रहा । कहते हैं, १८७ मन सोना ७ मन के करीब मोती, २५ सेर होरा और कोई ३०० मन चाँदी लेकर उसने किले का घेरा उठाया ! १३३८ ईसवी में मुहम्मद तुगलक ने देवगिरि का नाम दौलताबाद रक्खा; और देहली उजाड़ कर उसे आबाद करना चाहा। इस पागलपनमें उसे कहां तक सफलता हुई, यह विदित ही है।

रौजा का दूसरा नाम है खल्दाबाद । यह, इस समय, एक छोटा सा कसबा है। समुद्र के धरातल से २,००० फुट की ऊंचाई पर यह बसा हुआ है। औरंगाबाद से यह ८ मील और यलोरा को गुफाओं से कुल २ मील है। यहाँ बहुत से मकबरे हैं; इसी लिए इसका नाम रौज़ा है । दक्षिण के मुसलमानों का यह करबला है। जिनकी क़बरें यहां हैं उनमें से औरंगज़ेब, उसका दूसरा पुत्र आज़िमशाह, हैदराबाद के राजवंश का प्रतिष्ठापक आसफजाह, उसका पुत्र नासिरजङ्ग, मलिक अम्बर; थानाशाह आदि मुख्य हैं।

औरंगज़ेब की कब्र बहुत सादी है । उसको प्रसिद्धि उसके सादेपन ही के कारण है। वह खुली हुई है। धूप और वर्षा से रक्षा का कुछ