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औरङ्गाबाद, दौलताबाद आर रौज़ा


मोहक है। इसपर तार की पतली जाली लगी हुई है। इसलिए पक्षी अथवा और कोई जीव इसके भीतर नहीं जा सकते। इस कारण यह बहुत साफ़ रहती है।

इस नगर में औरङ्गज़ेब की लड़की ज़ेबुन्निसा का महल भी देखने लायक़ है। वह उन्हीं इमारतोंमें से है जिनके चारों ओर घोर जङ्गल उग आया था। इसके सिवा कई पुरानी बारादरियां, दीवानखाने और शाही मकान हैं, जो अपने पूर्व वैभव का कुछ कुछ अनुमान देखने वाले के मन में उत्पन्न करते हैं।

औरङ्गजेब की बेगम रबिअब्दुर्रानी का यहां बहुत ही अच्छा मक़बरा है। उसकी उपमा आगरे के ताजमहल से दी जाती है। उसके फाटक के किवाड़ों पर पीतल का पत्र जड़ा हुआ है और उसपर नक्काशी का काम है। वहांपर यह एक लेख है—"इस दरवाज़े को १०८९ हिज़री में, हैबतराय ने प्रधान कारीगर अनाउल्ला से बनवाया।" समाधि-स्थान सङ्गमरमर के एक ऊँचे चबूतरे पर है। उसके चारों ओर सङ्गमरमर की जाली है। उसका काम बहुत ही मनोहर है। यह जाली समाधि को चारों ओर से घेरे हुए है। निज़ाम की गवर्नमेंट ने अनन्त धन खर्च कर के इस रौज़े की मरम्मत कराई है। मरम्मत क्या, उसे बिलकुल नया कर दिया है। इसके फाटक की छत पर जो काम है उसे देख कर बुद्धि नहीं काम करती; वह अपूर्व है।

औरंगाबाद में वहां की पनचक्की भी दर्शनीय है। एक सुन्दर बाग़ में विमल जल से भरा हुआ एक तालाब है। इस तालाब में मछलियों की अतिशय अधिकता है। एक फुट से लेकर तीन फुट तक की