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औरङ्गाबाद, दौलताबाद और राजा

नीचे खाई है। खाई के आगे और चार दीवारें बहुत दृढ़ बनी हैं। उनको पार करने पर खाई तक पहुंचने की नौबत आती है। इसके फाटकों पर भाले के समान लोहे की नोकदार कीलें गड़ी हुई हैं। इनके कारण बड़े से बड़े मत्त गजेन्द्र भी उनपर आघात करके उन्हें तोड़ नहीं सकते । इसके भीतर एक मीनार है। इस मीनार को मुसलमानों का विजय-स्तम्भ समझना चाहिए। १४३५ ईसवी में पहले पहल जब उन्होंने देवगिरि को हिन्दुओं से जीता तब यह मीनार बनाया। यह बात यहां के एक फ़ारसो शिलालेख से सूचित है। यहां पर एक बुर्ज में अरब के रहने वाले महम्मद हसन नाम के कारीगर की बनाई हुई “किलै शिकन” नामक विशाल तोप रखी है। यह कोई २२ फुट लम्बी है। इसके मुंह का व्यास ८ इञ्ज है। इस किले में एक इससे भी भारी तोप है । उस पर जो लेख खुदा है उसमें इसका नाम “प्रलयङ्करी" लिखा है। औरंगजेब ने एक योरोपियन के द्वारा इसे सबसे ऊंची बुर्ज पर चड़ाया था। वह वहां किसी प्रकार न उठाई जा सकती थी। इसलिए औरंगजेब ने उस योरोपियन को अपने देश जाने से रोक दिया; और कह दिया कि जबतक वह उसे बुर्ज पर न चढ़ा देगा उसे छुट्टी न मिलेगी और वह हिन्दुस्तान से बाहर कदम न रख सकेगा । अन्त में इस धमकी से उत्तेजित होकर, उसने, किसी प्रकार,उसे बुर्ज पर चढ़ा हो दिया। इस किले में एक बड़ी बिचित्र बात है। इसमें एक जगह ऊपर १ इञ्च मोटी और २० फुट लम्बी लोहे की चद्दर जड़ी हुई है। युद्ध के समय वह तपाकर आग के समान लाल कर दी जाती थी। शत्रु यदि किले के भीतर पहुंच भी जाय तो वहां